लड्डू मास्टर की भैंस – शिक्षाप्रद कथा
करीमगंज में लड्डन शाह नाम का एक बड़ा ही तेज तर्रार और अपने फन में माहिर दर्जी रहता था, जिसे करीमगंज के लोग प्यार से लड्डू मास्टर कहते थे!
लड्डू मास्टर के यहाँ एक बड़ी ही हट्टी कट्टी भैंस थी, जो उसे अपनी बीवी छम्मकछल्लो से भी ज्यादा प्यारी थी और सुबह-शाम लड्डन शाह ही उसे घास खिलाता था! सुबह सुबह उसे पानी से रगड़ रगड़कर नहलाता और साफ़ करता था!
भैंस भी लड्डू मास्टर को इतनी अच्छी तरह पहचानती थी कि उसे देखते ही गले में बंधी घण्टी बजाने लगती थी!
लेकिन एक रात गज़ब हो गया! रात को जब लड्डू मास्टर सोने से पहले भैंस के तबेले में आखिरी बार गया, तब भैंस वहाँ थी, पर सुबह उठकर जब वह उसे नहलाने-धुलाने साफ करने गया तो नहीं थी!
लड्डू मास्टर के दिल की धड़कनें ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे रह गयीं!
कहाँ गयी भैंस? सोचते ही कलेजा मुँह को आ गया?
लड्डू मास्टर ने दीवार पर लगी लोहे की उस मजबूत कुण्डी को देखा, जिसमें भैंस के गले की रस्सी बंधी रहती थी! कुण्डी मजबूती से सही सलामत अपनी जगह पर फिट थी, लेकिन भैंस की रस्सी उसमें नहीं बन्धी थी!
भैंस गायब थी!
कुछ देर तो लड्डू मास्टर माथे पर हाथ रखे, मरे हुए हाथी से पड़े रहे! फिर अचानक बड़ी जोर से चिल्लाये -छम्मकछल्लो!”
“हाँ जी, बोलो!” बड़ी तेज़ी से भागकर निकट आई छम्मकछल्लो हाँफते-काँपते हुए बोली!
“भैंस गायब है!” लड्डू मास्टर रोते हुए बोले!
“गायब है? कहाँ गायब है? कैसे गायब है? क्यों गायब है? किसलिये गायब है?” छम्मकछल्लो झटाझट -फटाफट पूछती चली गयी!
“अरी मुझे क्या मालूम?” रात को देखकर गया तो यहीं, इसी खूँटे से बंधी सो रही थी!” लड्डू मास्टर ने दीवार पर लगी कुण्डी की ओर इशारा किया!
“खूँटे से बन्धी थी तो गायब कैसे हो गयी? कहीं आपने रस्सी खुली तो नहीं छोड़ दी थी! हाँ, यही हुआ होगा! आप हो भी तो जमाने भर के भुलक्कड़ !” छम्मकछल्लो बोली!
“अरी नहीं री…! क्या बात करती है तू? पहले कभी रस्सी खुली छोड़ी है मैंने और फिर उसके गले में घण्टी भी तो बन्धी थी! भागती तो घण्टी भी बजती है और तू तो जानती है, मेरी नींद कुत्ते जैसी होती है! घण्टी बजती तो मैं जरूर उठ गया होता, लेकिन नहीं उठा, मतलब घण्टी बजी ही नहीं!” यह कहकर लड्डू मास्टर भैंस की याद में सुबकने लगे !
पति को रोते देख छम्मकछल्लो प्यार से बोलीं -“अज़ी, भैंस ही तो गायब हुई है, तुम्हारी बीवी थोड़े ही खो गयी है, जो ऐसे गला फाड़कर रो रहे हो। बाहर निकलकर ढूँढोगे, तब न मिलेगी – कहीं पर भैंस।”
बात लड्डू मास्टर की समझ में आई तो रोना-धोना भूल एकदम घर से बाहर निकले और आसपास के सभी अड़ोसियों-पड़ोसियों के घर जाकर अपनी भैंस के बारे में पूछताछ करने लगे, किन्तु भैंस किसी पड़ोसी के यहाँ होती, तब न मिलती।
शाम के समय लड्डू मास्टर के मोहल्ले के बड़े बुजुर्ग एक घने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर पंचायत करते थे या यूँ कहिये कि गली-मोहल्ले की समस्याओं को सुलझाया करते थे। उस शाम पंचायत बैठी तो रोता-कलपता लड्डू मास्टर भी वहाँ पहुँच गया।
“क्या हुआ लड्डू मास्टर ?” पंच प्रधान गेंदाराम ने पूछा -“शक्ल पर बारह क्यों बज रहे हैं?”
“प्रधान जी, मेरी भैंस गायब हो गयी।” लड्डू मास्टर बोला।
“गायब हो गयी ? कहाँ गायब हो गयी ? आसपास ढूँढो। यहीं कहीं होगी।” गेंदाराम ने कहा।
“नहीं है। सबके यहाँ ढूँढ ली।” लड्डू मास्टर रोता हुआ बोला।
“फिर तो तुझे कल सुबह-सुबह राजाजी के यहाँ अपनी शिकायत और विनती करने के लिये जाना चाहिये। वही तेरी भैंस का पता लगवा सकै हैं।” पंच प्रधान गेंदाराम ने कहा।
लड्डू मास्टर मन मसोस कर रह गया। शाम हो गयी थी और अब राजदरबार में जाने की कोई तुक नहीं थी। हर रोज़ दोपहर तीन बजे राजदरबार अगले दिन के लिये स्थगित कर दिया जाता था।
उस रात लड्डू मास्टर को ठीक से नींद भी नहीं आयी। सुबह-सुबह उसने खर्राटे मारकर सोती अपनी पत्नी छम्मकछल्लो को भी उठा दिया और बोला -“तू भी जल्दी से अच्छे से कपडे पहन कर तैयार हो जा। राजदरबार चलना है।”
“अज़ी हद करते हो। मैं क्या करूँगी वहाँ जाकर। राजा साहब को मेरी ख़ूबसूरती दिखानी है क्या ?” छम्मकछल्लो बुरा-सा मुँह बनाकर बोली।
“पागल है क्या ?” लड्डू मास्टर ने कहा -“तेरे से हज़ार गुना खूबसूरत लौंडियों से राजमहल भरा होगा। रानी साहिबा की सेवा करने वाली दासियाँ भी तुझसे ज्यादा खूबसूरत होंगी। तुझे तो इसलिये चलने को कह रहा हूँ, क्योंकि तेरा भाई छुईमुईराम भी तो राजासाहब के तबेले में काम करता है। अगर किसी सिफारिश की जरूरत पडी तो तेरा वहाँ होना बहुत काम आयेगा।”
छम्मकछल्लो ने लाख मना किया, किन्तु लड्डू मास्टर नहीं माना तो उसे भी तैयार होना ही पड़ा।
करीमगंज के राजा मोटेलाल का दरबार लगा ही था कि रोता-बिसूरता लड्डू मास्टर राजदरबार के फर्श पर लुढ़कता-पुढ़कता, हाथ-पैर जोड़ता उपस्थित हुआ।
“क्यों रो रहे हो ? राजदरबार में क्यों आये हो ?” राजा मोटेलाल ने गरज़कर पूछा तो लड्डू मास्टर ने भैंस के गायब होने की दुःख भरी दास्तान कह सुनाई।
राजा मोटेलाल ने सवाल किया कि “तुमने अपने अड़ोस-पड़ोस में भैंस ढूँढी?”
“ढूँढी महाराज। कहीं नहीं मिली ?” लड्डूमास्टर अपना सिर पकड़कर बोला-“मुझे तो लगता है। करीमगंज से बाहर का कोई चोर उसे चुरा ले गया है।”
“असम्भव..।” राजा मोटेलाल गरजकर बोले -“भैंस करीमगंज से बाहर तो कहीं जा ही नहीं सकती, क्योंकि हमने करीमगंज की सारी सीमाएँ सील कर रखी है! आजकल करीमगंज की सीमाओं से लगने वाले जंगल में एक शेर ने बड़ा उत्पात मचा रखा है, उसी शेर को मार गिराने के लिये हमने करीमगंज की सीमा पर हर तरफ बहादुर सैनिकों को तैनात कर रखा है!” राजा मोटेलाल ने कहा -“तुम्हारी भैंस खूंटे से छूटकर भागी हो या चोरी हुई हो, करीमगंज से बाहर नहीं जा सकती। ऐसा करो, हम अपने दो सैनिक तुम्हारे साथ कर देते हैं। तुम उनके साथ करीमगंज में उन सभी लोगों के घरों में जाकर अपनी भैंस को तलाश करो, जिन्होंने भैंसें पाल रखी.हैं। हमारा विचार है पूरे करीमगंज में ऐसे सौ से ज्यादा घर नहीं होंगे। शाम तक अगर तुम्हारी भैंस मिल जाती है तो ठीक, वरना कल फिर तुम राजदरबार में आना। हम सोचेंगे कि तुम्हारी भैंस ढूँढने के लिये क्या किया जाये ?”
लड्डू मास्टर दुखी मन से सैनिकों के साथ घर-घर जाकर अपनी भैंस ढूँढता रहा, लेकिन भैंस कहीं नहीं मिली। शाम भी हो चुकी थी और लड्डू मास्टर थक भी चुका था, इसलिये सैनिकों को वापस जाने को कह, लड्डू मास्टर भी अपने घर चल दिया।
अगली सुबह वह फिर से अपनी पत्नी छम्मकछल्लो को साथ लेकर राजदरबार गया।
“क्या हुआ ?” राजा मोटेलाल ने कहा -“तुमने राज्य के सारे भैंसपालकों की भैंसे देख लीं।”
“हाँ महाराज।” लड्डू मास्टर विनीत स्वर में बोला -“मगर कहीं भी मेरी भैंस नहीं मिली।”
“अच्छा। ज़रा बताओगे – कैसी थी तुम्हारी भैंस ?” राजा ने पूछा।
“बहुत सुन्दर थी। मेरी बीवी से भी ज्यादा सुन्दर। बहुत हट्टी-कट्टी थी – मेरी बीवी से भी ज्यादा तन्दुरुस्त। और उसके गले में एक बड़ी सुन्दर घण्टी भी बन्धी थी।” लड्डू मास्टर ने कहा।
“घण्टी भी बन्धी थी ?” राजा मोटेलाल ने बुदबुदाते हुए प्रश्न किया।
“जी महाराज।” लड्डू मास्टर ने कहा।
“तो ठीक है – अगर तुमने करीमगंज के सभी तबेलों में अपनी भैंस ढूँढ ली है और तुम्हें अपनी भैंस नहीं मिली तो आखिरी तबेले राजा के तबेले में भी नज़र मार लो। अपने तबेले की भैंसे दिखाने के लिये हम खुद तुम्हारे साथ चलते हैं।” और राजा मोटेलाल लड्डू मास्टर और छम्मकछल्लो को अपने साथ लेकर शाही तबेले में गये, जहाँ लड्डू मास्टर का साला, छम्मकछल्लो का भाई छुईमुईराम एक भैंस को नहला रहा था और वह भैंस बहुत उछल-कूद मचा रही थी।
लड्डू मास्टर उस उछल-कूद मचाती भैंस को देखकर चीखा -“महाराज, यही है। यही है मेरी भैंस।”
“तुम हम पर चोरी का इलज़ाम लगा रहे हो लड्डू मास्टर।” राजा मोटेलाल गुर्राये।
“नहीं महाराज।” लड्डू मास्टर विनम्रता से हाथ जोड़कर, रो दिया -“लेकिन मेरी भैंस यही है।”
“मगर इसके गले में घण्टी नहीं है।” राजा मोटेलाल ने भैंस के गले की ओर संकेत किया। तब तक भैंस अपने मालिक लड्डू मास्टर को पहचान उसके निकट आ उसके पैर चाटने लगी थी।
राजा मोटेलाल यह देख हक्के बक्के रह गये, लेकिन यह समझते उन्हें देर नहीं लगी कि लड्डू मास्टर के पैर चाटने वाली भैंस लड्डू मास्टर की ही है!
राजा मोटेलाल ने घूरकर शाही तबेले की गाय भैंसों की देखभाल करने वाले छुईमुईराम को निकट बुलाया और कड़क कर उससे पूछा -“यह भैंस शाही तबेले में कैसे आई?”
छुईमुईराम की घिग्घी बंध गयी! उसने बड़ी दीनता से अपनी बहन छम्मकछल्लो की ओर देखा!
जब छम्मकछल्लो को लगा कि उसका भाई फंस जायेगा और उसे कड़ी सजा भी मिल सकती है तो वह एकदम राजा मोटेलाल के पैरों में गिर पड़ी और बिलख-बिलखकर बोली -“महाराज, मेरे विवाह को तीन साल हो गये हैं, लेकिन लड्डन शाह ने कभी भी मेरे प्रति अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई! यह सुबह शाम रात अपनी भैंस की सेवा में लगा रहता है और दिन भर ग्राहकों के कपड़े सिलता रहता है! अपने मायके में घर की सभी गाय भैंसों का ख्याल मैं ही रखती थी, भैंसों को नहलाना-धुलाना, उन्हें चारा डालना, उनका गोबर उठाना, उसके उपले बनाना, सभी काम मैं बहुत अच्छे से करती थी, लेकिन लड्डन शाह के घर तो मैं खाना पकाने, कपड़े धोने और साफ-सफाई करने वाली एक नौकरानी बनकर रह गयी हूँ! लड्डन शाह के पास मुझसे दो प्यार के बोल, बोलने का भी समय पहली बार अब मिला है, जब लड्डन शाह की भैंस घर के तबेले से गायब हो गयी और मैं छम्मकछल्लो यह कबूल करती हूँ कि यह भैंस मैंने ही भैंस के गले की घण्टी उतारकर, घर के तबेले से निकाल अपने भाई छुईमुईराम को दी थी और उससे कहा था कि इसे राजा के तबेले में बांध ले, लड्डन शाह सारी दुनिया में भैंस को तलाश कर लेगा, पर राजा के तबेले में तलाश करने का तो विचार भी नहीं कर सकेगा, पर आप जैसे न्यायप्रिय राजा तो लड्डन शाह को शाही तबेले में भी ले आये! अब मैं क्या करूँ महाराज? अपने पति को अपना बनाने के लिये सौतन भैंस से छुटकारा पाने की मेरी कोशिश असफल हुई और आपके सामने अपना अपराध स्वीकार करने के सिवाय मेरे पास कोई चारा नहीं रह गया, किन्तु मैं आपसे दया की भीख माँगती हूँ महाराज! मुझे क्षमादान दें और मेरे पति को समझायें कि विवाह के उपरान्त हर पति को सबसे पहले अपना घर-बार-मायका, भाई-बहन-संगी-सहेलियों को छोड़कर पति के घर आने वाली अपनी पत्नी के प्रति अपनी सभी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिये! उसे खुश रखना चाहिये! उसके बाद घर के कामों में पत्नी का सहयोग करना चाहिये, ना कि अपने आप में मस्त रहकर पत्नी को भुला देना चाहिये!”
राजा मोटेलाल के पांव थामे छम्मकछल्लो फूट-फूटकर रो रही थी!
राजा मोटेलाल को छम्मकछल्लो पर बहुत तरस आया! वह उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले -“उठो बेटी, हम तुम्हारा दुख समझ गये हैं और तुम्हें कोई सज़ा नहीं देंगे!”
फिर राजा मोटेलाल लड्डू मास्टर की ओर घूमे और गरज़ कर बोले -“लड्डू मास्टर, तुम अपनी भैंस को एक ही शर्त पर अपने घर ले जा सकते हो और वह यह शर्त यह है कि आज से तुम अपनी भैंस को अपनी मर्जी से हाथ भी नहीं लगाओगे और अपनी पत्नी का पूरा ख्याल रखोगे! उसकी हर बात मानोगे! बेवकूफ आदमी, भगवान ने हर पत्नी को एक भगवान बनाया है! पत्नी ही हर व्यक्ति का परिवार आगे बढ़ाती है! उसकी सन्तान उत्पन्न करती है! अपने पूरे परिवार के हर शख्स का ध्यान रखती है! जैसे भगवान इस संसार में मनुष्यों को जन्म देता है! उनके पालन-पोषण, जीवन यापन का प्रबन्ध करता है! वैसे ही एक पत्नी अपने पति की सन्तान को जन्म देती है और अपने परिवार के पालन पोषण और सुखी जीवन यापन के लिये पति की हर जरूरत कि ख्याल रखती है!”
लड्डू मास्टर की समझ में नहीं आया क्या कहे, हड़बड़ाकर बोला – “जी महाराज!”
राजा मोटेलाल छम्मकछल्लो की ओर घूमे-“बेटी छम्मकछल्लो, हमें पूरा विश्वास है कि अब से लड्डू मास्टर तुम्हारा पूरा-पूरा ख्याल रखेगा और अपनी भैंस के तबेले में कभी झांकेगा भी नहीं, लेकिन ऐसा न हो तो इस बार तुम अपनी भैंस किसी कसाई को भी बेच सकती हो!”
“नहीं-नहीं महाराज, यह आप क्या कह रहे हैं! कसाई तो मेरी भैंस को काटकर बेच डालेगा!” लड्डू मास्टर बौखलाकर बोला!
“हाँ तो, अगर अपनी भैंस को अपने घर में जीवित देखना चाहते हो तो आज से समझ जाओ, यह भैंस तुम्हारी नहीं, तुम्हारी पत्नी की है! वैसे भी विवाह के बाद पति की हर चीज़ उसकी नहीं रह जाती, पहले उसकी पत्नी की होती है, फिर उसकी !”
लड्डू मास्टर गहरी सांस लेकर रह गया! फिर सिर झुकाकर बोला -“मैं समझ गया महाराज! आज से मैं अपनी जोरू का गुलाम ! जो वो कहेगी, वो ही मैं करूँगा! वो कहेगी – उठो तो उठ जाऊँगा! वो कहेगी – बैठो तो बैठ जाऊँगा!”
दोस्तों, अब भी नहीं समझे – पत्नी की जीहुजूरी करने वाले पतियों के लिये यह जो आप सुनते आये हैं, जोरू का गुलाम – यह तभी से चर्चित हुआ है और अब तो हर पति को अपनी पत्नी यानि जोरू का गुलाम कहा जाने लगा है! जिन-जिन लोगों ने यह किस्सा सुना है – खुद फैसला करें कि वे अपनी जोरू के गुलाम हैं या नहीं! अगर नहीं हो तो आज ही बन जाओ भाई लोगों – परिवार की सुख शान्ति और उन्नति के लिये हर पति को अपनी अच्छी अच्छी पत्नी का गुलाम बन ही जाना चाहिये !
MORAL:
भैंस तो एक उदाहरण या उपमा है! यह कहानी उन पतियों के लिये एक मार्गदर्शन है – जो अपने विभिन्न शौकों, आदतों और मित्रों को, पत्नी से अधिक महत्व देते हैं! विवाह के बाद हर पति की पहली मित्र, संगी, साथी, शौक और आदत – अगर पत्नी ही हो तो घर में खुशियाँ ही खुशियाँ रहती हैं!