Homeभक्त बुल्ले शाह जी काफियांअपने संग रलाईं – काफी भक्त बुल्ले शाह जी

अपने संग रलाईं – काफी भक्त बुल्ले शाह जी

अपने संग रलाईं

अपणे संग रलाईं पिआरे, अपने संग रलाईं| टेक|

पहलां नेहुं लगाया सी तैं, आपे चाईं चाईं;
मैं पाया ए या तुध लाया, आपणी तोड़ निभाई|

राह पवां तां धाड़े बेले, जंगल, लख बलाईं;
बिघने चीते ते चित्त-मचीते, बिघने रोकण राही|

हौल दिले तों थर-थर कंबदा, बेड़ा पार लंघाईं;
बल्ल्हे शाह नूं शौह दा मुखडा घुंघट खोल दिखाईं|

अपने संग मिला ले 

अध्यात्म-यात्रा के कष्टों का वर्णन करते हुए शिष्य सतगुरु से निवेदन करता है कि है प्यारे, मुझे अपने से मिला ले, पूर्णत: अपने साथ| पहले तो स्वयं तुम्हों ने बड़े चाव से प्रेम किया था| अब चाहे यह प्रेम मैंने किया या तुमने मुझे लगा दिया, (इस झगड़े को भूलकर) तुम अपनी कृपा से अन्त तक उस प्रेम को निभाते रहना| इस प्रेम-मार्ग में बहुत विघ्न हैं; राह में डाकू हैं, जंगल हैं और लाखों भयानक जानवर हैं; चीते और तेन्दुए विघ्नकारी बनकर राह रोके खड़े हैं| मेरा हृदय भय से थर-थर कांप रहा है| आप कृपा करके मेरी नैया पार लगा देना| बुल्लेशाह को अपने शौह (पति, परमात्मा) का घूंघट हटाकर मुखडा दिखा देना|

इक अलफ़