बेवक्त के गीत
एक बेचारा गधा भूखा प्यासा इधर-उधर घूमा करता था| एक दिन उसकी मित्रता एक गीदड़ के साथ हो गई| गीदड़ के साथ रहकर वह गधा खूब मौज मस्ती मारता| इस प्रकार वह दिन रात मोटा होने लगा|
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एक रात वह गीदड़ के साथ खरबूजे के खेतों में खूब माल खा रहा था, खाते-खाते गधे ने कहा-मामा क्या मैं तुम्हें राग सुनाऊं मुझे बहुत अच्छा राग आता है| गीदड़ बोला, ओ भांजे हम यहां चोरी करने आये हैं, यह राग गाने का समय नहीं है| कहा भी है कि खांसी वाले आदमी को चोरी नहीं करनी चाहिए, रोगी को जबान का स्वाद छोड़ देना चाहिए| तुम्हारा गाना सुनकर खेत के रखवाले पकड़ लेंगे या फिर आकर मारेंगे| मामा तुम जंगली होकर गीत का आनन्द नहीं जानते हो| विद्या तो कला है जिस पर देवता भी मोहित हो जाते हैं|
गीदड़ बोला, हे भांजे तुम तो गाना नहीं जानते हो खाली रेंकते हो| बेताल और बेसुरा|
गधा क्रोध से बोला-क्या मैं गाना नहीं जानता अरे सात स्वर, तीन ग्राम, इक्कीस मूर्क्छन, उनन्चास ताल, नवरस छत्तीस रंग, चालीस रंग, चालीस भाग यह कुल १६५ गाने के भेद प्राचीनकाल में रतमुनि के वेद सार रूप कहे हैं| मैं अनजान हूं|
अच्छा भांजे मैं खेत से बाहर जाकर खेत के रखवाले को देखता हूं| तब तुम खुलकर गाना| इतना कह गीदड़ चला गया| गधा अपना राग अलापने लगा| गधे की आवाज सुनकर खेत का रक्षक भागा आया| उसने लाठियों से गधे की खूब पिटाई की, वह गिर गया| फिर संभलकर वहां से भाग खड़ा हुआ|
गधे को भागते देख गीदड़ बोला क्यों भांजे! आया मजा बेवक्त गाने का|