आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको॥
आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी।
कोई कहियौ रे प्रभु आवनकी
आवनकी मनभावन की।
गली तो चारों बंद हु हैं मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय॥
गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा।
जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन।
तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर।
म्हारे घर आ प्रीतम प्यारा॥
तेरो कोई नहिं रोकणहार मगन हो मीरा चली॥
दरस बिन दूखण लागे नैन।
दरस म्हारे बेगि दीज्यो जी
ओ जी अन्तरजामी ओ राम खबर म्हारी बेगि लीज्यो जी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी-नगरी
पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे॥
पपैया रे पिवकी बाणि न बोल।
सुणि पावेली बिरहणी रे थारी रालेली पांख मरोड़॥
पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो॥ टेक॥
प्यारे दरसन दीज्यो आय तुम बिन रह्यो न जाय॥
प्रभु जी तुम दर्शन बिन मोय घड़ी चैन नहीं आवड़े॥टेक॥
प्रभुजी थे कहां गया नेहड़ो लगाय।
छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेम की बाती बलाय॥
प्रभुजी मैं अरज करुं छूं म्हारो बेड़ो लगाज्यो पार॥
बरसै बदरिया सावन की
सावन की मनभावन की।
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस॥
बसो मोरे नैनन में नंदलाल।
बादल देख डरी हो स्याम मैं बादल देख डरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
बाला मैं बैरागण हूंगी।
मन रे परसि हरिके चरण।
नटवर नागर नन्दा भजो रे मन गोविन्दा
श्याम सुन्दर मुख चन्दा भजो रे मन गोविन्दा।
अब तो निभायां सरेगी बांह गहे की लाज।
समरथ शरण तुम्हारी सैयां सरब सुधारण काज॥
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय।
घायल की गति घायल जाणै जो कोई घायल होय।
मैं गिरधर के घर जाऊं।
गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊं॥
मैं तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू लोक-लाज तजि नाची॥
म्हारो प्रणाम बांकेबिहारीको।
म्हारे घर होता जाज्यो राज।
अबके जिन टाला दे जा सिर पर राखूं बिराज॥
राणोजी रूठे तो म्हारो कांई करसी
म्हे तो गोविन्दरा गुण गास्यां हे माय॥
राम मिलण के काज सखी मेरे आरति उर में जागी री।
सखी मेरी नींद नसानी हो।
सहेलियां साजन घर आया हो।
बहोत दिनां की जोवती बिरहिण पिव पाया हो॥
सुण लीजो बिनती मोरी मैं शरण गही प्रभु तेरी।
तुम तो पतित अनेक उधारे भव सागर से तारे॥
स्याम मने चाकर राखो जी
गिरधारी लाला चाकर राखो जी।
स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान॥
हरि मेरे जीवन प्राण अधार।
हरि तुम हरो जन की भीर।
हे मेरो मनमोहना आयो नहीं सखी री।
होरी खेलत हैं गिरधारी।