दो की लड़ाई तीसरे का लाभ – शिक्षाप्रद कथा
एक बार एक सिंह और एक भालू जंगल में अपने शिकार की तलाश में घूम रहे थे| दोनों ही भूख से व्याकुल थे| अचानक उन्हें एक हिरन का बच्चा दिखाई दिया| दोनों ने एक ही बार आक्रमण कर उस हिरण के बच्चे को मार दिया| परंतु बच्चा इतना छोटा था कि वह उन दोनों में से किसी के लिए भी पर्याप्त भोजन नहीं था|
बस, फिर क्या था, सिंह और भालू आपस में बुरी तरह लड़ने लगे| दोनों का क्रोध इतना बढ़ा कि बुरी तरह एक-दूसरे को नोचते-खसोटने लगे| दोनों ही शिकार को अकेले खाना चाहते थे| बंटवारा उन्हें कबूल नहीं था| इस झगड़े में वे बुरी तरह घायल हो गए और लहूलुहान होकर अपनी-अपनी पीठ के बल लेट गए और एक-दूसरे पर गुर्राने लगे| वे इतनी बुरी तरह घायल हो गए थे कि अब उनमें उठने की शक्ति भी नहीं रह गई थी|
तभी एक होशियार लोमड़ी उधर से गुजरी| उसने उन दोनों को घायल अवस्था में पड़े हुए देखा| उनके बीच एक मरे हुए हिरन के बच्चे को देखकर लोमड़ी सब कुछ समझ गई|
बस, उसने सीधे उन दोनों के बीच घुस कर हिरन के बच्चे को खींच लिया और झाड़ियों के पीछे चली गई|
सिंह और भालू तो इतनी दयनीय स्थिति में थे कि अपने हाथ-पैर भी नहीं हिला सकते थे| वे दोनों लाचार से लोमड़ी को अपना शिकार ले जाते देखते रहे|
अंत में सिंह ने कहा – “इतनी छोटी सी बात पर इतनी बुरी तरह लड़ना हमारी मूर्खता थी| यदि हमारे भीतर जरा भी बुद्धि होती तो हम समझौता कर लेते| हम चाहते तो शिकार का बंटवारा भी कर सकते थे| लेकिन यह हमारे लालच का परिणाम है कि हम आज इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि एक लोमड़ी हमारे शिकार को खींच ले गई|”
यह सुनकर भालू ने भी सिर हिलाया – “हां दोस्त, तुम ठीक कह रहे हो!”
शिक्षा: दो की लड़ाई का लाभ सदा तीसरा कोई और ही उठाता है|