धोखेबाज
सागर के किनारे से थोड़ी दूर पर एक बड़ा वृक्ष था, जिस पर एक बन्दर रहता था| उस सागर में रहने वाला एक बड़ा मगरमच्छ एक दिन उस वृक्ष के नीचे ठंडी-ठंडी हवा का आनन्द ले रहा था|
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बन्दर ने अपने घर आये मेहमान को देखा तो मित्रता कर ली| बन्दर अपने मित्र के लिए इस वृक्ष पर से ताजी और पकी हुई जामुनें लेकर आया जिसे खाकर मगरमच्छ बहुत खुश हुआ|
ऐसे ही इन दोनों में मित्रता बढ़ी| अब तो मगरमच्छ रोज ही उस बन्दर के पास आता और मीठे-मीठे जामुन खाता फिर कुछ जामुन अपने पत्नी के लिए भी ले जाता|
मगरमच्छ की पत्नी ने ऐसे मोटे जामुन कभी नहीं खाए थे| वह आश्चर्य से पूछने लगी –
हे प्राणनाथ! ऐसे मोटे जामुन तुम कहां से लाते हो?
प्रिये! मेरा एक मित्र बन्दर है वही मुझे रोज यह जामुन लाकर देता है|
वाह! जो बन्दर इतने मीठे जामुन खाता है उसका नाम कलेजा कितना मीठा होगा| मुझे तो उसका कलेजा खाने को ला दो जिसे खाकर में सुन्दर एवं अमर हो जाऊं|
प्रिये एसी बात मत कहो, वह तो मेरा भाई बन गया है|
फिर हमें फल लाकर देता है भला कोई ऐसे मित्र को भी मारता है|
मगरमच्छ की बात सुनकर उसकी पत्नी को क्रोध आ गया| वह बोली –
मैं सब समझ गई| जिसके पास तुम जाते हो, वह बन्दर नहीं कोई बन्दरिया है| तुम उससे प्रेम करते हो|
नहीं नहीं प्रिये ऐसा मत कहो, मैं झूठ नहीं बोलता| तुम मुझपर विश्वास करो|
नहीं-मुझे तुम्हारी बात पर बिलकुल विश्वास नहीं| यदि यह सत्य नहीं है तो तुम जाकर उसका कलेजा लाओ नहीं तो याद रखो मैं भूखी रहकर जान दे दूंगी|
मगरमच्छ बहुत दु:खी हो गया| वह सोचने लगा की क्या करूँ? अपने मित्र को कैसे मारूं? यह मेरी पत्नी तो पागल हो गई है लेकिन फिर भी….|
बेचारा दु:खी मन से बन्दर के पास पहुँचा| बन्दर ने उसे उदास देखकर पूछा|
अरे यार! क्या बात है आज तुम इतने उदास क्यों हो? मीठी-मीठी बातें भी नहीं सुना रहे हो|
मेरे भाई! तुम्हारी भाभी नें मुझसे कहा है कि तुम बहुत बड़े पापी हो जो रोज-रोज मित्र के पास जाकर खाते हो? यह भी नहीं करते की एक दिन उसे अपने घर पर लाकर खाना खिलाओ-कहा भी है -ब्रह्म हत्या, शराब पीना, चोरी, व्रत भंग दुष्ट व्यवहार का प्रायश्चित नहीं है, मेरे देवर को लेकर ही आना, नहीं तो मैं मर जाऊंगी|
क्यों न तुम भाभी को मेरे पास यहीं पर ही ले आओ|
भाई बन्दर, सागर के अन्दर जो मेरा घर है वह तो बड़ा सुन्दर है तुम जाने की चिन्ता न करो, मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाऊंगा|
बस फिर क्या था, बन्दर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया| मगर उसे लेकर तेजी से गहरे पानी में जाकर चलने लगा| उसे इस तेजी से गहरे पानी में कूदता देखकर बन्दर घबरा गया| उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके सिर पर कोई खतरा मंडरा रहा है|
उधर मगरमच्छ ने देखा कि अब बन्दर उसके वश में है| यह गहरे पानी से निकलकर अब कहीं भी नहीं जा सकता| अब क्यों न इससे सारी बात कह डालूं| तभी उसने कहा –
भाई बन्दर, सत्य बात तो यह है कि मैं तुझे धोखे में फंसाकर मारने के लिए लाया हूं| अब तुम अपने भगवान को याद कर लो| तुम्हारा अन्तिम समय आ गया है|
भैया! मैंने तुम्हारा और भाभी का क्या बुरा किया जो तू मुझे मारने के लिए अपने घर ले जा रहा है|
बन्दर भैया! मेरी पत्नी तुम्हारे हृदय का रस पीना चाहती है जिसके लिए मैंने ऐसा किया है|
बन्दर समझ गया कि अब तो वह इसके जाल में फंस गया है, अब मौत उससे अधिक दूर नहीं| यदि उसने जल्दी ही कोई उपाय न किया तो ….
फिर अचानक ही बन्दर की तेज बुद्धि ने काम किया| उसने चुटकी बजाते हुए कहा-
वाह भाई मगरमच्छ! तुमने क्या बात कह दी? यह बात तो तुम्हें मुझे वहीं पर बतानी चाहिए थी| अब तो सारा मामला बिगड़ गया| सब कुछ बेकर हो गया|
क्यों भाई, बेकर क्यों हो गया?
इसलिए कि जो मेरा मीठा दिल तुम्हारी पत्नी को चाहिए उसे तो मैं संभालकर उस जामुन के पेड़ की जड़ के नीचे रखा करता हूँ|
यदि यह बात है तो चलो तुम्हें जामुन के पेड़ तक वापिस ले जाता हूँ| तुम वहां से मुझे दिल निकालकर दे देना ताकि मेरी पत्नी खुश हो जाये नहीं तो वह मर जायेगी|
हां…हां… क्यों नहीं भाई| आखिर मैं तुम्हारा मित्र हूँ| तुम्हारे काम नहीं आऊंगा तो किसके काम आऊंगा| चलो जामुन के पेड़ तक…. बस|
मगरमच्छ मोटी बुद्धि का था| वह बन्दर की चाल को समझा नहीं बस चल पड़ा वापस|
जामुन के पेड़ पर पहुंच बन्दर ऊपर पहुँच गया|
नीचे खड़े मगरमच्छ ने उसने कहा कि लाओ भाई अब दिल निकालकर दे दो| बन्दर ऊपर से बोला| ओ पापी! धोखेबाज दुष्ट मुर्ख, भला तू सोच कि कभी किसी के दो दिल भी होते हैं अब तेरी भलाई इसी में है कि यहां से चला जा और फिर कभी भूलकर इधर न आना भूल कर भी|
जो एक बार दुष्टता के पश्चात् फिर मित्रता करना चाहता है वह गर्भ धारण करने वाली खच्चरी के समन मृत्यु को प्राप्त होता है|
बन्दर की बात सुनकर मगरमच्छ अपनी भ्जूल पर पछताने लगा| वह सोचने लगा अब क्या होगा? मेरी मूर्खता के कारण मित्र भी हाथ से गया और पत्नी भी खुश न हो सकी|
यदि मैं बन्दर को रास्ते में अपने मन की बात न बताता तो अवश्य ही मैं अपनी पत्नी को खुश कर देता|
लेकिन मगरमच्छ को एक चाल सूझी उसने बन्दर से कहा|
अरे भाई, तुम तो मेरे मजाक को सच मान गए| मैंने वैसे ही कहा था, आओ मेरे यहां चलो|
ओ दुष्ट! अब तू यहाँ से चला जा|
किसी ने सच ही कहा है, एक बार मित्रता में अगर कोई दगा करे तो उससे दूर ही रहना अच्छा है|