भेड़िया और कुत्ता – शिक्षाप्रद कथा
किसी जंगल में एक भेड़िया रहता था| एक बार उसे कई दिनों तक भोजन नहीं मिला| बेचारा दुबला और कमजोर हो गया|
एक दिन उस भेड़िए ने शहर जाने की योजना बनाई| शहर में घूमते हुए उसे एक कुत्ता मिला, जो खूब मोटा-ताजा था| वह धीरे-धीरे उस कुत्ते के पास पहुंचा| कुत्ता भी भेड़िए को देखकर उसके स्वागत में अपनी दुम हिलाने लगा|
भेड़िया कुत्ते से बोला – “मित्र! काफी आराम का जीवन है तुम्हारा| तुम मोटे-ताजे हो और तुम्हारी चमड़ी भी बहुत चिकनी और सुंदर है| मैं सोचता हूं कि काश! मेरा जीवन भी ऐसा ही आरामदायक होता| परंतु होता कैसे? हमारे जैसे बदनसीब जानवरों को तो कभी-कभी कई-कई दिनों तक भूखा ही रहना पड़ता है| मुझे ही देखो| मुझे आधा पेट ही भोजन मिल पाता है| कोई भी बिना मेरी चमड़ी उधेड़े मेरी हड्डियां गिन सकता है|”
“ओह!” कुत्ता अत्यन्त सज्जनता से बोला – “अगर चाहो तो मेरे साथ आ जाओ| तुम भी मेरे समान ही जिन्दगी के मजे लूटोगे|”
भेड़िया मन ही मन बहुत खुश हुआ और कुत्ते का प्रस्ताव पाकर तुरंत राजी हो गया| दोनों अगल-बगल चलते हुए आगे बढ़े| जब वे साथ-साथ चल रहे थे, तभी भेड़िया ठिठक कर रुक सा गया और बोला – “अरे! यह तुम्हारी गरदन के बालों का क्या हुआ? ये बाल इतने पतले और घिसे हुए से कैसे हैं?”
“ओह! यह कुछ ख़ास नहीं है|” कुत्ते ने उत्तर दिया – “ऐसा उसी स्थान पर हुआ है, जहां पट्टा बंधा रहता है| तुम कह सकते हो यह पट्टे का निशान है| मेरा मालिक जब मुझे घर में बांधता है तो मेरे गले में एक पट्टा डाल देता है| मगर इससे मुझे कोई कष्ट नहीं होता|”
“कष्ट नहीं होता!” भेड़िया रूखे स्वर में बोला – “हो सकता है पट्टे से तुम्हारी गरदन में कष्ट न होता हो, मगर क्या यह तुम्हारी आत्मा को चोट नहीं पहुंचाता? नमस्ते दोस्त – अगर मुझे इस प्रकार रहना है, जैसे तुम रहते हो, तो मैं भूखा ही रहना पसंद करूंगा, बजाय इसके कि स्वादिष्ट भोजन खाने के लिए मुझे पट्टे डालकर जंजीरों में जकड़ दिया जाए| मैं गुलामी के जीवन की अपेक्षा भूखा मर जाना अधिक पसंद करूंगा|”
निष्कर्ष: ऐश्वर्य भरी गुलामी की जिन्दगी स्वतंत्रता से कहीं अधिक महंगी होती है|