हिरन का बच्चा और बारहसिंगा – शिक्षाप्रद कथा
एक दिन एक हिरन का बच्चा तथा एक बारहसिंगा दोनों किसी जंगल में एक साथ चर रहे थे| अचानक शिकारी कुत्तों का एक झुंड उनसे कुछ दूरी पर गुजरा| बारहसिंगा तुरंत झाड़ियों के पीछे छिप गया और हिरन के बच्चे से भी ऐसा ही करने के लिए कहा| जब शिकारी कुत्ते चले गए तो हिरन के बच्चे ने बहुत भोलेपन से पूचा – “चाचा, आखिर तुम इनसे इतने भयभीत क्यों थे? अगर तुम उनसे लड़ने भी लगो तो तुम्हारे पराजित हो जाने की संभावनाएं बहुत कम हैं| ईश्वर की दया से तुम्हारे सींग नुकीले हैं| तुम्हारे लम्बे-लम्बे पैर हैं| चाहो तो दौड़ में उन्हें पछाड़ सकते हो| तुम्हारा शरीर भी कई गुना बड़ा है| फिर भी तुम इतने भयभीत हो!”
बारहसिंगे ने हिरन के बच्चे की बात ध्यान से सुनी, फिर बोला – “देखो लड़के, जो तुम कह रहे हो, वह बिल्कुल सच है| मैं भी ऐसा ही सोचता हूं, मगर सत्य तो यह है कि हममें से जब भी कोई इन शिकारी कुत्तों के चंगुल में फंसा है, वह कभी जीवित नहीं बचा है| यही वह भय है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चला आया है| पीढ़ियों पुराना यह भय हमारी नसों में भर गया है, हमारी प्रतिक्रियाओं में प्रतिबिम्बित होता है| यही कारण है कि इन जंगली जानवरों के सामने आते ही हम होशियार हो जाते हैं और अपने बचाव का प्रयत्न करते हैं|”
शिक्षा: कई बार हम शक्तिशाली होकर भी भयभीत रहते हैं, ऐसा आनुवंशिकता के कारण होता है|