चालाक गीदड़
एक जंगल में गीदड़ रहता था| उसे एक बार कही से मरा हुआ| हाथी नजर आ गया| वह उसके चारों ओर घूमता रहा| किन्तु उसकी सख्त खाल को फाड़ न पाया, उसी समय उधर से कहीं एक घूमता हुआ शेर आ गया| उस गीदड़ ने शेर के आगे सिर झुकाकर कहा, महाराज यह आपका शिकार है| मैं कल से खड़ा इसकी रक्षा कर रहा हूं|
“चालाक गीदड़” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
भाई गीदड़! मैं दूसरे का मारा शिकार नहीं खाता, तुमने सुना नहीं कि वन में रहने वाले भूखे शेर कभी मांस नहीं खाते| सो मैंने यह हाथी तेरे को ही उपहार के रूप में दिया| शेर की बात सुनकर गीदड़ बड़ा खुश हुआ| जैसे ही शेर वहां से गया तो उसके पश्चात् एक बाघ वहां पर आ पहुंचा| उसे देखकर गीदड़ घबराया और सोचने लगा कि एक दुष्ट से पीछा छुड़ा लिया किन्तु अब इससे कैसे पीछा छूटे| कुछ क्षण के पश्चात् उसने रास्ता निकाला|
मामाजी, आप इस ओर कैसे निकल आये, यह हाथी तो शेर ने मारकर मुझे रक्षा के लिए खड़ा किया है, साथ ही उसने मुझसे कहा है कि यदि कोई बाघ आए तो उसकी सूचना मुझे देना| क्योंकि पिछले दिनों मेरा एक शिकार बाघ उठाकर ले गये थे| अब मैं इन बाघों को तलाश करके मारूंगा|
जैसे ही बाघ ने यह बात सुनी तो वह वहां से भाग खड़ा हुआ| जाते-जाते गीदड़ से बोला-शेर को मेरे आने की खबर न देना मेरे भांजे|
जैसे ही बाघ वहां से गया तो एक चीता आ गया| गीदड़ ने उसे देखकर सोचा कि चीते के दांत बहुत पैनें होते हैं, क्यों न इससे हाथी की चमड़ी कटवा लूं|
बस फिर क्या था| उसने चीते से कहा, भाई यह हाथी शेर ने मारा है, यदि तुम इसको खाना चाहते हो तो जल्दी से इसे खा लो, मैं शेर के आने का ख्याल रखता हूं| जैसे ही मुझे शेर आता दिखाई देगा मैं तुम्हें बता दूंगा| तुम उसी समय भाग जाना, चीता ने उसकी बात मान ली|
उसे क्या पता था कि गीदड़ उसके साथ चाल चल रहा है| वह देखते ही देखते हाथी की खाल काटने लगा| उधर जैसे ही गीदड़ ने देखा की हाथी की खाल कट गई| उसने शोर मचा दिया| भागो, भागो शेर आया| इस प्रकार चीता भाग खड़ा हुआ|