पैसे न होने पर लालबहादुर शास्त्री नहीं बैठे नाव मे
गंगा के किनारे खड़ी नाव में सभी यात्री बैठ चुके थे। बगल में ही युवक खड़ा था। नाविक ने उसे बुलाया, पर चूंकि उसके पास नाविक को उतराई देने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वह नाव में नहीं बैठा और तैरकर घर पहुंचा।
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नाव गंगा के पार खड़ी थी। लगभग सभी यात्री बैठ चुके थे। नाव के बगल में ही एक युवक खड़ा था। नाविक उसे पहचानता था। इसलिए उस दिन भी नाविक ने उससे कहा- खड़े क्यों हो? नाव में आ जाओ। क्या रामनगर नहीं जाना है? युवक बोला- जाना तो है किंतु आज मैं तुम्हारी नाव से नहीं जा सकता। नाविक ने पूछा- क्यों भैया, आज क्या बात हो गई? युवक बोला- आज मेरे पास उतराई देने के लिए पैसे नहीं हैं।
नाविक ने कहा- अरे, यह भी कोई बात हुई। आज नहीं तो कल दे देना, किंतु युवक ने सोचा कि मां बड़ी मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाती है। कल भी यदि रुपए की व्यवस्था न हुई तो कहां से दूंगा? उसने नाविक को इंकार कर दिया और अपनी कॉपी-किताबें लेकर छपाक से नदी में कूद गया। नाविक देखता ही रह गया। पूरी गंगा नदी पार कर युवक रामनगर पहुंचा। वहां तट पर कपड़े निचोड़कर भीगी अवस्था में ही घर पहुंचा।
मां रामदुलारी बेटे को इस दशा में देख चिंतित हो उठी। कारण पूछने पर सारी बात बताकर युवक बोला- तुम्हीं बताओ मां, अपनी मजबूरी मल्लाह के सिर पर क्यों ढोना? वह बेचारा खुद गरीब आदमी है। बिना उतराई दिए उसकी नाव में बैठना उचित नहीं था। इसलिए गंगा पार करके आ गया। मां ने पुत्र को सीने से लगाते हुए कहा- बेटा! तू एक दिन जरूर बड़ा आदमी बनेगा। वह युवक लालबहादुर शास्त्री थे, जो भविष्य में देश के प्रधानमंत्री बने और मात्र अठारह माह में देश को प्रगति की राह दिखा दी। वस्तुत: ईमानदारी महान गुण है। जो व्यक्ति अपने विचार और आचरण में नैतिक सिद्धांतों के प्रति ईमानदार रहता है वही सही अर्थो में बड़ा बनता है।