बुद्धिमान बलवान
किसी जंगल में एक शेर रहता था| वह नित्य ही हिरण, मोर, खरगोश इत्यादि जानवरों को मारकर खा जाता था| बेचारे जानवर शेर के आतंक से तंग आकर एक दिन जंगल के जानवरों मोर, हिरण, भैंस, खरगोश आदि ने मिलकर यह निर्णय लिया की वे सब शेर के पास जाएंगे और उससे सारी बात तय करेंगे|
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इस प्रकार सभी जानवर इकट्ठे होकर शेर के पास पहुंच गए और कहा|
हे जंगल के राजा! आप हमारे साथ यह समझौता कर लें कि आप हम सबको एक साथ तंग नहीं करेंगे| हम आपके भोजन के लिए नित्य एक जानवर को यहीं पर बैठ-बैठे भेज दिया करेंगे| उससे आपको भी कोई कष्ट नहीं होगा ओर हमें भी पता चल जायेगा कि हमारा जीवन कितना बाकी है|
उन सबकी बातें सुनकर शेर बोला-वाह! आप लोग भी ठीक कहते हैं| परन्तु यदि मेरे यहां बैठे-बैठे एक जानवर नहीं आएगा तो मैं सबको ही खा जाऊंगा|
नहीं महाराज, यह नहीं होगा| आप हम पर विश्वास रखिए| हम अपने वचन का पालन करेंगे| यह कहकर सभी जानवर वहां से आ गए ओर अपने वचन के अनुसार रोजाना ही एक जानवर शेर के पास उसके भोजन के रूप से चला जाता|
एक बार जब छोटे खरगोश की बारी आई तो वह बेवजह भाग्य का मारा सोचता जा रहा था कि किस प्रकार उसकी जान बच सके| यही सोचता-सोचता वह धीरे-धीरे चल रहा था| रास्ते में उसने एक पुराना कुआं देखा| उस कूएं में जैसे ही उसने झांककर देखा| उसे अपनी छाया नजर आई|
बस बन गया काम| खरगोश के उदास चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई| वह धीरे-धीरे शेर की ओर जाने लगा|
उधर शेर जी महाराज क्रोध से पागल हुए अपने भोजन की प्रतीक्षा कर रहे थे क्योंकि समय के हिसाब से उसका भोजन काफी लेट हो गया था|
जैसे ही शेर ने खरगोश को आते देखा वो क्रोध से भर उठा और बोला –
हे जंगल के राजा! मैं अपनी भूल को स्वीकार करते हुए आपसे यही कहूंगा कि मैंने ओर मेरे साथियों ने यह जान लिया था कि मेरे अकेले के खाने से आपका पेट नहीं भरेगा| इसलिए हम यहां से पांच खरगोश इकट्ठे चले थे| पर वाह रे नसी! अभी रास्ते में ही थे कि एक गुफा में जंगल का राजा आपका भाई निकल आया| उसने निकलते ही कह –
अरे ओ खरगोश के बच्चे इधर आओ|
हम उस शेर की बात सुनकर डर गए| फिर भी मैंने आगे बढ़कर कहा|
देखो महाराज! हम अपने राजा के पास जा रहे हैं| आप हमें रोकने का कष्ट न करें|
कौन राजा? कैसा राजा? अरे जंगल के तो असली राजा हम हैं| हमारे होते हुए दूसरा कोई राजा नहीं बन सकता| यदि कोई तुम्हारा राजा है तो चार खरगोश को मेरे पास छोड़ जाओ| अब निर्णय करके ही रहेंगे कि कौन इस जंगल का राजा है| सो मैं वहां से भाग आया अब आप ही बतलाओ हम क्या करें?
यह सुनते ही शेर को और भी क्रोध आ गया| उसने खरगोश की ओर देखकर कहा मेरे मित्र चलो आज हम उसे देखते हैं| भला मेरे होते हुए दूसरा कोई राजा कैसे बन सकता है| आज मैं उसके मांस से अपना भोजन करुंगा, इसलिए कहा गया है कि –
लड़ाई के तीन कारण हैं| १. भूमि, २. स्त्री, ३. धन यदि इन तीनों में से एक भी प्राप्त न होती हो तो कभी भी लड़ाई न करे|
खरगोश ने कहा, महाराज! यह सत्य है कि अपनी भूमि पर और ऐश्वर्य के कारण से ही बहादुर लोग युद्ध करते हैं| किन्तु वह किले के सहारे में हैं| किले से निकलकर ही उसने हमें रोका था| किले के अन्दर रहने वाले शत्रु को बड़ी कठिनाई से जीता जा सकता है|
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप के डर के कारण गुरु बृहस्पति की आज्ञा से विश्वकर्मा ने इन्द्र किला बनाया था| उसने यह वर दिया था कि जिसके पास किला होगा वही इस पृथ्वी पर विजयी होगा तभी हजारों किले बन गये|
जैसे दांतों के बिना सांप मस्ती के बिना हाथी सबके वश में आ जाते हैं, उसी प्रकार किले के राजा को भी जीत सकते हैं|
खरगोश की बात सुन शेर गरजकर बोला, मेरे भाई तुम जल्दी से उस शेर को दिखा ताकि मैं उसे ठिकाने लगा सकूं|
अपनी ताकत इज्जत मर्यादा ओर उत्साह को देखकर जो राजा युद्ध के लिए जाता है| वह अकेले ही परशुराम की भांति शत्रु को मारता है|
महाराज! मैं आपकी सब बातों को मानता हूं| किन्तु यह बात याद रखें कि वह बड़ा बलवान है| मैंने उसे निकट से देखा है| उसकी ताकत जाने बिना आपकी उसके पास नहीं जाना चाहिए|
ओ पागल खरगोश! तुझे इन बातों से क्या लेना मैं जंगल का राजा हूं| मैं किसी चीज से नहीं डरता चल तू मेरे साथ उसका किला दिखा फिर कोई बात करेंगे समझा|
खरगोश की चाल सफल हो गई थी| वह शेर को साथ लेकर कुएं के पास पहुंचा जिसे वह पहले ही देख आया था| वहीं पर रूक खरगोश बोला|
देखा महाराज, यह उस शेर का किला आप उसे देखो और लड़ो|
शेर ने कुएं में जैसे ही झांककर देखा तो उस पानी में वैसा ही शेर नजर आया| वास्तव में यह उसी की छाया थी|
शेर को सामने देखकर वह क्रोध से गरज उठा|
उसकी गरज कुएं से टकराकर फिर उसके ही कान में पड़ी तो उसने समझा कि नीचे का शेर गरज रहा है| शेर का क्रोध बढ़ गया है| क्रोध में अंधा होकर उसने शेर को मारने के लिए कुएं में छलांग लगा दी|
पास खड़ा खरगोश खुशी से नाचता हुआ बोला-
वाह मेरे शेर तू भी भूखा मरा….|
खुशी से नाचता हुआ खरगोश अपने दूसरे साथियों के पास पहुंचा| उसने जैसे ही शेर के मरने की खबर सुनाई| सब लोग खरगोश की बुद्धि पर बहुत खुश हुए| उन्हें नई आज़ादी मिल गई थी|
इसलिए तो कहता हूं कि जिसकी बुद्धि उसी का बल| यदि आप कहें तो मैं भी अपनी बुद्धि को वहां जाकर आजमाऊं इससे उन दोनों की मित्रता तोड़ दूं|
अवश्य जाओ मेरे मित्र! सफलता तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है| करकट ने कहा-दमनक वहां से चल पड़ा| उसके जाते ही पिंगलक को अकेले बैठा देख मौका अच्छा था| जाते ही उसे प्रणाम किया और उसके चरणों में बैठ गया|
क्या बात है दमनक| बहुत दिनों के पश्चात् नजर आ रहे हो|
महाराज! ऐसा लगता है आपको हमसे लगाव नहीं रहा| मगर जब मैंने यह देखा कि हमारे राज्य की हालत खराब हो रही है तब मुझसे नहीं रहा गया| मैं सीधा आपके पास चला आया|
नहीं मित्र, मैं आपको कभी नहीं भूल सकता| तुमने तो मुझे एक ऐसा मित्र लाकर दिया| जिसने हमारा जीवन ही बदल दिया| ऐसा शक्तिशाली मित्र पाकर तो हम बिल्कुल ही चिन्ता मुक्त हो गए हैं|
दमनक ने मौका ताड़ा और झट से बोला-महाराज! आपकी सब बातें ठीक होते भी गलत हैं क्योंकि आप तो यह भूल ही गए कि आपका यह मित्र घास खाने वाला है यदि किसी घास खाने वाले शत्रु ने आप पर हमला कर दिया तो वह उनका मुकाबला नहीं कर सकेगा| इस प्रकार आप धोखे में ही मारे जाएंगे| इससे तो अच्छा है कि आप पहले दांव लेकर उसे मार डालें|
जिस वृक्ष को आपने अपने हाथों से लगाया हो उसे स्वयं काटना बड़ा कठिन है|
शेर बोला, देखा मित्र प्रतिज्ञा भंग करने वाले को चाहिए कि सभा में पहले जिसका गुणगान हो उसको फिर दोषी न कहें| तुम्हारे कहने से ही इसे मैंने अपना साथी बनाया है तो अब तुम ही बताओ कि मैं इसे कैसे मारूं| यह बैल हमारा मित्र है| इसके विरुद्ध कोई भी दोष नहीं है|
महाराज! एक बात याद रखो जिसके स्वभाव का ज्ञान न हो उसे सहारा मत दो| खटमल के दोष पर धीरे-धीरे सरकने वाली जूं मारी गई थी|