अब तो जाग – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
अब तो जाग मुसाफ़र प्यारे,
रैन गई लटके सब तारे| टेक|
आवागौन सराईं डेरे,
साथ तिआर मुसाफ़र तेरे,
अजे न सुणिओं कूच नगारे|
कल लै अज करनी दा बेरा,
मुड़ ना हो सी आवण तेरा,
साथी चल्लो पुकारे|
मोती, चुनी, पारस, पासे,
पास समुन्दर मरो पिआसे,
खोल्ह अक्खीं उठ बौह बेकारे|
बुल्ल्हा शौह दे पैरीं पड़िये,
ग़फ़लत छोड़ कुझ हीला करिये,
मिरग जतन बिन खेत उजाड़े|
अब तो जाग
प्यारे मुसाफ़िर, अब तो जाग जा| रात बीत गई है और सभी तारे लटक चुके हैं (छिप चुके हैं), जीवन तो आना और जाना है| इस संसार में रहना सराय (मुसाफ़िरख़ाने) में टिकने जैसा है| तेरे साथ और भी कई मुसाफ़िर (चलने के लिए) तैयार बैठे हैं, क्या तुने अभी तक कूच-नक्कारे की आवाज़ नहीं सुनी?
तेरा यह समय कुछ कर डालने का समय है, इसलिए उत्तम करनी कर ले| तुझे यहां दोबारा आने का अवसर नहीं मिलेगा| तेरे साथी बार-बार पुकारकर कर रहे हैं कि ‘चलो, चलो’| चलने के समय अर्थात मृत्यु आने पर मोती, अन्न या पारसमणि सब पड़े रह जाएंगे, (किन्तु तेरे किसी काम न आएंगे) जैसे पास ही समुद्र हो, किन्तु प्यासे के किसी काम न आए| अरे निकम्मे, (अब भी) आंखें खोल ले| बुल्लेशाह कहते हैं, शोह (प्रिय, पति, परमात्मा) के चरणों में ख़ुद को डाल दे, गफ़लत (ऊंघ,लापरवाही) छोड़कर भले काम के लिए कुछ उद्यम कर| यदि तू सावधान रहकर यत्न नहीं करेगा, तो मायामृग तेरे खेत को उजाड़ जाएगा|