दूसरे का काम देखो, आराम नहीं – शिक्षाप्रद कथा
किसी गांव में एक व्यक्ति रहता था| वह शिकार खेलने का बेहद शौकीन था| इसके लिए उसने दो कुत्ते पाल रखे थे| एक कुत्ते को उसने बाकायदा शिकार करने का प्रशिक्षण भी दिलवाया था| दूसरे कुत्ते को वह घर की रखवाली के लिए रखे हुए थे|
पहले कुत्ते को शिकार का प्रशिक्षण पाकर अपने ऊपर बहुत अभिमान हो गया| वह दूसरे कुत्ते से अपने आप को श्रेष्ठ समझता और उसे घृणा भरी दृष्टि से देखता था|
जब वह आदमी शिकार पर जाता तो शिकारी कुत्ते को अपने साथ ले जाता और दूसरे कुत्ते को घर की रखवाली के लिए छोड़ दिया| शिकार से लौटकर आने के बाद वह मारे गए शिकार का एक भाग घर की रखवाली करने वाले कुत्ते को देता| शिकारी कुत्ते को अपने मालिक की यह बात पसंद नहीं थी|
“यह अन्याय है| मैं मालिक के साथ शिकार करने जाता हूं| तुम तो घर की रखवाली के नाम पर दिन भर आलसियों की तरह बैठे रहते हो| मगर जब मैं दिन भर मेहनत से शिकार कर वापस आता हूं तो मारे गए शिकार में तुम्हें भी हिस्सा मिलता है| मुझे इस बात से घृणा है!” शिकारी कुत्ते ने क्रोधित होकर कहा|
“देखो!” दूसरे कुत्ते ने समझाते हुए कहा – “यह सही है कि मैं मालिक के साथ शिकार खेलने नहीं जाता| परंतु यह भी सच है कि मुझे शिकार करना नहीं सिखाया गया है| इसके अलावा, तुम तो मालिक के साथ शिकार खेलने जाते हो| तुम्हारे साथ कम से कम कोई रहता तो है| मैं तो यहां दिनभर बिल्कुल अकेला रहता हूं| कोई मेरा साथी नहीं है| तुम्हें तो रोज ताजी हवा भी मिलती है| तुम्हारे जीवन में कुछ परिवर्तन तो आता है| मेरे जीवन में तो नीरसता आ गई है| इस सबके बावजूद भी मैं अपना कर्तव्य परिश्रमपूर्वक निभाता हूं| तुम हो कि मांस के एक छोटे से टुकड़े के लिए मुझसे द्वेष भाव रखते हो!”
मगर शिकारी कुत्ते को इस उत्तर से संतोष न हुआ और वह मन ही मन में कुढ़ता रहा|
शिक्षा: ईर्ष्या शत्रुता की जननी है| हरेक के कार्य की अलग उपयोगिता है|