भालू का क्रोध – शिक्षाप्रद कथा
एक बार एक भालू बहुत प्रसन्न मुद्रा में जंगल में घूम रहा था| उसे जिस भोजन की तलाश थी, वह था शहद| भालू को यह भी मालूम था कि उसे शहद कहां मिलेगा| उसने अपना थूथन उठाया, कुछ सूंघा और फिर एक ओर चल पड़ा| परंतु जैसे ही वह शहद वाले स्थान पर पहुंचा, एक मधुमक्खी उड़ती हुई आई और उसने भालू को डंक मार दिया| इससे भालू क्रोधित हो उठा और उससे पेड़ पर चढ़कर एक ही थूथन में शहद का छत्ता गिरा दिया|
मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करने में जुटी हुई थीं| इस अचानक हमले से वे भौचक्की रह गईं| मगर जल्द ही उन्हें भालू की करतूत का पता चल गया| फिर क्या था वे हजारों की संख्या में भालू पर टूट पड़ीं और उसे डंक मारने लगीं| भालू बेचारा अधमरा-सा हो गया| वह अपनी मुर्खता पर पश्चाताप करने लगा| जब मधुमक्खियां चली गेन तो वह खुद को धिक्कारने लगा – ‘मैं भी कितना मुर्ख था| निर्दोषों को दण्ड दे रहा था| एक मधुमक्खी के काटने पर मैंने अपना क्रोध पूरे छत्ते पर निकाला| यदि मैं चुपचाप आगे बढ़ जाता तो मेरे शरीर में हजारों डंक नहीं चुभते!’
शिक्षा: एकता से बड़ी शक्ति को भी परास्त किया जा सकता है|