चालाक बुगला

चालाक बुगला

एक जंगल में अनेक प्रकार के जल जन्तुओं से भरा तालाब था| वहां पर रहने वाला एक बगुला बूढ़ा होने के कारण मछलियों को मारने में भी असमर्थ हो गया| वह बेचारा तालाब के किनारे बैठा रो रहा था| उसे इस प्रकार रोता देखकर एक केकड़े को बहुत दुख हुआ|

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उसके आंसू को देखकर उसे दया आ गई| वह बगुले के पास जाकर बोला –

मामाजी! आज तुम भोजन क्यों नहीं करते इस प्रकार से क्यों रो रहे हो?

बगुला बोला-तुम ठीक कह रहे हो बेटे, मैं वास्तव में ही दुखी हूं? लेकिन मेरे दुख का कारण यह नहीं जो तुम समझ रहे हो|

और क्या कारण है?

मैं तो केवल उपवास कर रहा हूं क्योंकि मैंने बहुत ही पाप किए हैं, इसीलिए अपने पापों का पश्चाताप कर रहा हूं| इसलिए मैं आपके पास आए हुए को भी नहीं खाता|

मैं आपके इस पश्चाताप का कारण नहीं समझा| केकड़ा बोला| मैं यहीं जवान हुआ| यही पर बूढ़ा हुआ इसलिए मुझे यहां की हर चीज से प्यार है| अब जब मैंने यह सुना कि बारह वर्ष तक बारिश नहीं होगी तो…|

किससे सुना है यह आपने!

एक ज्योतिषी के मुख से| उसने कहा कि शनिवार और रोहिणी संकट को भेदकर भौम (मंगल) और शुक्र के पास जाएगा और बाढ़ मिहिर ने कहा है-

यदि शनि ग्रह रोहिन के संकट का इस लोक में भेद न करे तो बारह वर्ष तक बादल धरती पर नहीं बरसते और भी….|

प्रजा सत्य संकट (रोहिणी नक्षत्र) के भेद जानने पर मानो धरती का यह पाप करके भस्म और अस्थिर के टुकड़ों से परिपूर्ण कापालिक का रूप धारण करती है और….|

यदि शनि, मंगल ओर चांद रोहिणी संकट का भेद न करें तो मैं क्या करूं? यह तो सब जानते हैं कि इससे सारा संसार नाश हो जाता है|

रोहिणी संकट के मध्य में चांद के स्थित होने पर शरणहीन होकर भी कहीं जाए तो उन्हें शरण भी नहीं मिल पाती और ना ही कुछ खाने पीने को मिलता है| इसी कारण वे लोग बच्चों के पास खाने वाले बन जाते हैं ओर फिर सूर्य के तेज से खौलते हुए पानी को मजबूर होकर पीते हैं|

और यह तालाब जिसमें पहले से ही थोड़ा सा पानी है, शीघ्र ही सूख जाएगा| इसके सूख जाने पर जिनके साथ मैं सदा से ही रहा हूं वह जल के न होने से सूख जाएंगे| मैं यह दुख सहन नहीं कर पाऊंगा| इसलिए मैंने उपवास किया है और रो रहा हूं| इस समय थोड़े पानी वाले सभी तालाबों के जन्तु बड़े-बड़े तलाबों की ओर जा रहे हैं अब कुछ ही दिनों में सब कुछ समाप्त हो जाएगा|

केकड़ा उस बगुले से यह विनाश की कहानी सुनकर सब जन्तुओं के पास जाकर आने वाले विनाश की कहानी सुनाने लगा| उस कहानी को सुनते ही डर के मारे कांपते हुए मछलियां, कछुवे, बगुले के पास आकर पूछने लगे –

मामा! क्या इस मौत से बचने का कोई रास्ता भी है?

बगुला मामा! इस तालाब के पास ही एक बड़ा तालाब है जो चौबीस वर्ष तक वर्षा न होने पर भी सूखता नहीं है| सोचो जो कोई मेरी पीठ पर चढ़ जाए तो मैं उसे उस तालाब तक छोड़ सकता हूं|

बगुले की बात सुनकर जन्तु बोल उठे|

मामा! मुझे वहां ले चलो| हर कोई चाहता था कि मैं वहां पहले जाऊं|

बस फिर क्या था बगुले की चाल सफल हो गई थी| वह बारी-बारी जन्तुओं को अपनी पीठ पर लादता और एक चट्टान पर ले जाकर खा लेता|

इस प्रकार वह रोजाना ही इन जन्तुओं को खाने लगा| वहां से आकर दूसरे जन्तुओं को झूठ-मूठ की कहानी गढ़कर सुना देता था| इस प्रकार बूढ़े बगुले ने चालाकी, झूंठ, हेराफेरी से अपना धंधा जमाया| बेचारे जीव-जन्तुओं को क्या पता था कि धीरे-धीरे उसके साथी बगुले के पाट में जा रहे हैं|

केकड़ा बेचारा रोज ही बगुले से कहता कि मुझे भी उस तालाब में छोड़ आओ मगर हर बार बगुला उसे छोड़ जाता और मछलियों को ले जाता|

एक दिन केकड़े ने बगुले से पूछ ही लिया –

मामाजी! आप मुझे सबसे अधिक प्यारा करते थे लेकिन इस भयंकर मौत से बचाने के लिए आप मुझे निकालकर क्यों नहीं ले जाते|

बगुला केकड़े की बात सुनकर कटने लगा कि इस केकड़े को मेरी इस चालाकी का पता न चल जाए| फिर रोज मछलियां खाकर वह भी तंग आ गया था| केकड़े को खाने से जरा मुंह का स्वाद भी बदल जाएगा| यही सोचकर उस बगुले ने केकड़े से कहा –

चलो बेटा आज तुम ही मेरे साथ चलो| आज तुम्हें भी किनारे पर लगाकर आता हूं|

तब केकड़े को अपनी पीठ पर लादकर बगुला उड़ चला उसी पहाड़ी की ओर| केकड़े बेचारे को क्या पता था कि उसके साथ धोखा हो रहा है, देखते ही देखते केकड़े को उस पहाड़ी पर जा पटका|

मामाजी! अभी वह तालाब कितनी दूर है, मेरे बोझ से तो आप थक गये होंगे|

बगुला हंसा| उसे पता था कि यह मंदबुद्धि जल जन्तु अब इस पहाड़ी पर मेरा कुछ नही बिगाड़ सकता| अस इससे डरने की क्या आवश्यकता है| उसने अपनी शेखी बघारते हुए कहा –

बेटा! उस तालाब को अब भूल जा| उस तालाब की कहानी तो मैंने तुम लोगों को पागल बनाने कल इए गढ़ी थी| मैं तो अपना शिकार करता हूं| सीधे ढंग से तो मुझे मिला नहीं था| मैंने तो अपनी बुद्धि से यह रास्ता निकाल लिया था|

केकड़ा भी कम होशियार न था| उसे बगुले की चालाकी का पता चल गया|

वह जोर-जोर से चीखा मेरे मामा…! यह कहकर वह बगुले के गले से लिपट गया साथ ही उसने अपने दानों दांत बगुले की गर्दन पर गाड़ दिये|

वाह मैं मरा…| बगुले के गले से अन्तिम चीख निकली| इसके पश्चात उसकी आवाज सदा के लिए बन्द हो गई| उसकी कटी गर्दन को लेकर केकड़ा वापिस उसी तालाब में अपने साथियों के पास आ गया| उसके साथियों ने उसे इस प्रकार वापिस आते देखकर पूछा|

भाई! तुम वापिस क्यों आ गए फिर उसको कहां छोड़ा जो हम सबकी जानें बचा रहा था|

केकड़े ने हंसकर कहा-अरे मूर्खों! वह बगुला तो सबसे बड़ा झूठा ओर धोखेबाज निकला| वह तो हमारे एक-एक साथी को धोखे से वहां ले जाकर उस पहाड़ी पर बैठकर खा जाता था| आज मैंने उसकी यह चालाकी पकड़ ली ओर साथ ही उसे सदा के लिए शांत कर दिया| यदि आज मैं उसे ठिकाने न लगाता तो वह एक-एक करके सबको खा जाता| यदि तुम्हें विश्वास नहीं होता तो देखो उस धोखेबाज की गर्दन जिसे काटकर मैं साथ लाया हूं|

जल-जन्तु अपने साथी कीई तीव्र बुद्धि से शत्रु को मारने से बहुत खुश हुए|

कौवा उस केकड़े की कहानी सुनकर खुश हुआ और साथ ही बोला-भाई मुझे यह भी बताओ कि मैं उस अंप को कैसे समाप्त करूं|

गीदड़ बोला-तुम लोग किसी राजा की राजधानी में जाओ वहां से एक सोने का हार चोरी करके लाओ ओर उसे सांप के बिल पर रख दो| जैसे ही सांप अपने बिल से बाहर निकलेगा तो यह हार उसके गले में फंस जाएगा| बस इसी तरीके से इस सांप का मारा जा सकता है|

कौवा-कौवी गीदड़ की बात सुनते ही वहां से उड़ गए| उड़ते-उड़ते वे एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां पर एक रानी नदी में स्नान कर रही थी| बीएस फिर क्या था कौवी ने अपने पति की ओर इशारा किया| उस समय कौवी ने अपना वांवा मारा ओर उस कार को ले उड़ी| रानी ने जैसे ही अपने मोतियों के हार को इस प्रकार ले जाते देखा तो उसने शोर मचा दिया|

रानी का शोर सुनते ही नौकरों की पूरी सेना उस कौवे कौवी के पीछे भाग खड़ी हुई|

कौवी उड़ने में बड़ी तेज थी| उसने जाते ही उस हार को सांप के बिल पर गिरा दिया|

जब तक रानी के नौकर वहां तक पहुंचे तब तक वह काला सांप भी बिल से बाहर निकल आया था| जैसे ही रानी के नौकरों ने काले सांप को उस हार के बीच में देखा तब सब के सब उस सांप पर टूट पड़े| देखते ही देखते सांप मारा गया| रानी के नौकर हार लेकर चले गए|

कोवा-कौवी अपने इस भयंकर शत्रु के मारे जाने पर बहुत खुश हो गए| इससे साफ पता चलता है कि बलवान और बुद्धिमान बड़ा होता है| बुद्धिमान में बल नहीं होता| देखा जंगल के खरगोश ने मदोन्मत सिंह को मार दिया|