बुझदिल राक्षस
कश्मीर के राजा रामनाथ की लड़की के महल में एक राक्षस रोजाना ही आकर उसे तंग किया करता था| लड़की उस राक्षस से बहुत दु:खी थी किन्तु उस राक्षस से पीछा छुड़ाने का कोई रास्ता उसकी समझ में नहीं आ रहा था|
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एक बार एक और राक्षस उस लड़की के कमरे में घुस आया और एक कोने में छुपकर खड़ा हो गया| उस समय वह लड़की अपनी दासी से बातें कर रही थी कि किस तरह मैं उस राक्षस से पीछा छुड़वा सकती हो|
उस राक्षस ने जैसे ही उनके मुंह से यह बात सुनी तो समझ गया कि यहां पर कोई अन्य राक्षस भी आता है| मैं क्यों न उसे छुपकर देखूं कि वह कौन राक्षस है|
यही सोचकर वह घोड़े का रूप धारण कर उन घोड़ों के बीच में छुपकर खड़ा हो गया और उस राक्षस को प्रतीक्षा करने लगा| इस बीच एक घोड़ों का चोर उस घोड़ों के तबेले में आ गया| उसने इस राक्षस रूपी मोटे ताजे घोड़े को देखा तो बहुत खुश हो उस पर सवारी करके उसे ले उड़ा|
राक्षस ने समझा, यह तो वही राक्षस होगा जो मेरी पीठ पर सवार हो गया है| वही सोचकर राक्षस तेज दौड़ने लगा| वह इतना तेज भागा कि चोर बेचारा डर गया कि कहीं मैं ही किसी राक्षस रूपी घोड़े पर तो नहीं बैठ गया| इस तरह वह चोर एक वृक्ष के नीचे से गुजरते हुए उस वृक्ष की टहनियों को पकड़कर चढ़ गया| तभी दोनों ने ही समझ लिया कि अब तो जान बची| वह राक्षस तेजी से दौड़ा जा रहा था तो उसका एक मित्र बन्दर मिला जिसने उसे इस तरह डरा देखकर कहा|
अरे भाई! तुम आदमी से हार गये जो तुम्हारे शिकार है| जाओ जाकर खा लो| चलो मैं तुम्हारे साथ चलता हूं|
जैसे ही बन्दर और राक्षस उस पेड़ पर पहुंचे तो चोर ने बन्दर की दुम को पकड़कर इतनी जोर से काटा कि बन्दर चीखें मारता हुआ कहने लगा| चलो भागो वास्तव में ही यह कोई भयंकर राक्षस है| इस प्रकार वे दोनों वहां से भाग खड़े हुए|