अमीना की कहानी (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा
“जहांपनाह! मेरी मां मुझे लेकर अपने घर में आई ताकि उसे अकेलापन न खले, फिर उसने मेरा विवाह इसी नगर के बड़े आदमी के बेटे के साथ कर दिया| दुर्भाग्यवश एक ही वर्ष बीता था कि मेरा पति मर गया मगर उसकी सारी सम्पत्ति, जिसका मूल्य लगभग नब्बे हजार रियाल था, मेरे हाथ आ गई| इतना धन मेरी सारी जिन्दगी के लिए काफी था| जब पति को मेरे छह महीने हो गए तो मैंने दस बहुत मूल्यवान पोशाकें बनवाईं, जिनमें प्रत्येक का मूल्य एक-एक हजार रियाल था|
जब पति को मेरे एक वर्ष पूरा हो गया तो मैंने वे पोशाकें पहनना आरंभ कर दिया| एक दिन मैं अपने घर में अकेली बैठी थी कि मेरे एक सेवक ने मुझे आकर बताया कि एक बुढ़िया आपसे कुछ कहना चाहती है| आज्ञा हो तो उसे अंदर ले आऊं?
मैंने अनुमति दे दी| बुढ़िया अंदर आई और उसने भूमि चूमकर मुझे प्रणाम किया, फिर खड़े होकर कहने लगी, “मैंने आपकी दयालुता की बड़ी प्रशंसा सुनी है, इसलिए आपके सम्मुख कुछ अर्ज करना चाहती हूं| मेरे पास एक लड़की है जिसके माता-पिता नहीं हैं| आज रात को उसका विवाह है| हम दोनों इस नगर में अपरिचित हैं| जिस लड़के के साथ उसका विवाह होना है, वह धनी परिवार का है और उसके संबंधी भी काफी धनी हैं| सुना है दुल्हे के साथ बहुत-सी स्त्रियां बहुमूल्य वस्त्राभूषण पहनकर आएंगी| यदि आप उस विवाह में शामिल हों तो मेरी प्रतिष्ठा रह जाएगी| हमारी ओर से आप होंगी तो समधियाने वाले हमें गिरा-पड़ा और निर्धन न समझेंगे| तुम्हारे जैसी शान-शौकत तो किसी को नहीं होगी और सब लोग यही सोचेंगे कि जब इस बुढ़िया की ओर से ऐसी धनवान महिला आई है तो वह भी प्रतिष्ठावान होगी| अगर आप मेरी निर्धनता और दीनता का खयाल करके मेरे यहां चलने से इनकार करेंगी तो मेरी प्रतिष्ठा धूल में मिल जाएगी| इस नगर में न तो कोई अपना सगा – संबंधी है जिससे मैं मदद मांगूं और न आपके समान परोपकारी कोई महिला है जो दीन-अनाथों पर दया करे|”
यह कहकर बुढ़िया रोने लगी| मैं उसके रोने से द्रवित हो गई|
मैंने उसे दिलासा देकर कहा, “अम्मा! तुम फिक्र न करो| मैं तुम्हारी बेटी के विवाह में अवश्य सम्मिलित हूंगी| तुम्हें खुद अब यहां आने की जरूरत नहीं है, तुम विवाह का प्रबन्ध करो| मुझे अपने मकान का पता दो| मैं स्वयं वहीं पहुंच जाऊंगी|”
बुढ़िया यह सुनकर प्रसन्न हुई|
उसने कहा, “जैसे इस समय आपने मुझे प्रसन्नता दी है, वैसे ही भगवान आपको सदा प्रसन्न रखे, लेकिन आप मेरा मकान कहां ढूंढ़ती फिरेंगी, मैं स्वयं शाम को यहां आकर आपको अपने घर ले जाऊंगी|” यह कहकर बुढ़िया चली गई|
मैंने तीसरे पहर से तैयारी की| एक बहुमूल्य जोड़ा कपड़ों का निकालकर पहना| बड़े-बड़े मोतियों की माला पहनी तथा और भी बहुत से रत्नजड़ित आभूषण तथा बाजूबंद, कर्णफूल, अंगूठियां आदि पहने| इतने ही में शाम हो गई| बुढ़िया मुझे लेने को आ गई और मेरा हाथ चूमकर बोली, “दुल्हे के माता-पिता तथा अन्य संबंधी मेरे घर आए हुए हैं| यहां के कई धनी मानी और प्रतिष्ठित व्यक्ति और उनकी स्त्रियां भी वर पक्ष की ओर से आए हैं| अब आप चलकर मेरे पक्ष की लाज रखिए|”
मैं बुढ़िया के साथ उसके घर की ओर चल पड़ी| साथ में अपनी दासियों को भी अच्छे वस्त्राभूषण पहनाकर अपने साथ ले लिया|
हम लोग चलते-चलते एक चौड़ी और साफ गली में पहुंचे| वृद्धा ने हम लोगों को ले जाकर एक बड़े द्वार के सामने खड़ा कर दिया| दरवाजे के ऊपर एक तख्ती पर लकड़ी से तराशे हुए अक्षरों में लिखा था कि इस घर में सदैव प्रसन्नता का निवास है| वहां दीये भी जल रहे थे, जिनके प्रकाश में मैंने ये इबारत पढ़ी|
बुढ़िया ने ताली बजाकर दरवाजा खुलवाया और मुझे अंदर एक बड़े दालान में ले गई| अंदर एक अत्यन्त रूपवती स्त्री ने मेरा स्वागत किया, मुझे गले लगाया और सम्मानपूर्वक एक कमरे में ले जाकर बिठाया|
फिर मैंने देखा कि वहां पर एक रत्नजड़ित सिंहासन रखा है|
उस सुंदरी ने मुझसे कहा, “तुम सोचती हो कि तुम किसी और का विवाह कराने आई हो| वास्तविकता यह है कि तुम्हें यहां तुम्हारे ही विवाह के लिए लाया गया है|”
मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ| किंतु उस स्त्री ने मुझे और कुछ पूछने न दिया बल्कि इधर-उधर की बड़ी अच्छी बातें करने लगी और बात-बात में मेरे प्रति सम्मान प्रकट करने लगी|
कुछ देर में उसने कहा, “बीबी, शादी की बात तो यह है कि मेरा एक जवान भाई है, जो अत्यन्त रूपवान है| उसने तुम्हारे रूप और गुणों की बड़ी प्रशंसा सुनी है और तुम पर मोहित हो गया है| वह तुमसे विवाह करने को अत्यन्त लालायित है| यदि तुम उसके साथ विवाह करने से इनकार करोगी तो उसे अति क्लेश होगा और उसका दिल टूट जाएगा| मैं ईश्वर की सौगंध खाकर कहती हूं कि वह नौजवान हर प्रकार से तुम्हारी संगति के योग्य है| तुम उस पर पूरा भरोसा रख सकती हो| वह बड़ा खुशदिल इंसान है और तुम्हें हर तरह से खुश रखेगा|”
वह स्त्री बहुत देर तक इसी प्रकार अपने भाई की बातें करती रही और उसकी प्रशंसा के पुल बांधती रही|
अंत में उसने मुझसे कहा, “तुम्हारी ओर से जरा-सा भी इशारा हो तो मैं अपने भाई से तुम्हारे आने के बारे में कह दूं|”
यद्यपि पहले पति के मरने के बाद मेरी विवाह करने की तनिक भी इच्छा नहीं थी तथापि उस स्त्री ने अपने भाई की इतनी प्रशंसा की थी कि इनकार करने की मेरी बिलकुल भी इच्छा न हुई| मैं उसकी बात पर मुस्कराकर चुप रही| स्त्री मेरी मुस्कराहट और मौन से समझ गई कि मैं राजी हूं|
उसने ताली बजाई|
इसके साथ ही पास के कमरे से एक अतिरूपवान युवक बड़ी भड़कीली पोशाक पहने हुए निकला| उसे देखकर मुझे अपने भाग्य पर बड़ी प्रसन्नता हुई कि ऐसा रूपवान पुरुष मेरा पति बनेगा| वह मेरे पास बैठा और मुझसे अत्यन्त शिष्टता और बुद्धिमत्तापूर्वक बातें करने लगा| उसकी जितनी प्रशंसा उसकी बहन ने की थी, मैंने उसे उससे अधिक पाया|
उस वृद्धा ने जब मुझे भी राजी देखा तो दूसरी बार ताली बजाई जिससे एक अन्य कमरे से एक काजी निकले और उनके साथ चार अन्य पुरुष|
काजी ने शरीयत के अनुसार हम दोनों का विवाह करा दिया और चार आदमियों की गवाही भी हो गई|
मेरे पति ने मुझसे वचन लिया कि मैं किसी अन्य पुरुष से बात न करूंगी, बल्कि देखूंगी भी नहीं| सदैव पतिव्रता धर्म का पालन करूंगी और उसकी आज्ञाओं का प्रसन्नतापूर्वक पालन करूंगी| उसने यह भी कहा कि अगर तुमने अपनी प्रतिज्ञाएं पूरी कीं तो मैं तुम्हारा त्याग कभी नहीं करूंगा|
तत्पश्चात मैं धनवान वर्ग की महिलाओं की भांति, बल्कि रानियों की भांति अपने पति के घर में रहने लगी|
एक महीने बाद मैंने अपने पति से शहर के बाजार को जाने की अनुमति मांगी| मैंने कहा कि जैसे कई अमीर घरानों की स्त्रियां बाजार से रेशमी थान खरीदकर बेचा करती हैं, वैसे ही मैं करना चाहती हूं|
मैं दो दासियों तथा उस बुढ़िया के साथ, जो मुझे विवाह के लिए बहाने करके लाई थी, नगर के सबसे बड़े बाजार गई जहां बड़े-बड़े व्यापारियों की दुकानें थीं|
बुढ़िया ने कहा, “यहां एक नौजवान व्यापारी है जिसे मैं अच्छी तरह जानती हूं| उसकी दूकान जैसे बहुमूल्य थान कहीं और न मिलेंगे|”
मैंने भी सोचा कि एक ही जगह अच्छा माल मिल जाए तो जगह-जगह क्यों भटकूं, इसलिए उस व्यापारी की दुकान पर चली गई| व्यापारी जवान ही नहीं, अत्यन्त रूपवान भी था|
बुढ़िया ने मुझसे कहा कि यहां बहुत माल है| तुम इस व्यापारी से जैसा भी चाहों मांग लो|
मैंने उससे कहा, “मैंने पति को वचन दिया है कि मैं किसी पर-पुरुष से बात न करूंगी इसलिए मैं तो इससे बात न करूंगी, तुम्हीं बात करो|”
अत: उस व्यापारी ने बुढ़िया से पूछ-पूछकर कि मुझे क्या-क्या पसन्द है, कई अच्छे-अच्छे थान दिखाए|
मैंने उनमें से एक थान पसंद किया और उसका दाम पुछवाया|
व्यापारी बोला, “यह थान अमूल्य है| मैं इसे असंख्य अशर्फियों में भी नहीं बेचूंगा| किंतु यह सुंदरी अगर अपने कपोल का चुम्बन दे दे तो यह थान बिना मूल्य के ही उसका हो जाएगा|”
मैंने बुढ़िया से नाराज होते हुए कहा, “यह व्यापारी बड़ा लंपट और दुष्ट जान पड़ता है| इसकी हिम्मत ऐसी गंदी बात करने की कैसे हुई?”
किंतु बुढ़िया ने व्यापारी ही का पक्ष लिया और कहा, “सुंदरी, इसमें कोई विशेष बात तो नहीं है| तुम्हारे पति ने तुम्हें पर-पुरुष को देखने और उससे बात करने को ही तो मना किया है, वह तुम न करो| तुम केवल एक चुम्बन इसे चुपचाप दे दो| इसमें तो कोई कठिनाई तुम्हें नहीं होनी चाहिए|”
मैं ऐसी मुर्ख थी और थान मेरी नजर में ऐसा भा गया था कि मैं इस बुरी बात के लिए तैयार हो गई|
अब वह वृद्धा और दोनों दासियां सड़क की ओर मेरी आड़ करके खड़ी हो गईं|
मैंने अपने मुख पर से वस्त्र हटाकर उस व्यापारी के सामने अपना गाल कर दिया| उस दुष्ट व्यापारी ने चुम्बन लेने के बजाय मेरे गाल में दांत गड़ा दिया| जिससे गाल लहुलुहान हो गया और मैं तड़पकर अचेत हो गई|
अवसर पाकर व्यापारी ने अपना माल जल्दी से लपेटा और दुकान बन्द करके गायब हो गया| कुछ देर बाद जब मुझे होश आया तो मैंने अपने गाल को लहुलुहान पाया| बुढ़िया और दासियों ने मेरे गाल को कपड़े से ढक दिया था और उन लोगों की परेशानी और हाय-हाय को सुनकर जो भीड़ वहां जमा हो गई थी, उसने समझा कि मैं किसी बीमारी से या कमजोरी के कारण बेहोश हो गई थी|
मेरे होश में आने पर बुढ़िया और दासियों को संतोष हुआ और वे धैर्य देने लगीं| विशेषत: बुढ़िया को बहुत दुख हुआ|
उसने कहा, “सुंदरी! मैं तुम्हारी अपराधिनी हूं, मुझे क्षमा करो| तुम्हारे ऊपर यह सारी मुसीबत मेरे कारण ही आई| इस कमीने व्यापारी की दुकान पर तुम मेरे कहने ही से आई| अब घर चलो| जो हुआ सो हुआ| अब तुम और चिंता न करो| मैं तुम्हारे घाव पर ऐसी दवा लगा दूंगी कि तीन दिन के अंदर न केवल घाव भर जाएगा बल्कि उसका कोई चिह्न भी नहीं रहेगा|”
मैं किसी तरह कुढ़ती-सिसकती उन लोगों के साथ अपने घर पहुंची और अपने कमरे में जाकर दुख और थकान से फिर बेहोश हो गई| बुढ़िया मुझे होश में लाई| रात में जब मेरा पति आया और मुझे लेटे देखा तो पूछा, “तुम्हें क्या हो गया, क्यों लेटी हो?”
मैंने बहाना बना दिया कि मेरे सिर में दर्द हो रहा है| मैंने सोचा था कि इसके बाद वह मुझसे अपना ध्यान हटा लेगा, किंतु उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और नाड़ी आदि देखने के बाद सिर पर हाथ फेरने के लिए मेरे मुंह से कपड़ा हटाया और गाल के घाव को देखकर वह भड़क गया| मुझसे पूछने लगा, “तुम्हारे गाल पर यह खरोंच कैसे लगी?”
वैसे मेरा कोई कसूर न था और मैं उसकी अनुमति लेकर ही बाजार गई थी, किंतु उससे सच्ची बात कहने का मुझे साहस नहीं हुआ| मैंने बहाना बनाया कि जब मैं बाजार जा रही थी तो एक लकड़हारा लकड़ी का गट्ठा लेकर मेरे पास से निकला और गट्ठे से बाहर निकली एक लकड़ी मेरे गाल में चुभ गई|
मगर मेरे पति को मेरी बात पर विश्वास न आया उसने कहा, “तुम सच क्यों नहीं बतातीं कि गाल में घाव कैसे लगा?”
मेरी हिम्मत सच्ची बात कहने की अब भी नहीं हुई और मैंने दूसरा बहाना बनाया कि जब मैं जा रही थी तो एक कुम्हार गधे पर बर्तन ले जाता हुआ निकला और गधे का मुझे धक्का लगा कि मैं पृथ्वी पर गिर पड़ी और वहां पड़ा हुआ एक कांच का टुकड़ा मेरे गाल में चुभ गया|
मेरे पति ने कहा, “अगर तुम्हारी बात सच है तो मैं सुबह ही राजा के मंत्री जाफर से कहकर सारे कुम्हारों को नगर से निकलवा दूंगा|” मैं फिर घबराई और मैंने कहा कि मेरे कारण निर्दोष कुम्हारों को सजा देना उचित नहीं है|
मेरे पति ने फिर कहा, “जब तक तुम सच्ची बात न कहोगी मेरा रोष कम नहीं हो सकता|”
मैं बोली, “चलते-चलते मुझे चक्कर आ गया जिससे मैं गिर पड़ी और मेरा गाल छिद गया| इसमें किसी का कसूर नहीं है|”
मेरा पति अब आपे से बाहर हो गया और बोला, “तू झूठ-पर-झूठ बोले चली जा रही है, अब मैं तेरी बहानेबाजी नहीं सुन सकता|” यह कहकर उसने ताली बजाई जिससे तीन हब्शी गुलाम अंदर आ गए|
मेरे पति ने कहा, “एक-एक आदमी इसका सिर और पांव पकड़े और तीसरा तलवार निकाल ले|”
उन्होंने फौरन उसकी आज्ञा का पालन किया|
फिर तलवार निकालने वाले से पति ने कहा, “इस कुलटा के दो टुकड़े करके इसकी लाश मछलियों के खाने के लिए नदी में फेंक दी जाए|”
जल्लाद कुछ झिझका तो मेरे पति ने डांटकर कहा, “तू मेरी आज्ञा का पालन क्यों नहीं करता?”
जल्लाद ने मुझसे कहा, “तुम्हारा अंत आ गया है| अंत समय में खुदा का स्मरण कर लो| इसके अलावा और भी कुछ कहना-सुनना हो तो कह-सुन लो|”
मैंने कहा, “मुझे थोड़ी देर के लिए जीवनदान मिले तो मैं कुछ कहना चाहती हूं|”
मैंने अपना सिर उठाया और सारी बात कहनी चाही किंतु हिचकियों और रुलाई के कारण कुछ कह न सकी|
मेरे पति का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था| उसने मुझे बहुत गालियां दीं और बुरा-भला कहा| मैं उसकी बातों का कोई उत्तर न दे सकी| मैंने सिर्फ यह कहा कि कुछ अवसर और दिया जाए ताकि मैं अपने पापों के लिए खुदा से क्षमा मांग सकूं, किंतु मेरे पति ने इतनी दया भी न की और गुलाम को शीघ्र ही मेरा वध करने की आज्ञा दी|
गुलाम मुझे मारने को तैयार हो गया|
इतने में बुढ़िया दौड़ती हुई आई| उसने मेरे पति को बचपन में दूध पिलाया था| वह उसके पैरों पर गिर पड़ी और कहा कि तुम मेरे दूध का कर्ज चुकाने के लिए इसे प्राणदान दे दो| उसने कहा कि इसका कोई दोष नहीं है| तुम इसे निरपराध मारकर खुदा को क्या जवाब दोगे?
उसके समझाने-बुझाने से मेरे पति ने मेरा वध तो नहीं कराया किंतु कहा कि इसे कुछ दंड मिलना जरूरी है| फिर उसकी आज्ञा से गुलाम ने मुझे कोड़े से इतना मारा कि मैं बेहोश हो गई और मेरे कंधों और छाती पर से कई जगह मांस उधड़ गया|
मैं एक महल में बंद कर दी गई, जहां चार महीने तक पड़ी रही| बढ़िया ने मेरी देख-रेख और महरम पट्टी की| इससे मैं स्वस्थ तो हो गई किन्तु वे काले चिह्न बाकी रह गए जिन्हें आपने देखा था| जब मैं चलने फिरने के योग्य हुई तो सोचा की अपने पहले पति के मकान में, जो अभी तक मेरी सम्पत्ति था, चलकर रहूं| किंतु उस गली में गई तो मकान का चिह्न भी न पाया क्योंकि दूसरे पति ने उसे खुदवाकर जमीन के बराबर करा दिया था|
मैं उसके इस अन्याय की फरियाद भी इस डर से न कर सकी कि कहीं ऐसा न हो कि दुबारा क्रोध में आकर वह मुझे मरवा दे| मैं अपनी जान बचाने पर ईश्वर को धन्यवाद देती हुई अपनी बहन जुबैदा के पास गई और अपनी सम्पूर्ण कष्ट तथा कही| उसने मुझे तसल्ली दी| उसने कहा कि तुम मेरे साथ रहो| यह जमाना अच्छा नहीं है| हमें किसी से भी दयालुता की आशा नहीं करनी चाहिए, न उनसे जो हमारी मित्रता का दावा करते हैं, न उनसे जो हमारे रूप पर मोहित हो जाते हैं| उसने यह भी कि मेरे पास इतना पैसा है कि हमें कोई कठिनाई नहीं होगी|
जुबैदा ने मुझे यह भी बताया कि किस तरह उसकी सगी बहनों की जलन और दुश्मनी की वजह से उसका मंगेतर शहजादा समुद्र में डूब गया और किस तरह उस पर उपकार करने वाली परी ने उसकी दुष्ट सगी बहनों को दंडित किया|
मैं उसी समय से जुबैदा के पास रहने लगी| मेरी माता का देहांत हुआ तो जुबैदा ने मेरी बहन साफी को भी अपने पास बुलवाकर रख लिया| तब से हम तीनों बहनें आनन्दपूर्वक रहती हैं| हम लोग भगवान के प्रति आभारी हैं कि हमें कोई कष्ट नहीं है| तुम लोग मिल-जुलकर घर चलाते हैं| कभी बाजार से सौदा सुलुफ लाने के लिए मैं जाती हूं, कभी साफी|
कल मैं बाजार गई थी और सामान एक मजदूर के सिर पर लदवाकर आई| वह बड़ा हंसोड़ था और शिष्ट भी था, इसलिए हमने उसे दिन भर अपने साथ रहने दिया ताकि वह अपनी बातों से हमारा मनोरंजन करे|
फिर रात को तीन फकीरों ने हमसे रात भर आश्रय देने के लिए प्रार्थना की| हमने उन्हें भोजन कराया और शराब पिलाई| वे रात को देर तक गाते-बजाते रहे और हम लोग भी गाते-बजाते रहे|
फिर मोसिल के तीन व्यापारी, जो बड़े संभ्रात जान पड़ते थे, रात भर रहने की प्रार्थना करते हुए आए| हमने उनकी भी अभ्यर्थना स्वीकार की|
अमीना ने कहा कि यद्यपि हमारे सातों मेहमानों ने वचन दिया था कि वे सब कुछ चुपचाप देखेंगे और किसी बात के बारे में पूछताछ नहीं करेंगे| तथापि उन्होंने यह वचन न निभाया और कुतियों के पीटने और मेरे शरीर के दागों के बारे में पूछताछ करने लगे| हमें इस पर बहुत क्रोध आया| यद्यपि हम उन सभी के प्राण ले सकते थे तथापि ऐसा न किया और उन लोगों से उनका व्यक्तिगत वृत्तांत सुनकर उन्हें छोड़ दिया|”
खलीफा हारुन-अल रशीद को दोनों स्त्रियों की कहानी सुनकर अत्यन्त विस्मय हुआ| उसने मन में सोचा कि उन फकीरों का, जो वास्तव में राजा और राजकुमार थे जैसा कि उनकी कहानी से पता चल और उन बुद्धिमती स्त्रियों का कुछ उपकार करे|
उसने जुबैदा से पूछा, “तुम्हें तुम पर उपकार करने वाली उस परी ने कुछ यह भी बताया था कि तुम्हारी बहनें कब तक कुतियां बनी रहेंगी?”
जुबैदा ने कहा, मैंने जो वृत्तांत आपसे कहा था उसमें यह बताना भूल गई कि परी ने चलते समय मुझे अपने कुछ बाल दिए थे और कहा था, अगर तुम इनमें से कोई बाल आग में डालोगी तो मैं संसार के चाहे जिस भाग में रहूं, तुम्हारे पास आ जाऊंगी|”
खलीफा ने पूछा, “वे बाल कहां हैं?”
“मैं वे बाल हर समय अपने पास रखती हूं|”
यह कहकर उसने एक डिबिया निकाली| उसमें एक पुड़िया में कुछ बाल बंधे थे| उसने उन्हें खलीफा को दिखाया|
खलीफा ने कहा, “मैं भी उस परी को देखना चाहता हूं|”
जुबैदा ने पूरी पुड़िया आग में डाल दी| धुंआ उठते ही भूकंप-सा आ गया और कुछ क्षणों में ही चकाचौंध कर देने वाले वस्त्राभूषण पहने एक परी वहां आ खड़ी हुई|
वह खलीफा से बोली, “आप पृथ्वी पर ईश्वर के प्रतिनिधि हैं| आपकी जो भी आज्ञा होगी, मैं उसका पालन करूंगी| इस जुबैदा ने मेरी प्राण रक्षा की थी, इसलिए मैं इसकी बड़ी आभारी हूं| मैंने इसकी बहनों को, जिन्होंने इसके उपकारों के बदले में इससे अत्यन्त नीचता का व्यवहार किया था, कुतिया बना डाला| अब मुझे क्या आज्ञा है?”
खलीफा ने कहा, “एक तो यह कि चूंकि यह दोनों अपने किए का काफी दंड पा चुकी हैं, इसलिए तुम उन्हें फिर इनके पुराने शरीरों में ले आओ| दूसरी बात यह है कि एक आदमी ने अपनी पत्नी को इतना पिटवाया है कि उसके कंधे और सीना काले दागों से भर गए हैं| उस अन्यायी ने इसका पुराना घर भी खुदवाकर जमीन के बराबर करके उस पर अधिकार कर लिया है, जो उसको अपने पहले पति से विरासत में मिला था, मुझे इस बात का बड़ा खेद है कि मेरे शासन में कोई ऐसा अन्यायी रहता है| तुम तो जानती होगी कि वह कौन है? मुझे उसका पता बताओ और इन कुतियों को फिर से स्त्री बनाने और उस प्रताड़िता स्त्री का शरीर ठीक करने के लिए जो भी कर सकती हो करो|”
परी ने कहा, “मैं सब ठीक कर दूंगी|”
खलीफा ने जुबैदा को आज्ञा देकर उसके घर से कुतियों को मंगवाया|
परी ने एक पात्र से जल लेकर उस पर कुछ मंत्र पढ़ा, फिर उसने वह पानी दोनों कुतियों और अमीना पर छिड़क दिया| तुरंत ही कुतिया अपने पुराने शरीरों में आकर सुंदर स्त्रियां बन गईं और अमीना के सारे काले दाग चले गए और उसका शरीर कुंदन की तरह दमकने लगा|
अब परी ने कहा, “मैं जानती हूं कि अमीना का पति कौन है, लेकिन वह आपसे बहुत निकट संबंध रखता है| अगर आप चाहें तो उसका नाम भी बता दूं|”
खलीफा ने कहा, “जरूर बताओ|”
परी बोली, “वह आपका छोटा बेटा अमीन है, जो अमीना के सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर इसको पाने का इच्छुक हो गया और इसे धोखे से अपने मकान में बुलाकर इससे विवाह कर लिया|”
फिर परी ने बाजार की घटना का वर्णन करके कहा कि यद्यपि अमीना निर्दोष थी, किंतु सच्ची बात कहने का साहस न कर सकी| इसने और कई-कई बयान दिए जिससे इसके पति ने इसे दंड दिया|
यह कहकर परी अंतर्धान हो गई| खलीफा ने अपने पुत्र को बुलवाया| किंतु भय और लज्जा के कारण उसका आने का साहस न हुआ| खलीफा ने उसे सामने-बुलाने पर जोर न दिया किंतु अमीना को उसके पास भेजा और अपने पुत्र को आदेश दिया कि चूंकि यह निर्दोष है, इसलिए तुम इसे पत्नी के रूप में सम्मानपूर्वक रखो| चुनांचे शहजादे ने अमीना के साथ ऐसा ही किया|
खलीफा ने जुबैदा से स्वयं विवाह किया और साफी तथा अन्य तीनों फकीर बने राजकुमारों का उसकी बहनों से विवाह करा दिया और उन राजकुमारों को उच्च पदों पर आसीन कर दिया|
अब शहरजाद ने यह कहानी पूरी की तो शहरयार ने, जिसे सारी कहानियां बड़ी रोचक लगी थीं, पूछा, “तुम्हें कोई और कहानी भी आती है|”
तब शहरजाद ने कहा कि मुझे बहुत कहानियां आती हैं|
यह कहकर उसने सिंदबाद जहाजी की कहानी शुरू कर दी|
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