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असंतुष्ट धनी – शिक्षाप्रद कथा

असंतुष्ट धनी - शिक्षाप्रद कथा

किसी गांव में एक धनी व्यक्ति रहता था| उसके पास अनगिनत भेड़ें थीं| उसने अपनी भेड़ें चराने के लिए एक व्यक्ति को नौकर रखा हुआ था| एक बार उस धनी व्यक्ति को ऐसे स्थान पर जाना पड़ा, जहां समुद्र था| वह समुद्र के किनारे तट पर बैठ गया| सुबह का समय था और समुद्र भी शांत था| वह तट पर बैठा ठंडी हवा का आनन्द ले रहा था तथा दूर लंगर डालकर खड़े जहाजों को देख रहा था| उसने व्यापारियों को अपने जहाजों से उतर कर नावों में अपने माल के साथ बदंरगाह पर आते देखा| वे तटीय क्षेत्रों में आकर अपना माल बेचते या माल उतार कर वापस लौट जाते| वह यह सब देखकर इतना रोमांचित हुआ कि उसने निश्चय कर लिया कि वह भी व्यापारी बनेगा|

गांव वापस आकर उसने अपनी सभी भेड़ें तथा अचल सम्पत्ति बेच दी और एक जहाज खरीद लिया| कुछ दिनों की कठिन तैयारी के बाद वह जहाज पर सवार होकर यात्रा के लिए निकल पड़ा| तीन दिनों तक यात्रा सुखदपूर्ण रही|

मौसम अच्छा था और समुद्र शांत था|

परंतु चौथे दिन मौसम खराब हो गया| शाम होते ही भयंकर हवाएं चलने लगीं| तूफान से जहाज एक ओर को झुकने लगा| समुद्र अशांत हो गया| समुद्र में उठती ऊंची-ऊंची लहरें जहाज को किसी खिलौने के समान ऊपर-नीचे पटकने लगीं| उस धनी व्यक्ति ने जहाज को बचाने के लिए सभी प्रयत्न किए, परंतु उसके प्रयत्न बेकार साबित हुए| जहाज जोर की आवाज के साथ पानी की सतह पर उभरी एक चट्टान से टकराकर डूब गया| उसके सभी कर्मचारी मारे गए| केवल धनी व्यक्ति ही जीवित बचा| वह एक जीवन रक्षक नौका द्वारा किसी प्रकार समुद्र तट तक पहुंचा| उसके बाद किसी प्रकार बचता-बचाता सकुशल अपने गांव पहुंचने में सफल हो गया| मगर उसका सब कुछ नष्ट हो चूका था| अब वह एक गरीब आदमी था| अंत में उसने उसी चरवाहे की भेड़ें चरानी आरम्भ कर दीं, जिसे उसने एक बार अपनी भेड़ें चराने के लिए नौकर रखा था|

इस पारकर उस धनी व्यक्ति के भाग्य का सितारा ही डूब गया| वह निर्धन हो गया|

शिक्षा: जरूरी नहीं कि हर कार्य प्रत्येक व्यक्ति कर सके|

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