जो होगा देखा जाएगा
किसी सरोवर में अनागत विधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य नामक तीन मत्स्य रहते थे| एक दिन की बात है कि उस तालाब की ओर से कुछ मछुआरे निकले और उसमें देखकर कहने लगे|
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अरे! सरोवर तो मछलियों से भरा पड़ा है| आज तक हमारी दृष्टि इस पर गई ही नहीं| चलो आज का कम तो बन गया है और अब समय भी नहीं रहा है, कल प्रात:काल यहां आकार मछली पकड़ेंगे|
वे तो इतना कहकर चलेत बने किन्तु अनागत विधाता ने जब यह सुना तो उसके होश भी उड़ गए| उसने सब मछलियों को बुलाकर कहा, ‘उन मछुआरों की बात को तो आप लोगों ने सुन ही लिया होगा| आज का समय हमारे पास है अत: यहां से निकलकर किसी अन्य सरोवर में शरण लेनी चाहिए, क्योंकि बलवान के सम्मुख निर्बल को भागकर अपने प्राण बचा लेने चाहिए|’
यह सुनकर प्रत्युत्पनमति ने कहा, ‘इनका कहना ठीक है, मेरा भी यही मत है कि हमें अन्यत्र शरण लेनी चाहिए|’
यह सुनकर यद्भविष्य को हंसी आ गई| उसने कहा, ‘मित्र! आप लोगों का निर्णय कुछ उचित नहीं है| उनकी बात से भयभीत होकर अपने पिता और पितामहों के इस सरोवर को छोड़कर चला जाना उचित नहीं| यदि आयु की क्षीणता के कारण विनाश होना ही है तो वह अन्यत्र जाकर भी होगा ही, मृत्यु को कौन टाल सकता है? इसलिए मैं तो यहां से नहीं जाऊंगा| आप जो उचित समझें करें|
यद्भविष्य के कहने पर भी अनागत विधाता और प्रत्युत्पन्नमति तो अपने-अपने परिजनों तथा अनुयायिओं को लेकर अन्यत्र चले गए| यद्भविष्य वहीं रहा| दूसरे दिन प्रात:काल मछुआरे आए| यद्भविष्य का परिवार तथा अन्य शेष सभी मछलियों को लेकर वे उस सरोवर को मछलियों से विहीन करके अपने घर चल दिए|
यह कथा सुनकर टिटि्भ बोला, ‘तो क्या तुम मुझे भी उस यद्भविष्य की भांति ही समझ रही हो? अब तुम मेरे बुद्धिबल को देखो| मैं अपनी बुद्धि से इस दुष्ट समुद्र को सोख डालता हूं|’
‘समुद्र ओर तुम्हारी क्या समता? उस पर तुम्हारा क्रोध उचित नहीं| अपनी और शत्रु की शक्ति को जाने बिना जो युद्ध के लिए प्रस्तुत होता है वह आग की ओर बढ़ने वाले पतंगों की भांति स्वयं ही नष्ट हो जाता है|’
पत्नी की बात सुनकर पति ने कहा, ‘तुमने देखा नहीं सिंह शरीर से छोटा होने पर भी मदोन्मत्त विशालकाया हाथी को भी क्षणभर में चित कर देता है| मैं अपनी इसी चोंच से इसका सारा चल पीकर इसे मरूस्थल बना दूंगा|
पत्नी बोली, ‘नौ सौ नदियों को लेकर गंगा और नौ सौ ही नदियों का जल लेकर सिन्धु नदी जिसको प्रतिदिन भरती रहती हैं उस समुद्र को तुम अपनी बिन्दुमात्र वाहिनी चोंच से कैसे सुखा पाओगे?’
‘साहस करने वाले के लिए कोई कार्य असम्भव नहीं है|’
‘यदि आपका यह दृढ निश्चय ही है तो फिर अन्य पक्षियों को भी बुला लो| क्योंकि अशक्त व्यक्तियों का भी यदि समूह हो तो वह दुर्जेय होता है जिस प्रकार साधारण घास के तिनकों से बनी रज्जु से बलवान हाथी भी बाँध दिए जाते हैं| इतना ही नहीं चिड़िया और कठफोडुआ तथा मक्खी और मेंढक ने मेल से हाथी तक को मार गिराया था|’