पागल नौकर

किसी शहर में एक सेठ रहता था| किसी कारणवश उस बेचारे को अपने कारोबार में घाटा पड़ गया| गरीब होने के कारण उसे बहुत दुःख था| इस दुःख से तंग आकर उसने सोचा कि इस जीवन का उसे क्या लाभ? इससे तो मर जाना अच्छा है|

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यह सोचकर एक रात को वह सोया तो रात को उसे सपने में एक सन्यासी नजर आया जो उससे कह रहा था, सुनो सेठ तुम डरो मत, मैं तुम्हारे सारे दुःख दूर करने के लिए कल सुबह तुम्हारे घर पर आऊंगा| तुम मेरे सिर पर डंडा मारना| मैं उसी समय सोने का हो जाऊंगा| सन्यासी की बात सुनकर दु:खी सेठ ने सोचा कि चलो एक बार और देख लेते हैं|

यही सोचकर वह सुबह से ही अपने घर पर बैठकर सन्यासी की प्रतीक्षा करने लगा| उसका नौकर नाई भी उसके पास ही बैठा था, थोड़े ही क्षणों के पश्चात् जैसे ही वह सन्यासी सेठ को आता दिखाई दिया तो उसने झट से अपना डंडा उठाकर उसके सिर पर दे मारा|

बस फिर क्या था, देखते ही देखते वह सोने का बनकर गिर पड़ा| उसे वहां से अठाकर खशी से नाचता सेठ अंदर ले गया| उसने नाई को इनाम में कुछ रूपये देकर कहा, तुम जाओ लेकिन यह बात बाहर किसी से मत कहना|

नाई ने अपने घर जाकर सोचा कि जितने भी ये सन्यासी फिर रहे हैं, यदि इनके सिर पर डंडा मारा जाए तो वह भी सोने के बन जायेंगे सो मैं भी अमीर हो जाऊंगा|

बस फिर क्या था, सुबह उठते ही उसने एक बड़ा लट्ठ लिया और चल पड़ा सन्यासियों को खोज में और एक जगह पर जहां बहुत भिक्षुक ठहरे हुए थे उन्हें अपने घर पर आने का निमंत्रण दिया|

जैसे ही वे खाने के लिए घर पर आये तो भाई तो पहले से ही द्वार पर लठ लेकर बैठा था| वह सन्यासी भिक्षु नाई की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर और सब घरों को छोड़कर पहले उसके यहां आये|

बस फिर क्या था जैसे ही साधु अन्दर आने लगे| भाई बारी-बारी उसके सिर पर लठ मारता रहा| उनमें से कोई मर गया कोई गहरे घाव खाये धरती पर तड़पता रहा| यह सूचना राजा की पुलिस तक पहुंच गई| पुलिस ने नाई को बन्दी बना लिया और साथ ही साधुओं की लाशों और घायल साधुओं को लेकर राजा के पास पहुंचे|

राजा ने नाई से पूछा, तूने यह पाप क्यों किया?

उत्तर में नाई सेठ वाली सारी कहानी राजा को सुना डाली| नाई की कहानी सुन राजा ने सेठ को बुलाकर सब बात पूछी तो सेठ ने अपना सारा दोष नाई के सिर मंड दिया बोला-यह सारा दोष नाई का है.. इसे फांसी दे दी जाये| इस प्रकार नाई को फांसी दे दी गई| इसलिए कहा है-

जो ठीक से देखा, जाना और सुना न हो वह न करना चाहिए जैसा कि नाई ने किया औश्र मारा गया| ठीक ही कहा है – कोई काम अच्छी प्रकार से देखभाल और सोच-विचार के बिना नहीं करना चाहिए, नहीं तो बाद में पछताना पड़ता है| जैसे नेवले के लिए ब्रह्मणि को पछताना पड़ा|