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छिपकली का घर – शिक्षाप्रद कथा

छिपकली का घर - शिक्षाप्रद कथा

बहुत पुरानी बात है| दुनिया का निर्माण-कार्य गति पा चुका था| अनेक जीव-जन्तु अपने-अपने तरीकों से जिंदगी बिताने के लिए कामों में लगे थे| आदमी बुद्धिमान था, इसलिए उसने घर बनाकर गांव बसा लिए| उसने अपने घर को लीप-पोतकर सुंदर बनाने का तरीका भी सीख लिया था|

मगर छिपकली का कोई घर नहीं बन पाया था| इसका कारण यह था कि उसका नर अत्यंत आलसी और निकम्मा था| वह कुछ भी काम नहीं करता था|

बेचारी छिपकली ही उसके लिए कीड़े-मकोड़े मारकर लाती जिन्हें वह खा लेता और सो जाता| जाड़ों में वह एक चट्टान पर पड़ा धूप सेंकता, बरसात में चट्टान के नीचे किसी दरार में दुबक जाता और गर्मियों में चट्टान के पास छाया में लेट लगाता| उसका यही काम था – खाओ-पिओ और ऐश करो|

छिपकली अपने नर की काहिली पर बहुत दुखी होती, उसे समझाने की कोशिश करती और नर को अपना घर बनाने के लिए उकसाती| नर उसे बड़े-बड़े आश्वासन देता और फिर सो जाता|

आए दिन ऐसा होता था| अब तो छिपकली भी उसे समझाते-समझाते थक चुकी थी| अंत में थक-हारकर उसने उससे कुछ कहना ही छोड़ दिया|

एक दिन छिपकली भोजन की तलाश में घूमती-घामती एक गांव के पास पहुंची| उसने वहां मनुष्यों के सुंदर-सुंदर घर देखे| उन सुंदर घरों को देखकर उसकी भी इच्छा हुई कि उसका भी अपना एक घर होना चाहिए| लेकिन घर होगा कहां? उसका नर तो बड़ा ही निकम्मा था| जब वह छोटे-मोटे काम ही नहीं कर पाता था तो भला घर कहां बना पाता|

उस दिन वह बड़े ही दुखी मन से अपने नर के पास आई| नर ने उससे भोजन मांगा तो वह रोने लगी| उसने नर को भला-बुरा कहा और उसे धिक्कारते हुए बोली – “जाकर मनुष्यों के घर देख| तू यूं ही जनम अकारथ कर रहा है| क्या तुझसे अपना एक घर भी नहीं बनाया जाता|”

“अच्छा, तू चिंता मत कर| बरसात बीतते ही मैं घर बनवाना शुरू कर दूंगा|” नर ने उसे आश्वासन दिया| भोली-भाली छिपकली फिर उसकी बातों में आ गई और अपने घर के सपने देखने लगी|

बरसात बीत गई तो छिपकली ने नर को घर बनाने की याद दिलाई| नर ने कहा – “बस काम शुरू करता हूं|”

इसी तरह जाड़े बीत गए|

छिपकली ने फिर पूछा, “तुम्हारा घर कब बन रहा है?”

नर ने कहा, “बस, बहुत जल्दी|”

फिर कुछ दिन इसी प्रकार बीत गए तो छिपकली ने पूछा, “घर बनाने का काम कैसा चल रहा है?”

“जमीन तय कर ली है| कल से चिनाई का काम शुरू करूंगा|”

छिपकली जब भी उससे पूछती, वह उसे इसी प्रकार की उलटी-सीधी पट्टियां पढ़ा देता| छिपकली इतनी भोली थी कि हर बार उसकी बातों में आ जाती थी|

इसी प्रकार दिन बीतते गए| नर आश्वासन देता रहा मगर घर नहीं बना| गर्मियां आईं| भयंकर गर्मी पड़ने लगी, गर्म लूएं चलने लगीं| चट्टान पर रहना मुश्किल हो गया तो एक दिन छिपकली रोने लगी|

नर ने कारण पूछा तो बोली, “तुम तो चिंता करते नहीं| हर बार मुझे झूठी-सच्ची बातें बताकर बहला देते हो| रहने का कहीं ठौर-ठिकाना नहीं है| आंधी आई तो यह चट्टान भी खिसक जाएगी| फिर कहां रहोगे?”

नर ने उसे आश्वासन दिया| मगर छिपकली रोटी रही| नर के बहुत समझाने-बुझाने पर भी छिपकली ने रोना बंद नहीं किया|

आखिर नर ने उसे प्यार से दुलारा और कहा, “अच्छा, आज तुम आराम करो| मैं भोजन लेने जा रहा हूं| मनुष्यों के घर भी देख आऊंगा, फिर अपना घर अवश्य बनाऊंगा|”

कहकर नर गाँव की ओर चला गया| वह गांव के पास पहुंचा तो उसने मनुष्यों के सुंदर-सुंदर घर देखे| उसने सारे गांव में घूम-फिरकर देखा| फिर वह छिपकली के पास लौट आया| छिपकली उसे खाली हाथ आया देखकर उदास हो गई| मगर नर उत्साह से बोला – “पगली! चिंता क्यों करती है| तू क्या समझ रही है कि मैं खाली हाथ हिलाता हुआ ही लौट आया हूं! अरी बावली! मैं तो अपना घर बना आया हूं| चल मेरे साथ|”

छिपकली खुश हो गई और दोनों गांव की ओर चल दिए| गांव के पास पहुंचकर नर छिपकली से बोला, “देख, ये सब हमारे ही घर हैं| हम लोग यहीं रहेंगे| इन्हीं घरों में हमारे बच्चे पलेंगे|”

छिपकली बोली, “अरे! यहां तो मैं रोज आती थी| मगर मेरे दिमाग में तो यह बात आई नहीं|”

“तूने कभी इस ढंग से सोचा ही नहीं| यहां देख, हमें खाने को मक्खियां, मच्छर और खूब कीट-पतंगे मिलेंगे| हम आराम से खाएंगे और सोएंगे|” नर ने कहा, फिर वे दोनों एक घर में घुस गए| नर घर में जाते ही एक दीवार पर चिपककर इत्मीनान से सो गया|

बस, तभी से छिपकली सपरिवार हम इंसानों के घरों में रहती है| पूरी दुनिया में कहीं भी छिपकली का अपना घर नहीं है क्योंकि छिपकली को अपना घर बनाना नहीं आता| सीखने की उन्हें जरूरत भी नहीं पड़ी|

 

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