Homeशिक्षाप्रद कथाएँलोमड़ी का दुल्हा – शिक्षाप्रद कथा

लोमड़ी का दुल्हा – शिक्षाप्रद कथा

नंदनवन में एक बड़ी चतुर और तेज तर्रार लोमड़ी ने एक जमीनी गुफा मे अपना ठिकाना बना रखा था! 

उस गुफा का मुहाना इतना संकरा था कि लोमड़ी से बड़ा कोई प्राणी उसमें प्रवेश ही नहीं कर सकता था!

लोमड़ी बड़ी फुर्तीली और शातिर थी! घात लगाकर छोटे छोटे जीव जन्तुओं का शिकार करने में उसका कोई सानी नहीं था! 

ऐसे ही घात लगाकर उसने एक दिन चीकू खरगोश को दबोच लिया! लोमड़ी की पकड़ में चीकू खरगोश रोने लगा और उससे विनती करने लगा -“मुझे मत मारो… मुझे मत मारो!”

“मारना तो पड़ेगा ही!” लोमड़ी ने कहा -“तू मेरा शिकार है! अगर शिकार को ही छोड़ दूंगी तो मैं भूखी मरूँगी!”

“नहीं, मैं तुम्हें भूखा नहीं मरने दूंगा!” चीकू खरगोश ने कहा -“मैं तुम्हें ऐसे बाग में ले जाऊँगा, जहाँ मीठे अंगूरों की बहुत सारी बेलें हैं!”

“ठीक है, बता किधर चलना है?” लोमड़ी ने कहा! अंगूरों के नाम से ही लोमड़ी के मुंह में पानी आ जाता है  यह तो सब लोग जानते ही हैं!

एक पंजे में खरगोश को दबोचे लोमड़ी खरगोश के बताये रास्ते पर चलने लगी! थोड़ी ही देर में खरगोश ने उसे एक बहुत ही खूबसूरत बगीचे मे पहुँचा दिया! 

उस बगीचे मे अंगूरों की ढेरों बेलें थीं, जिनमें अंगूरों के बड़े बड़े गुच्छे लटक रहे थे!

“अब मुझे छोड़ दो!” चीकू खरगोश गिड़गड़ाया! 

महाधूर्त लोमड़ी हंसी -“पागल हुआ है! अंगूर का बगीचा तो मैंने देख ही लिया! अब तुझे क्यों छोड़ूँ? आज तो मैं तुझसे ही पेट भरूँगी!”

“देखो, यह गलत है! बेइमानी है!” चतुर चीकू बोला -“फिर भी तुम मुझे खाना चाहती हो तो खा लेना, लेकिन पहले मेरे कुछ सवालों का जवाब दे दो!”

“पूछ…!” लोमड़ी ने कहा! 

“क्या नंदनवन में तुम्हारा कोई दोस्त है? पक्का दोस्त है?” चीकू ने पूछा! 

लोमड़ी ने बहुत सोचा, पर उसे ऐसा कोई भी पशु याद न आया, जिसे वह अपना मित्र कह सकती! निराशा से उसने सिर हिला दिया-“नहीं, मेरा कोई दोस्त नहीं है!”

“तब तो तुम्हारी सारी ज़िन्दगी बेकार है! हर जन्तु का कोई न कोई दोस्त अवश्य होना चाहिये! जरा सोचो, अगर तुम कभी किसी मुसीबत में फंस जाओ तो क्या कोई तुम्हें बचा सकता है? नहीं ना! लेकिन अगर तुम्हारा मेरे जैसा कोई दोस्त हो तो तुम पर कभी कोई मुसीबत आयेगी ही नहीं और आयेगी तो मैं हमेशा तुम्हें बचाऊँगा, यह मेरा पक्का वायदा है!”

लोमड़ी सोच में पड़ गयी, तभी चीकू फिर बोला -“देखो, मुझे अपने जीवन की कोई परवाह नहीं, लेकिन मेरी पत्नी माँ बनने वाली है! मैं उसके लिये कुछ अमरूद, कुछ अन्य फल लेने के लिये निकला था, तभी तुमने मुझे पकड़ लिया! मुझे छोड़ दोगी तो मैं जीवन भर तुम्हारा एहसान मानूँगा और हमेशा तुम्हारा दोस्त बनकर रहूँगा!”

लोमड़ी को चीकू की बात कुछ समझ में आई, लेकिन चीकू की एक पत्नी भी है, जानकर अचम्भा भी हुआ! 

“तुम्हारी एक पत्नी भी है?” लोमड़ी ने आश्चर्य से पूछा! 

“हाँ, तुम्हारा कोई पति नहीं है?” चीकू ने पूछा! 

“नहीं…!” लोमड़ी उदास होकर बोली! 

“अरे…!” चीकू लोमड़ी के पंजे में फड़फड़ाया – “तब तो तुम्हें जल्दी से जल्दी अपने लिये एक दुल्हा तलाश कर लेना चाहिये! अभी तो तुम जवान हो! बूढ़ी हो जाओगी, तब तो कोई दुल्हा मिलेगा भी नहीं! चाहो तो मैं दुल्हा ढूँढने में तुम्हारी मदद भी कर सकता हूँ!”

लोमड़ी ने चीकू को अपने पंजे से छोड़ दिया और बोली -“ठीक है, आज से मैं और तुम दोस्त हुए! अब हम हमेशा दोस्त रहेंगे! मैं तुम्हें हर मुसीबत से बचाऊँगी और तुम मुझे बचाना! साथ ही तुम्हें मेरे लिये एक अच्छा सा दुल्हा ढूँढने में मेरी मदद भी करनी होगी!”

चीकू ने लोमड़ी को वचन दिया कि वह दुल्हा ढूँढने मे उसकी मदद करेगा और उसी बगीचे से अपनी खरगोशनी के लिये अच्छे से फल लेकर वहाँ से चला गया! 

लोमड़ी अंगूर की बेलों से नीचे लटकते अंगूरों के गुच्छे तोड़-तोड़ कर खाने लगी!

कुछ दिन बीत गये! चीकू खरगोश और लोमड़ी की एक बार फिर मुलाकात हुई! 

“चीकू..! तुमने मेरे लिये दुल्हा ढूँढा?” लोमड़ी ने पूछा! 

“हाँ दोस्त…! मैंने जंगल के राजा शेर से बात की है! क्या तुम जंगल की रानी बनना पसन्द करोगी?” चीकू ने पूछा!

“नेकी और पूछ-पूछ।” लोमड़ी उछल पड़ी -“भला जंगल की रानी बनने में -मुझे क्या ऐतराज़ ?”

“तो चलो, चलते हैं – राजा जी की गुफा की ओर।” चीकू ने कहा और ले चला लोमडी को नंदनवन जंगल के शेर की गुफा की तरफ। 

जंगल का राजा शेर उस समय दोपहर का भोजन करने के पश्चात अपनी गुफा के बाहर टहल रहा था। चीकू खरगोश ने दूर से ही शेर को प्रणाम करते हुए कहा -“महाराज, बरसों से आप इस जंगल में अकेले रह रहे हैं। आपका अकेलापन दूर करने के लिए मैं आपके लिये एक बहुत सुन्दर दुल्हन लाया हूँ। यदि आज्ञा हो तो दुल्हन को नज़दीक से आपके दर्शन के लिये कुछ पास ले आऊँ।”

“ले आओ।” शेर ने दहाड़कर कर कहा, लेकिन उसकी दहाड़ लोमड़ी के लिये किसी प्रलय से कम नहीं थी। डर के मारे वह चीखती हुई पलटकर भागी। उसे भागता देख, शेर तो हँसने लगा, लेकिन चीकू लोमड़ी के पीछे भागा -“रुको, रुको मेरी दोस्त।”

परन्तु लोमड़ी ने बहुत दूर पहुँचकर ही दम लिया। उसके पीछे-पीछे भागता आया चीकू भी निकट आकर रुका और उसने लोमड़ी से पूछा -“क्या हुआ दोस्त ? तुम्हें जंगल की रानी नहीं बनना ?”                      

“बनना तो चाहती हूँ, लेकिन राजाजी की आवाज़ इतनी भयंकर है कि मेरा तो सुनते ही दम निकलने लगा था। नहीं-नहीं, ऐसे तो राजाजी तो कभी ‘आई लव यू” बोलेंगे तो भी मेरी जान निकल जायेगी।”

“कोई बात नहीं। राजाजी को भूल जाओ। मैं तुम्हारे लिये कोई और दुल्हा ढूँढता हूँ।” चीकू ने कहा। 

अगले दिन चीकू खरगोश दौड़ा-दौड़ा आया। आते ही बोला -“लोमड़ी दीदी। मैंने आपके लिये दुल्हा तलाश लिया है।” अपनी सुरक्षा के लिये चीकू खरगोश ने लोमड़ी को दोस्त से दीदी बनाने का जो दाँव खेला, लोमड़ी उससे भावुक हो उठी और चीकू ने यह जो कहा कि ‘आपके लिये दुल्हा तलाश लिया है’ तो लोमड़ी की खुशी का पारावार न रहा। 

“कौन है ? कहाँ है ? कैसा है ?” वह उछलकर ढेरों सवाल पूछती चली गयी। 

“धीरज रखो लोमड़ी दीदी।” चीकू मुस्कुराते हुए बोला -“और मेरे साथ चलो। अभी तुम्हें साक्षात उसके दर्शन करा देता हूँ।”

“ठीक है, कराओ।” लोमड़ी बोली। 

आगे-आगे चीकू, पीछे-पीछे लोमड़ी तेज़ गति से चलने लगे।       

कुछ ही देर में दोनों नंदनवन के बीचोंबीच स्थित एक झील के निकट पहुँच गये। 

वहाँ गज्जू हाथी बड़ी बेचैनी से, वहाँ की रेतीली ज़मीन पर चहलकदमी कर रहा था।   

“आओ चीकू भाई, ले आये मेरी दुल्हन ?” गज्जू हाथी ने पूछा। 

“हाँ गज्जू भाई। यह देखो।” चीकू ने लोमड़ी की तरफ इशारा किया और बोला -“थोड़ी शर्मीली हैं हमारी लोमड़ी दीदी। पर आपके साथ इनकी जोड़ी खूब जमेगी।”   

“हाँ, मुझे भी ऐसा ही लगता है, हालाँकि यह मेरी स्वर्गवासी हथिनी से थोड़ी कमज़ोर हैं।  कुछ छोटी भी है। पर मैं काम चला लूँगा।” कहते हुए गज्जू हाथी ने खुशी से अगला एक पाँव उठाकर ज़मीन पर जो पटका तो ढेर सारी रेत उड़कर सीध में खड़ी लोमड़ी की  आँखों में पडी और उसी सीध में ज़मीन फटती सी चली गयी। लोमड़ी के पाँव रेतीले गड्ढे में धँसे ही थे कि वह उछलकर पीछे गिरी और गिरते ही पलटकर भागती चली गयी। 

“क्या हुआ चीकू ?” गज्जू हाथी ने पूछा -:दुल्हन शर्मा कर भाग गयी क्या?”

“पता नहीं गज्जू भाई ? मुझे लगता है -आपके शक्ति प्रदर्शन से डर गयी। मैं अभी पूछकर आता हूँ।” चीकू ने कहा और वह भी पलटकर लोमड़ी की दिशा में दौड़ पड़ा। 

“आप वापस क्यों आ गयीं लोमड़ी दीदी ?” निकट पहुँच चीकू ने पूछा -“आपको दूल्हा पसन्द नहीं आया क्या ?”

“पसन्द ?: लोमड़ी गुर्राई -“यह तो शेर से भी खतरनाक है। इसका तो एक पैर भी मुझ पर पड़ गया तो जंगल के सारे जानवर मेरी चटनी की दावत उड़ायेंगे।”

“अरे नहीं-नहीं।  ऐसा नहीं होगा लोमड़ी दीदी। गज्जू हाथी की सेहत कुछ ज्यादा ही अच्छी है। मैं उससे वज़न घटाने को कहूँगा। पर छोडो, हम कोई और दुल्हा ही तलाश कर लेते हैं।” चीकू ने अपनी बात पूरी की ही थी कि लोमड़ी की निगाह भटककर झील से पानी भरकर ले जा रहे एक शख्स पर पडी। 

“चीकू, उसे देखो।” लोमड़ी बोली। 

चीकू ने देखा – वह एक जवान आदमी था, जो गज्जू हाथी के पास वाली झील से पीतल के एक कलश में जल भरकर ले जा रहा था।  

“चीकू भाई।” लोमड़ी बोली -“उसे देखो, कितना सुन्दर जीव है। तुम उसी से मेरी बात करवा दो।”

“पर दीदी, वो तो आदमी है।” चीकू बोला। 

“कोई बात नहीं, मैं आदमी से शादी करने के लिये तैयार हूँ। उसे देखकर मैंने पक्का निर्णय कर लिया है – अब वही मेरा दुल्हा बनेगा।” लोमड़ी ने कहा -“अब तुम दौड़कर उसके पीछे जाओ और उससे बात चलाओ।”

लोमड़ी दीदी का आदेश था। चीकू को दौड़ना ही पड़ा। 

उस झील से कुछ दूर नंदनवन के बाहरी क्षेत्र में कर्दम ऋषि का आश्रम था। चीकू ने उस कलश ले जाने वाले आदमी का पीछा किया तो उसे कर्दम ऋषि के आश्रम में जाते देखा। कर्दम ऋषि के आश्रम में वह बहुत बार आ-जा चुका था। कर्दम ऋषि सभी जानवरों की भाषा समझते थे। उनसे बहुत बार चीकू बात-चीत भी कर चुका था, इसलिए बेधड़क कर्दम ऋषि के आश्रम में चला गया, क्योंकि अब तो लोमड़ी को वह दोस्त से दीदी भी बना चुका था और दीदी के लिये एक सुन्दर-सुशील दुल्हा ढूँढने की ज़िम्मेदारी उसी की थी।   

कर्दम ऋषि चीकू खरगोश को देख, चौंके। 

“आज क्या शरारत करने आये हो चीकू ?” उन्होंने पूछा। 

चीकू ने कर्दम ऋषि को प्रणाम किया और  विनम्र स्वर में बोला -“महामुनि, आज मैं आपसे कुछ माँगने आया हूँ।” 

“माँगो……..।” कर्दम ऋषि मुस्कुराये। 

“यह जो आदमी तुम्हारे आश्रम में पानी से भरा कलश लेकर आया है, उससे मेरी कुंवारी दीदी की शादी करा दो।” चीकू बोला। 

“तुम चुप्पे की बात कर रहे हो ?” कर्दम ऋषि ने पूछा। 

“उस आदमी का नाम चुप्पे है ?” चीकू ने पूछा। 

“हाँ, क्योंकि वो हमेशा चुप रहता है और वो कोई आदमी नहीं है। आदमियों की भाषा समझता ही नहीं है।” कर्दम ऋषि चीकू को कुछ समझाने की कोशिश करते हुए बोले तो चीकू झट से बोल पड़ा -“वो जो कोई भी हो, मेरी दीदी ने तो उसी से शादी करनी है। आपको उससे मेरी दीदी की शादी करवानी ही होगी। उससे शादी नहीं हुई तो मेरी दीदी अपनी जान दे देगी और उसकी मृत्यु का पाप आपको लगेगा।” 

“अच्छा ठीक है, पर यह बताओ -तुम्हारी दीदी देखने में कैसी है ?” कर्दम ऋषि ने पूछा।    

अब चीकू के लियें अपनी दोस्त और दीदी लोमड़ी से अच्छा और सुन्दर भला कौन होता। वह तुरन्त ही बोला -“आपके चुप्पे से तो बहुत सुन्दर, बहुत प्यारी, बहुत गुणवन्ती है मेरी दीदी।”     

“तब ठीक है। मैं चुप्पे को बुलाता हूँ और उससे कहता हूँ कि वो तुम्हारे साथ जाकर, तुम्हारी दीदी से शादी कर ले। वो मेरी बात नहीं टालेगा और तुम्हारी दीदी से शादी कर लेगा।” कहकर कर्दम ऋषि ने जोर से आवाज़ दी -“चुप्पे………..।”

वह खूबसूरत आदमी तुरन्त सामने आया। 

“जाओ……..। इस चीकू के साथ जाओ और इसकी बहन से शादी कर लो और सुनो उसके बाद इसकी बहन के साथ ही रहना। यहां नहीं आना।” कर्दम ऋषि बोले। 

चुप्पे ने समझ जाने वाले अन्दाज़ में सिर हिलाया और चीकू के साथ चल दिया।    

और फिर चीकू खरगोश ने दौड़-दौड़कर सारे नंदनवन में सन्देश फैलाया और सारे जानवरों को इकट्ठा करके, अंगूरों के बगीचे के फलों और भालू, ऊँट व बकरी द्वारा तैयार करवाये शहद और दूध के पकवानों की दावत दी गयी और उल्लू पंडित ने बड़ी धूमधाम से लोमड़ी और चुप्पे का विवाह सम्पन्न करवाया।  

 

विवाह तो सम्पन्न हो गया, लेकिन दो ही दिन में लोमड़ी का चुप्पे से मोह-भंग हो गया। चुप्पे लोमड़ी के साथ लोमड़ी जैसी सभी हरकतें करता था, लेकिन अच्छा पति साबित नहीं हो पा रहा था।  

दुखी, परेशान और उदास लोमड़ी फिर एक दिन चीकू खरगोश से मिली और उसे अपना दुखड़ा कह सुनाया तो चीकू कर्दम ऋषि के पास पहुँचा और उन्हें अपनी दीदी के सारे दुःख से अवगत कराया  तो कर्दम ऋषि बोले -“चीकू ! मैंने पहले ही तुमसे कहा था की चुप्पे कोई इन्सान नहीं है। दरअसल चुप्पे एक लोमड़ है। एक बार एक शिकारी, जिसे लोमड़ की खाल का एक कोट बनाना था, मारने के लिए लोमड़ के पीछे पड़ गया तो चुप्पे जान बचाने के लिये मेरे आश्रम में घुस आया और मेरे पैरों पर गिरकर बोला -“एक शिकारी उसके पीछे पड़ा है और मैं उसे आदमी बना दूँ। मैंने चुप्पे को आदमी बना दिया और तब से चुप्पे आदमी बना मेरे सारे काम करता है। उस दिन लोमड़ को ढूँढता शिकारी आश्रम में भी आया था, किन्तु यहाँ लोमड़ को न देख, वापस लौट गया। फिर चुप्पे ने भी वापस लोमड़ बनने की इच्छा प्रकट नहीं की, इसलिये मैंने उसे इन्सान ही बना रहने दिया।”          

सारी बातें जानकार चीकू खुशी से उछल पड़ा और बोला -“महामुनि, मेरी दीदी भी तो एक लोमड़ी हैं। आप चुप्पे को फिर से लोमड़ बना दीजिये। शायद ऐसा करने से मेरी दीदी का जीवन खुशहाल हो जाये।”

और फिर…. 

ऋषि कर्दम ने चुप्पे को फिर से लोमड़ बना दिया। फिर मुस्कुराते हुए सबसे बोले -“बेमेल रिश्ते कभी सफल नहीं होते! विवाह के लिये आवश्यक है कि नर और मादा दोनों की शारीरिक व मानसिक संरचना काफी हद तक एक जैसी हो! उनके खान-पान रहन-सहन में विशेष अन्तर न हो! यदि दो अलग-अलग सम्प्रदाय के लोग एक साथ जुड़ते हैं तो दोनों ही एक दूसरे के शरीर, मन और भाषा से सामंजस्य बैठा सकें! एक दूसरे को समझ सकें – तभी उनका एक दूसरे से जुड़ाव और रिश्ता सफल हो सकता है, सिर्फ आकर्षण मात्र से बेमेल गठजोड़ कर लेने से हर प्राणी को दुख, दुविधा और दर्द ही सहना पड़ता है! आकर्षण भी कई प्रकार के होते हैं – शारीरिक आकर्षण, जिसमें एक शख्स को दूसरे का सुन्दर शरीर अच्छा लगता है, रंग अच्छा लगता है! दूसरा मानसिक आकर्षण – जिसमें एक शख्स को दूसरे की खूबसूरती, बातें, मुस्कान, व्यवहार अच्छा लगता है, लेकिन जीवन में साथ साथ चलने के लिये दोनों आकर्षण झूठे और भ्रमित करने वाले होते हैं! साथ उसी के चला जा सकता है, जो आपके साथ चल कर खुश हो! आपके ही अनुरूप हो और आपके संसर्ग में खुशी महसूस करे!”

 

इसलिये दोस्तों, जब भी आप किसी से कोई रिश्ता जोड़ें, ध्यान रखें – वह आचार-विचार और व्यवहार में बहुत ज्यादा भिन्न न हो! 

यह बताना तो फ़िज़ूल ही है कि बाद में चुप्पे लोमड़ और चीकू खरगोश की लोमड़ी दीदी मज़े में जीवन व्यतीत करने लगे।

MORAL:

अनमेल रिश्ता, बेमेल मैत्री, जाति, सम्प्रदाय, व्यवहार व आचरण में भिन्नता रिश्तों में कभी प्रगाढ़ता उत्पन्न नहीं कर सकती! जीवन में नजदीकी रिश्ते सोच-समझ कर बनायें, लेकिन जब बनायें तो जीवन भर निभायें!