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ये गर्व भरा मस्तक मेरा

भजन - विविध भजन

ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे
अंहकार विकार भरे मन को
निज नाम की माला जपने दे

मैं मन के मैल को धो ना सका
ये जीवन तेरा हो ना सका
मैं प्रेमी हूँ, इतना ना झुका
गिर भी जो पडू तो उठने दे.
ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे

मैं ज्ञान की बातों में खोया
और कर्महीन पड़कर सोया
जब आँख खुली तो मन रोया
जग सोये मुझको जागने दे.
ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे

जैसा हूँ मैं, खोटा या खरा
निर्दोष शरण में आ तो गया
इक बार ये कह दे खाली जा
या प्रीत की रीत छलकने दे.
ये गर्व भरा मस्तक मेरा
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे

 

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