Homeशिक्षाप्रद कथाएँबुझदिल मत बनो

बुझदिल मत बनो

एक बार एक गीदड़ उस जंगल में चला गया जहां दो सेनाएं युद्ध कर रही थी| दोनों सेनाओं के मध्य क्षेत्र में एक नगाड़ा रखा था| गीदड़ बेचारा कई दिनों से भूखा था नगाड़े को ऊँचे स्थान पर रखा देखकर वह कुछ देर के लिये रूका|

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देखते ही देखते हवा के एक झोंके से नगाड़ा नीचे गिर गया फिर आसमान से वृक्षों में लटकी टहनियां हवा में उस नगाड़े पर पड़ने लगीं तो उसमें से आवाज आने लगी|

गीदड़ इन आवाजों को सुनकर डर गया| सोचने लगा कि अब क्या होगा? क्या मुझे यहां से भागना होगा?

नहीं….नहीं| मैं अपने पूर्वजों के जंगल को छोड़कर नहीं जा सकता| भागने से पहले मुझे इस आवाज का रहस्य तो जानना ही होगा|

यही सोचकर वह धीरे-धीरे उस नगाड़े के पास पहुंच गया, कितनी ही देर तक उसे देखते रहने के पश्चात् वह सोचने लगा कि यह नगाड़ा तो बहुत बड़ा है| इसकी शक्ति भी कुछ कम नहीं फिर इसका पेट भी बहुत बड़ा है| इसको चीरने से तो बहुत चर्बी और मांस खाने को मिलेगा|

वाह-वाह…अब तो खूब आनन्द आएगा खाने में|

बस यही सोचकर उस गीदड़ ने नगाड़े का चमड़ा फाड़ दिया और भीतर घुस गया| उसके अन्दर था ढोल का पोल|

गीदड़ वहां पर कुछ भी न पाकर बहुत निराशा हुआ इस नगाड़े को फाड़ने में तो उसके दांत भी टूट गए थे| किन्तु मिला क्या कुछ भी नहीं बस इस नगाड़े से डर रहा था| तो भी कुछ नहीं हुआ| वह स्वयं से कहने लगा, देखो केवल आवाज से ही नही डरना चाहिए| इंसान को बुजदिल भी नहीं बनना चाहिये|

शेर न दमनक की ओर देखकर कहा|

देखे भद्र, मेरे साथी इस समय बहुत डरे हुए है| यह सब के सब भाग जाना चाहते थे| बताओ मैं अकेला क्या करूं?

यह इनका दोष नहीं महाराज, आप तो जानते ही है जैसा राजा वैसी प्रजा फिर…|

घोड़ा, शस्त्र, शासन, वीणा, वाणी, नर और नारी यह सब पुरूष विशेष को पाकर योग्य और अयोग्य होते है, इसलिए आप तब तक यही रहें जब तक मैं पूरी सच्चाई का पता लगाकर वापस न आऊं|

क्या आप वहां जाने का इरादा रखते हो|

जी हां महाराज| अच्छे और वफादार दास का जो कर्तव्य है मैं उसे पूरा करूंगा| बड़े लोग यह कह गये है अपने मालिक का कहना मानने में भी झिझकना नहीं चाहिए| चाहे उसे सांप का मुंह में या सागर की गहराइयों में ही क्यों न जाना पड़े| अपने मालिक के आदेशों का जो भी सेवक यह नहीं सोचता कि वह कठिन है अथवा सरल वही महान होता है|

पिंगलक दमनक की बातों को बहुत खुश हो गया था, उसने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, यदि यह बात है तो जाओ भगवान तुम्हें इस काम में सफलता दे|

धन्यवाद! मेरी मालिक, भगवान ने चाहा तो सफलता पाकर ही लौटूगा| इतना कहकर दमनक वहां से उठकर रस और चल दिया जहां से इस बैल की आवाज सुनी गई थी|

दमनक के चले जाने के पश्चात् शेर सोचने लगा कि मैंने यह अच्छा नहीं किया जो अपने सारे भेद बता दिए कही यह शत्रु का जासूस सिद्ध कर रहा हो| यह भी हो सकता है कि वह मुझसे पुराना बदला चुकाना चाहता हो क्योंकि मैंने इसे पड़ से हटाया था| इस बारे में कहा गया है|

जो लोग राजा के यहां पहले से ऊंचे पद पर होते हुए बड़ी इज्जत मान रखते हैं यदि उन्हे उस पद से हटा दिया जाए तो वे अच्छे होते हुए भी उस राजा के शत्रु बन जाते है| वे अपने अपमान का बदला लेना चाहते हैं इसलिए मैं उस दमनक को परखने के लिए वहां जाकर दूसरे स्थान पर रहना शुरू कर देता हूं| यह भी हो सकता है कि दमनक उसे साथ लेकर मुझे मरवा ही डाले| ऐसे ही लोगों के बारे में कहा गया है|

विश्वास न करने वाले कमजोर प्राणी बलवानों से भी नहीं मर सकते और कभी-कभी बलवान भी विश्वास करने पर कमजोर के हाथों मारे जाते है|

कसमें खाकर संधि करने वाले शत्रु का भी विश्वास नहीं करना चाहिये| राज्य प्राप्त करने के लिए उद्धत वृत्रासुर के समान ही इन्द्र द्वारा माना जाता है|

देवताओं का शत्रु भी बिना विश्वास दिलाए बस मैं नहीं होता| इसी विश्वास के धोखे से तो इन्द्र के दिवि के गर्भ को नष्ट कर दिया था|

यह सब सोचकर पिंगलक किसी दूसरे स्थान पर जाकर दमनक के रास्ते को देखते हुए किसी दूसरी जगह पर जाकर बैठ गया|

दमनक जैसे ही बैल के पास पहुंचा वह दिल ही दिल में खुश हो रहा था| क्योंकि उसे अपने पुराने मालिक को खुश करने पर अपनी खोई हुई इज्जत प्राप्त करने का एक सुन्दर अवसर मिला था|

बैल से मिलकर वह वापस अपने मालिक के पास जाने लगा तो सोच रहा था विद्वानों ने ठीक ही कहा है|

राजमंत्रियों के कहने पर उस समय उस दयालु और सच्चाई के मार्ग पर नहीं चलता, जब तक वह स्वयं दुःख न उठा ले| दुःख में और मुसीबत में फँसकर ही राजा को वास्तविक जीवन का पता चलता है| इसलिए मंत्री लोग दिल से चाहते है कि राजा भी कभी-न-कभी दुःख झेले|

जैसे स्वस्थ प्राणी किसी अच्छे डाक्टर को नहीं चाहता वैसे ही दु:खों और संकटों से बचा हुआ राजा किसी अच्छे मंत्री को नहीं चाहता|

यही सोचता हुआ दमनक वापस शेर के पास पहुंच गया| शेर भी दूर से आता उसे देख रहा था| उसने पहले से ही अपने को आते हुए खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार कर रखा था|

दमनक को अकेले आते देखकर वह समझ गया था कि डर वाली कोई बात नहीं| उसने दमनक से पूछा|

मित्र! तुम उस भयंकर जानवर से मिल आए हो? जी हां|

क्या वह अभी वहीं है शेर ने आश्चर्य से पूछा|

महाराजा क्या आप यह सोच सकते है कि मैं अपने मालिक के सामने झूठ बोलूंगा| आपको याद नहीं|

जो पुरूष राजा और विद्वानों के आगे झूठ बोलता है वह कितना ही महान क्यों न हो, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है|

पिंगलक (शेर) बोला-यह ठीक है तुमने उसे देखा होगा| छोटों पर बड़े क्रोध नहीं करते इसलिए उसने तुम्हें कुछ नहीं कहा होगा|

महाराज! कभी भी नीचे झुक तिलकों को धरती पर बिछी हुई घास कुछ नहीं कहती| सदा बड़े ही बड़ो पर अपने शक्ति दिखाते हैं|

जैसेम मस्त भंवरे जब किसी हाथी के कान के निकट जाकर जब अपना राग अलापते है तो वह हाथी कभी उसे भंवरे पर गुस्सा नहीं करता क्योंकि बलवान सदा बलवान पर गुस्सा करता हो|

ठीक है मेरे मित्र! मैं तुम्हारी बातों से खुश हुआ| अब उस भयंकर जानवर के बारे में भी तो कुछ बताओ, जिसकी गर्जना से जंगल कांप उठता है|

जो महाराज यदि आप कहें तो मैं उस भयंकर जानवर को भी आपकी सेवा में ला दूं| पिंगलक ने एक ठंडी सांस धरते हुए कहा| क्या यह हो सकता है?

महाराजा बुद्धि से क्या नहीं हो सकता| यह बात भी सत्य है कि बुद्धि द्वारा जो काम बन सकता है वह हथियारो से नहीं बनता|

यदि ऐसा तुम कर दिखाओगे दमनक तो मुझे बहुत पहले खुशी होगी, वैसे मैं तुम्हारी बातों से बहुत प्रभावित हुआ हूं| आज से तुम्हें अपना मित्र बनाता हूं| मेरे सारे काम को तुम ही देख रेख करोगे|

धन्यवाद महाराज! मैं आपको वचना देता हूं कि मैं आपकी सेवा सच्चे दिल से करूंगा| आप मुणे आशीर्वाद दें कि मैं उस भयंकर जानवर को ले आकर उसे आपके रास्ते से हटा सकूं| जाओ दमनक मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ है|

दमनक अपने पुराने मालिक और अपने खोए हुए पद को पाकर अत्यंत खुश हो गया था| वह वहां से सीधा उस बैल के पास पहुंचा, जाते ही उसने बैल से कहा|

ओ दुष्ट बैल! इधर आ, मेरा मालिक पिंगलक तुझे बुला रहा है|

उसकी बात सुनते ही बैल ने आश्चर्य से पूछा-मित्र यह पिंगलक कौर है|

अरे क्या तू मेरे मालिक को नहीं जानता| कमाल है तुझे इस जंगल में रहकर भी नहीं पता कि वहां सामने बड़ के पेड़ के नीचे पिंगलक नाम का शेर रहता है|

बैल उसके मुंह से योग की बात सुनकर डर-सा गया किन्तु फिर भी अपने आपको संभालता हुआ बोला-देखो मित्र यदि तुम मुझे अपने मालिक के पास ले जाना चाहते हो तो मेरी रक्षा की सारी जिम्मेदारी तुम पर ही होगी|

हां, हां मित्र तुम ठीक कहते हो| मेरी नीति भी यही है| धरती सागर और पहाड़ का तो अन्त पाया जा सकता है किन्तु राजा के दिल का भेद आज तक किसी ने नहीं पाया इसलिए तुम इस समय तक यहां पर ठहरो जब तक मैं अपने मालिक से सारी बात करके वापिस न आ जाऊं|

ठीक है मित्र! मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा| बैल ने हंसकर उत्तर दिया|

दमनक बैल को नहीं छोड़कर खुशी से छलांग लगाता हुआ फिर शेर के पास पहुंचा| शेर अपने मंत्री को आते देखकर खुश था| उसने पूछा-

कहो मंत्री! क्या खबर लाए हो?

महाराज वह कोई साधारण बैल नहीं है| वह तो भगवान शंकर का वाहन बैल है| स्वयं शंकर जी ने उसे इस जंगल में खाने के लिए भेजा है|

पिंगलक ने हैरानी से कहा-अब मुझे ठीक-ठीक बात पता चल गई| वह बैल इस जंगल में क्यों आता है| इसके पास देवताओं की शक्ति है| अब यहां के जीव-जन्तु उसके सामने आजादी से नहीं धूम सकते मगर मंत्री तुमने उससे क्या कहा?-

मैंने उससे कहा, ये जंगल चंडी के वाहन मेरे राजा पिंगलक नामक शेर के अधिकार में है इसलिए आप हमारे मेहमान हैं| मेहमान की सेवा करना हमारा सर्वप्रथम धर्म है| इसलिए मैं अपने राजा की ओर से आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप हमारे साथ रहें|

वह क्या बोला?

महाराज! वह मेरे साथ आने को तैयार हो गया| अब तो मैं केवल आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहा हूं कहो तो उसे आपसे पास ले आऊं|

दमनक तुमने हमारे दिल की बात कह दी| मैं बहुत खुश हूं| जाओ तुम जल्दी से उसे मेरे पास ले जाओ| मुझे तो यह बात बार-बार याद आती है|

जैसे शक्तिशाली खम्भों पर भवन खड़ा किया जाता है वैसे ही बुद्धिमान मंत्री के कंध पर राज्य को बोझ डाला जाता है|

दमनक अपने राजा के मुंह से पानी प्रशंसा सुनकर बहुत खुश हुआ और फिर वहां से वापिस उस बैल की ओर चल दिया|

बैल दमनक की बात सुनकर बहुत खुश हुआ और शेर का निमत्रंण पाते ही बोला| जैसे-

सर्दी में आग अमृत जैसी है, अपने मित्र का दर्शन अमृत है दूध का भोजन खीर अमृत है और राज साज सम्मान घी ऐसे ही अमृत हैं हम अपने मित्र सिंह के पास चलेंगे|

दमनक ने बैल से कहा-देखो मित्र! मैं तुम्हें वहां पर ले जा रहा हूं| मैंने ही शेर से तुम्हारी मित्रता करवाई है| इसलिए तुम्हें मुझे यह वचन देना होगा कि तुम सदा मेरे मित्र बने रहना| राजा सदा राजा ही रहता है मंत्री ही किन्तु शिकारी की नीति से राज्य वैभव मनुष्यों के बस में हो जाता है| एक तो प्रजा को प्रेरित करता है दूसरा यानि शिकारी मृगों की भांति उसे मार देता है|

जो प्राणी गर्व के कारण उत्तम, मद्धम और अद्धम इन तीनों प्रकार के मनुष्यों का यथा सत्कार नहीं करता वह राजा से आदर पाकर भी दम्तिल के समान भ्रष्ट हो जाता है|

जब गौतम