घोड़े की आजादी – शिक्षाप्रद कथा
घोड़े पहले दूसरे जंगली जानवरों की भांति जंगलों में रहा करते थे| दूसरे जानवरों की भांति उनका भी शिकार होता था|
एक बार जंगल से एक घोड़ा एक किसान के पास आया और कहने लगा, “भाई, मेरी मदद करो| जंगल में एक बाघ आ गया है| वह मुझे मार डालना चाहता है|”
किसान को घोड़े पर तरस आ गया|
किसान ने कहा, “अरे मित्र, चिंता मत करो! वह बाघ तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता| बाघ से तुम्हारी रक्षा मैं करूंगा| मगर तुम्हें मेरा कहा मानना होगा|”
घोड़ा बिना सोचे-समझे तैयार हो गया|
“मुझे क्या करना होगा?” डरते-डरते घोड़े ने पूछा|
“तुम्हें मेरा कहा मानना होगा| जैसा मैं कहूं वैसा करना होगा|” किसान ने कहा|
“तुम जो चाहो, सो करो| पर कृपा करके मुझे उस बाघ से बचा लो|”
किसान ने उसके गले में रस्सी डाली और अपने घर ले आया|
“अब तुम एकदम सुरक्षित हो| जब मैं तुम्हें बाहर ले जाऊंगा, तब मैं तुम्हारी पीठ पर सवार रहूंगा| मैं तुम्हारे साथ रहूंगा, तो बाघ तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगा|”
“ठीक है| मगर क्या यहां मुझे खाना भी मिलेगा?”
“बिल्कुल मिलेगा| मैं तुम्हें ताज़ी घास और चने खिलाया करूंगा|”
किसान की बात सुनकर थोड़ा खुश हो गया|
अब किसान ने उस पर सवारी करनी शुरू की| गले में लगाम और पीठ पर काठी भी कसवा दी|
इस नए जीवन को पाकर घोड़ा अपने आपको धन्य समझने लगा|
मगर कुछ ही दिन में घोड़े को लगने लगा कि यह मैं कहां आ फंसा|
उसने मन ही मन सोचा कि मैं यहां सुरक्षित जरूर हूं, पर स्वतंत्र नहीं हूं| मैंने सुरक्षा प्राप्त की, पर अपनी आजादी गंवा दी|
यह तो बहुत बुरा सौदा हुआ| पर अब मैं मजबूर हूं| बिना सोचे-समझे मैंने एक शिकार के डर की वजह से ऐसा करार कर लिया| काश! उस दिन मैं इतना न डर गया होता और साहस से काम लेकर स्वयं अपनी रक्षा करता तो आज गुलाम न होता और उस दिन से आज तक घोड़ा इंसानों का गुलाम है|