देश का मान संविधान, देश संविधान से चलता है!
भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है और पूरा हस्तलिखित है। इसमें 48 आर्टिकल, 12 अनुसूची और 94 संशोधन हैं। संविधान सभा के सभी 283 सदस्यों के संविधान पर हस्ताक्षर हैं जो 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया था। संविधान को तैयार करने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा था। संविधान सभा के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद और ड्राफ्ंिटग कमेटी के चेयरमैन डा. बी.आर. अम्बेडकर थे उन्हें संविधान का पितामह तथा जनक भी कहा जाता है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर के दिन राष्ट्रीय संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है वर्ष 1949 में 26 नवम्बर को संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को स्वीकृत किया गया था, जो 26 जनवरी, 1950 को प्रभाव में आया। हमारा संविधान हमारी संस्कृति तथा सभ्यता के अनुरूप है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में विश्व एकता, विश्व शान्ति तथा अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करने के लिए प्रत्येक नागरिक तथा देश को कार्य करने के लिए बाध्य करता है।
संविधान की मूल प्रति को आज भी हीलियम के अंदर डाल के भारतीय संसद की लाइब्रेरी में रखा गया है। भारत का मूल संविधान प्रिंट नहीं किया गया था बल्कि यह हाथ से लिखा गया था। भारतीय संविधान को हिन्दी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में लिखा गया था। 26 जनवरी 1950 को ही सारनाथ में अशोक द्वारा बनवाए गए सिंह स्तंभ को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर अपनाया गया था। 26 जनवरी 1950 को ही सिंह स्तंभ के पहिए, बैल और घोड़े की मूर्ति वाले हिस्से को राष्ट्रीय चिह्न बनाया गया।
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ यह दिन आजादी का जश्न मनाने का दिन है। भारत 26 जनवरी 1950 को एक गणतंत्र बना। यह दिन अपने अनूठे संविधान को याद करने का दिन है। संविधान बनाने के लिए डा. राजेन्द्र बाबू की अध्यक्षता में संविधान समिति बनाई गई। जनवरी 26, 1949 को यह बन कर तैयार हो गया और इस पर हस्ताक्षर हुए। 26 जनवरी, 1950 से यह प्रभाव में आया और भारत एक सर्वप्रभुसत्ता सम्पन्न लोकतंत्रीय गणराज्य बन गया। इसका तात्पर्य यह है कि भारत पर इसके किसी भी कार्य, नीति आदि के संबंध में किसी बाहरी शक्ति का कोई हस्तक्षेप नहीं हैं और यहां की जनता और उसके चुने हुए प्रतिनिधियों में ही अंतिम और संपूर्ण शक्ति है। केन्द्र में, अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति ही देश का प्रधान है। लेकिन वास्तविक सत्ता का उपयोग प्रधानमंत्री और उनका मंत्रीमंडल करता है। प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी मंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं। संसद के दो घर हैं- लोक सभा, राज्य सभा। लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा सीधे चुने जान हैं। हर व्यस्क भारतीय को चुनाव में अपना मताधिकार उपयोग करने की स्वतंत्रता रहती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत के वयस्क मतदाता राज्यों में विधानसभाओं के सदस्यों का भी प्रत्यक्ष रूप से चुनाव करते हैं।
राज्यों में राज्यपाल प्रमुख है। लेकिन वास्तविक सत्ता मुख्यमंत्री और उसके मंत्रीमंडल में निहित रहती है। देश में सारे कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किये जाते हैं। वह सेना के तीनों अंगों का प्रधान होता है, लेकिन यह सब औपचारिक होता है। सारी सत्ता और शक्ति प्रधानमंत्री और उसके सहयोगी मंत्रियों में होती है। हमारा संविधान की कई अन्य विशेषताएं भी हैं। यह लचीला है और कठोर भी। जहां तक संविधान में संशोधन का प्रश्न है यह बड़ा कठोर हैं। संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन सरल नहीं है। इसका लचिलापन देश के विकास में सहायक है। इसका कई बार आवश्यकतानुसार संशोधन भी किया जा चुका है। यह संघीय भी है और केन्द्रीय भी। केन्द्र व राज्यों के बीच अधिकारों और विषयों का साफ-साफ बंटवारा है लेकिन केन्द्र अधिक शक्तिशाली है। केन्द्र ही राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति करता है।
यह संविधान भारतीय नागरिकों को उनके मूल अधिकार प्रदान करता है। यदि उनका उल्लंघन होता है, तो कोई भी न्यायालय की शरण जा सकता है। उच्चतम न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह नागरिकों के मूलभूत अधिकारों और स्वतंत्रता पर आंच न आने दे। इन अधिकारों में स्वतंत्रता, धर्म और समानता के अधिकार प्रमुख हैं। संविधान में नागरिकों के दायित्व और कर्तव्य भी बताये गये हैं। संविधान में दिये गये राज्य की नीति के निर्देशक तत्व भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। सरकार को अपनी नीतियां बनाते समय इनको ध्यान में रखना होता है, लेकिन इनका पालन करने के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता। हमारे न्यायालय पूर्णतः स्वतंत्र हैं ।
हमारा उच्चतम न्यायालय किसी भी नियम-कानून पर विचार कर सकता है और आवश्यक हो तो उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है। हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। इसका तात्पर्य है कि यहां सभी धर्मों को समान रूप से स्वतंत्रता है। यहां कोई राज्य धर्म नहीं हैं केन्द्र या राज्य सरकारें किसी धर्म विशेष का पक्ष नहीं लेती। धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं है। हमारा संविधान लगभग 66 वर्ष पुराना है। इससे हमारे देश को आगे बढ़ने में बड़ी सहायता मिली है, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि इसमें हमारी बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुरूप मूलभूत परिवर्तन होना चाहिये।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 नवम्बर 2016 को कहा कि बाबासाहेब का अर्थ संविधान है और संविधान का अर्थ बाबासाहेब ( भीमराव अंबेडकर)। यह उपलब्धि अतुलनीय है। प्रधानमंत्री ने कहा कि गणतंत्र दिवस के तौर पर मनाए जाने वाले 26 जनवरी की ताकत 26 नवंबर संविधान दिवस में निहित है। मोदी ने कहा, वक्त बदल चुका है। अब हर कोई संविधान में अपने अधिकारों को खोजने की कोशिश करता है। हम सभी संविधान की भावना से जुड़ें। इसके अनुच्छेदों से जुड़ना ही काफी नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने संविधान दिवस के मौके पर संविधान में वर्णित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के सिद्धांतों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों को मजबूत करने का संकल्प लेने की जरूरत बताई। देश कानून तथा संविधान से चलता है।
वर्तमान में विश्व की शांति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र के संघ के सदस्य देश युद्ध रहित, प्रदुषण रहित, परमाणु शस्त्रों रहित तथा आतंकवाद रहित विश्व बनाने के मुद्दों पर इण्टरनेशनल कोर्ट आॅफ जस्टिस की प्रायः अवहेलना करते दिखाई देते हैं। आज सारा विश्व एक सभ्य समाज में जी रहा है। दो देशों के आपसी मतभेदों का फैसला निष्पक्ष न्यायालय द्वारा त्वरित गति से किया जाना चाहिए। धरती पर परमाणु बमों, आतंकवाद तथा युद्धों का नहीं वरन् प्रभावशाली कानून का राज होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्गत चलने वाले इण्टरनेशनल कोर्ट आॅफ जस्टिस को विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर शक्ति प्रदान कर प्रभावशाली विश्व न्यायालय का स्वरूप प्रदान करना चाहिए। आज विश्व में कानून तो है लेकिन कई देश इसका सम्मान नहीं करते और अपनी मनमानी करते हैं। दरअसल कोई देश, जाति या धर्म छोटा-बड़ा नहीं होता। कानून सबके लिए बराबर है और यही कानून की डोर मानव जाति को एक करती है।
न्याय पर आधारित पूरे संसार के लिए एक विश्व संविधान अपनाना होगा, जो इस विश्व संविधान का उल्लंघन करे; उसके लिए प्रभावशाली कानून के अन्तर्गत दण्ड का प्रावधान करना होगा। इण्टरनेट के युग में आज नई पीढ़ी आजादी मांग रही है, उसको दुनिया भर में घूमकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना है। उन्हें देशों की चहारदीवारी से आजाद होना है। किन्तु विडम्बना यह है कि आज विश्व के अनेक देशों की राजसत्ता घूम-फिर कर उन्हीं दकियानूस लोगों के हाथ में रहती है, जो अनेक साल पहले की किताबों को पढ़े हैं और विश्व की मौजूदा चुनौतियों से अनभिज्ञ हैं। विश्व भर की विश्व संसद, विश्व न्यायालय और विश्व सरकार बनाने की आज के युग में सबसे बड़ी आवश्यकता है। कोई साधारण नागरिक इस काम को बहुत बड़ा और बहुत मुश्किल काम मान सकता है, लेकिन देशों में शासन कर रहे शासकों के लिये यह काम मुश्किल नहीं है। जिस शासक को यह काम बहुत बड़ा और मुश्किल लगता है, वास्तव में वह शासक बनने के योग्य ही नहीं है।
सम्पूर्ण विश्व में अनिवार्य रूप से बच्चों को बचपन से ही कानून व्यवस्था एवं न्याय के मूल सिद्धान्त पढ़ाये जाने चाहिये और प्रत्येक बच्चे को कानून पालक, सुव्यवस्थित और न्याय संगत होना चाहिए। सभी कानून सामाजिक जरूरतों व समयानुकूल बनें व लागू हों जिससे सभी को न्याय दिया जा सके। न्याय वास्तविक न्याय होना चाहिये जिससे सभी निर्दोषों, बच्चों, गरीबों, लाचार तथा कमजोरों को मानवाधिकार व त्वरित न्याय मिले।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि धरती की सरकार के लिए अतीत में बहुत लोग प्रयत्न किये लेकिन उनमें से अधिकांश की मंशा विश्व का तानाशाह बनने का था। अन्य देशों को अपने व्यापारिक हित के लिए गुलाम बनाने का था। लेकिन भारत के लोगों में अतीत काल से विश्व का तानाशाह बनने की तमन्ना नहीं रही। विश्व का पालक-पोषक बनने की ख्वाहिश रही। विश्व के राष्ट्रपिता की जिम्मेदारी निभाने की भावना रही। विश्व- भोग्या बनने की चाहत नहीं रही, विश्वमाता की ममता रही। यहां पहले से ही धरती को माता कहा जाता रहा। भारत के बहुसंख्य लोगों की रग-रग में यह भाव बसा है। यह भाव उनके खून के कतरे-कतरे में मौजूद है। यह चेतना उनके जीन्स में प्रवेश करके उनकी जेहन बन गया है। इसलिए भारत जैसे देशों के लिए विश्व का राष्ट्रीयकरण करना सबसे आसान है। अब विश्वव्यापी समस्याऐं आतंकवाद, शरणार्थी, प्रदुषण, बेरोजगारी, बीमारी आदि राष्ट्रीय सरकारों द्वारा नहीं हल की जा सकती उन्हें हल करने के लिए विश्व सरकार के गठन की परम आवश्यकता है।
संत विनोबा भावे जय जगत का नारा दिया था। उनसे किसी ने पूछा कि दो राष्ट्रों के बीच झगड़ा होने से कोई एक राष्ट्र हारेगा तथा कोई एक राष्ट्र जीतेगा। सारे जगत की जय कैसे होगी? उन्होंने बताया कि बच्चों के सुरक्षित भविष्य की खातिर यदि विश्व के सभी देश यह बात हृदय से स्वीकार कर लें कि आपस में लड़ना ठीक नहीं है तो सारे विश्व में ‘जय जगत’ हो जायेगा। विश्व स्तर पर राष्ट्रीय सरकार बनाने की पहल करना संसार में भारत जैसे उस देश के लिए सबसे आसान है- जहां पहले से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की सोच रही है, जहां पहले से ही ‘विश्व का कल्याण हो’ की प्रार्थना रही है, जहां पहले से ही ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः की आकांक्षा रही हो। जहां पहले से ही विश्व गुरू बनने का सपना रहा है। सवा सौ करोड़ लोगों का भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेंगा! लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाली पूरी दुनिया के लिए भारत एक नई आशा की किरण है!
आज विश्व को पुनः डा. अम्बेडर जैसे महान व्यक्ति की आवश्यकता है जो विश्व संविधान की रचना करने के लिए आगे आये। वल्र्ड की जुडीशयरी को एकजुट होकर मानव जाति के हित में विश्व की संसद बनाने के लिए वल्र्ड लीडर्स को प्रेरित करना चाहिए। विश्व एकता सम्भव ही नहीं वरन् अब अनिवार्य है। विश्व इतिहास में पहली बार यह सम्भव हो सका है कि इस समूची धरती ‘पृथ्वी ग्रह‘ को एकता एवं समग्रता की दृष्टि से देखा जा सकता है। इस धरती पर मानव जाति के सामूहिक भविष्य के लिए योजना बनाने के जो अवसर इस समय हमारे पास हैं वे मानव इतिहास में इससे पहले कभी नहीं थे।
प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक
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