शिष्य आनंद के जवाब से प्रसन्न हुए गौतम बुद्ध
एक बार भगवान बुद्ध राजगृह में थे। जनसमूह को नित्य प्रवचन देने के उपरांत सायंकाल बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठकर विभिन्न विषयों पर वार्तालाप किया करते थे। ऐसा करने से शिष्यों का भी ज्ञानवर्धन होता था और बुद्ध को उन सभी का तुलनात्मक बौद्धिक स्तर भी ज्ञात हो जाता था।
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एक दिन बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे बातचीत कर रहे थे। अचानक उन्होंने एक प्रश्न उठाया- तुममें से कोई यह बता सकता है कि सबसे उत्तम जल कौन सा है? एक शिष्य ने तत्काल उत्तर दिया-गंगाजल। बुद्ध ने नकारात्मक मुद्रा में सिर हिलाया। दूसरे शिष्य ने कहा- जमीन पर गिरने से पहले का वर्षाजल। बुद्ध इससे भी असहमत थे। तीसरे शिष्य का विचार था उषाकाल की किरणों में चमकता ओसजल।
बुद्ध इस बार भी संतुष्ट नहीं हुए। चौथे शिष्य की दृष्टि में बिछुड़े हुए बेटे से मिलने पर मां की आंखों में आया अश्रुजल सबसे उत्तम जल था तो पांचवें शिष्य के अनुसार फरेब से इकट्ठे धन को देखकर मरणासन्न धनी की आंखों से पश्चाताप स्वरूप निकलने वाले आंसू से बेहतर कोई जल न था।
बुद्ध फिर बोले- नहीं, इससे कहीं अधिक वंदनीय व पवित्र जल भी है? काफी देर से मौन बैठे शिष्य आनंद ने कहा- सर्दी, गर्मी और वर्षा में रात-दिन कठोर परिश्रम कर हमारे लिए अन्न पैदा करने वाले किसान का श्रमजल। यह उत्तर सुनकर बुद्ध के चेहरे पर संतुष्टि की आभा फैल गई और उन्होंने आनंद को आशीष दिया।
प्रसंग श्रम की महत्ता को रेखांकित करता है। जीवन में सफलता के उच्च सोपानों की उपलब्धि तभी होती है, जबकि व्यक्ति पूर्ण उत्साह से परिश्रम करे। श्रमपूर्वक किया गया प्रत्येक कर्म सदैव हितकारी होता है।