Homeशिक्षाप्रद कथाएँनाश की जड़ अहंकार – शिक्षाप्रद कथा

नाश की जड़ अहंकार – शिक्षाप्रद कथा

नाश की जड़ अहंकार - शिक्षाप्रद कथा

एक समय की घटना है, एक बूढ़े आदमी ने अपनी बहुत सी सम्पत्ति अपने पुत्र के नाम कर दी| उसने अपनी वसीयत में लिखा कि उसकी सारी सम्पत्ति उसके मरने के बाद उसके पुत्र की हो जाएगी| और वसीयत करने के कुछ दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो गई|

सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उसका पुत्र और आगे आने वाली सात पुश्तें तक भी आराम से बैठे-बैठे बिना कोई काम-धंधा किए खा-पी सकती थीं| मगर उसका पुत्र अभी भी संतुष्ट नहीं था, वह अधिक से अधिक धम कमाना चाहता था| इसलिए उसने अपनी सभी अचल सम्पत्ति बेच दी और भिन्न-भिन्न वस्तुओं की खरीद-फरोख्त कर उनका व्यापार करना आरंभ कर दिया|

भाग्यवश वह बहुत कम समय में अत्यधिक सफल हुआ तथा शीघ्र ही पहले से अधिक धनवान हो गया| उसने इतना अधिक धन इकट्ठा कर लिया कि दूसरे व्यापारी उससे ईर्ष्या करने लगे| कभी-कभी दूसरे व्यापारी या उसके मित्र उससे उसकी सफलता का रहस्य पूछते तो वह कहता – “मैं इसलिए उन्नति कर रहा हूं कि मैं अपने धंधे को समझता हूं और कठोर परिश्रम करता हूं| मैं अपने ग्राहकों को भी खुश रखना जानता हूं|”

चूंकि उसने सचमुच व्यापार में तरक्की की थी, इसलिए उसके मित्र और अन्य व्यापारी उसकी शेखीबाजी को सच मानते थे| अपनी इस कामयाबी के कारण उसमें बड़ा ही अहंकार आ गया था| मगर उसे फिर भी अपने धन से संतुष्टि नहीं थी, वह अभी भी बहुत-सा धन कमाना चाहता था| उसने व्यापार में अपने हाथ-पैर फैलाने आरंभ कर दिए| आरंभ में तो उसे व्यापार में लाभ हुआ| मगर उसका अहंकार इतना बढ़ गया था कि भाग्य की देवी उससे अप्रसन्न हो गई| उसे व्यापार में घाटा होने लगा|

पहली घटना तब हुई, जबकि माल से भरा उसका समुद्री जहाज डाकुओं ने लूट लिया| दूसरी घटना में माल से लदा जहाज अरब सागर में डूब गया| उसके भाग्य में कुछ न कुछ अपशकुन उत्पन्न हो गया था| तीसरी घटना ने उसे बिल्कुल ही उखाड़ फेंका| वह दर-दर का भिखारी बन गया| उसका सारा व्यापार चौपट हो गया|

उसकी यह दुर्दशा देखकर उसके मित्रों ने पूछा – “भाई, तुम्हारी यह दुर्दशा आखिर हुई कैसे?”

इस पर उसने अपने भाग्य को कोसा और कहा – “क्या बताऊं, किस्मत ने साथ नहीं दिया!”

भाग्य की देवी उसकी बात सुनकर अप्रसन्न हो गई| वह साक्षात उसके सामने प्रकट होकर बोली – “तुम सचमुच बहुत अकृतज्ञ हो| जब तक तुम सफलता की सीढ़ियां चढ़ते रहे, तब तक तुम उसका सारा श्रेय खुद लेते रहे, मगर जैसे ही हालात खराब हुए, तुमने भाग्य को धिक्कारना आरम्भ कर दिया| याद रखो मनुष्य की अकृतघ्नता तथा उसका अहंकार ही उसे ले डूबता है|”

शिक्षा: अहंकार से व्यक्ति का सर्वनाश हो जाता है|

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