अमर ज्ञान का उपदेश (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
त्रेता युग की बात है| कैलाश पर्वत पर पार्वती भगवान शिव के साथ प्रात: भ्रमण कर रही थीं| शिव बड़े प्रसन्नचित थे| अचानक पार्वती ने उनसे कहा – “स्वामी! आप बड़े ज्ञानी हैं| जन्म-मरण और मोह-माया के बंधनों से परे हैं| इन सभी बंधनों से छुटकारा पाकर मैं सदैव आपके साथ रह सकूं, ऐसा ज्ञान मुझे दीजिए|”
पार्वती जी की इच्छा पर भगवान शिव मुस्कुराकर बोले – “ठीक है, मैं तुम्हें वह ज्ञान अवश्य दूंगा, किंतु इसके लिए कोई ऐसा एकांत स्थान खोजना होगा, जहां हम दोनों के अलावा कोई तीसरा न हो|”
पार्वती और भगवान शिव दोनों ही हिमालय में ऐसा स्थान खोजने लगे| घूमते-घूमते वे उत्तरी हिमालय के अत्यंत मनोरथ स्थान पर जा पहुंचे| वहां एक विशाल गुफा थी| दूर-दूर तक किसी प्राणी का चिह्न नहीं था| भगवान शिव को वह गुफा पसंद आ गई| पार्वती जी के साथ वे उस गुफा में चले गए| आशा के विपरीत गुफा में उन्होंने कुछ पक्षी देखते| पक्षियों को देखकर पार्वती उदास हो गईं| भगवान शिव ने उनकी मनोदशा भांप ली| वहीँ बैठकर उन्होंने सांस द्वारा वायु अपने अंदर खींचनी शुरू कर दी| ऐसा करते ही दूर-दूर तक फैली प्राण वायु शिव के अंदर सिमटने लगी| प्राण वायु के अभाव में वहां रहनेवाले सभी पक्षी निचले प्रदेश में चले गए| अब पूर्ण एकांत पाकर पार्वती ने संतोष की सांस ली|
भगवान शिव बोले – “अब यहां हम दोनों के अतिरिक्त कोई नहीं है| मैं तुम्हें यहां अमर ज्ञान का उपदेश दूंगा| ध्यान से सुनना| बीच-बीच में ‘हुंकारा’ भरती रहना, ताकि मुझे पता चलता रहे कि तुम सुन रही हो| ज्ञान देते समय मैं समाधि में रहूंगा|”
पार्वती की स्वीकृति पाकर भगवान शिव समाधि लगाकर बैठ गए उनके श्रीमुख से अमर ज्ञान की अमर कथा फूटने लगी| सारी गुफा दिव्य आभा और सुगंध से भर उठी| कथा सुनते-सुनते पार्वती जी इतनी विभोर हो उठीं कि उन्हें तंद्रा ने आ घेरा| कब नींद आ गई, पता ही न चला|
अमर कथा समाप्त हुई, तो भगवान शिव की समाधि टूटी| देखा, पार्वती जी बेसुध होकर सोई पड़ी थीं| शिवजी चकित हो उठे| जिन्हें जगाया, कुछ पूछने ही वाले थे कि पार्वती ने क्षमा-याचना भरे स्वर में कहा – “प्रभु! आपके श्रीमुख से कथा सुनते-सुनते इतना आनंद आया कि न जाने कब मुझे नींद ने आ घेरा| मैं पूरी कथा नहीं सुन पाई|”
पार्वती जी की इस बात को सुनकर शिव आश्चर्य में डूब गए| बोले – “कथा कहते-कहते मैं बीच-बीच में ‘हुंकारा’ सुन रहा था और मुझे लग रहा था कि तुम कथा सुन रही हो| तुम सो गई थीं तो फिर अंत तक ‘हुंकारा’ कौन भरता रहा?”
इस बात से पार्वती भी चौंकी| भगवान शिव ने इधर-उधर देखा, तो गुफा की छत में एक कोटर दिखा| उस कोटर से कबूतर के बच्चों का एक जोड़ा उन्हें नीचे झांकता हुआ दिखाई दिया| बहुत सिमित प्राणवायु के वातावरण में उन कपोत शिशुओं को देखकर शिव को आश्चर्य हुआ| उन्होंने सोचा कि ये कोई मायावी जीव हैं, जो कपोत शिशु के रूप में अमर कथा सुनते रहे| भगवान शिव ने कुपित होकर पूछा – “कौन हो तुम? इस वेश में यहां क्या कर रहे हो?”
कबूतर के बच्चों में से एक बोला – “भगवन! हम यहां इस कोटर में अंडज रूप में थे| जब आपने यहां की प्राण वायु को अपने में समेट लिया तो मेरी मां यहां से उड़ गई| हम अंडे से बाहर निकले, तो आपकी अमर कथा यहां गूंज रही थी| इस कथा के प्रभाव से हममें इतनी शक्ति आ गई कि कथा सुनते हुए हम ‘हुंकारा’ भरते रहे| प्राण वायु के अभाव का हम पर असर नहीं हुआ|”
कबूतर के बच्चों की बात सुनकर शिव प्रसन्न होकर बोले – “तुम अमर कथा के सच्चे पात्र थे, जो पूरी कथा सुन सके| तुम अमर हुए| इस स्थान पर जहां किसी अन्य जीव-जंतुओं का स्थायी रूप से रहना संभव नहीं होगा, वहां तुम दोनों सदा निवास करोगे|”
शिव और पार्वती तो वहां से चले गए, पर शिव के पार्थिव रूप में हिमलिंग उस गुफा में निर्मित हो गया| वही क्षेत्र अमरनाथ कहलाता है| आज भी अमरनाथ की पवित्र गुफा में कबूतर के जोड़े रहते हैं, जो कभी-कभी यात्रियों के कोलाहल से डरकर कोटर से निकलकर उड़ते हुए दिख जाते हैं|
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