कछुआ और खरगोश
तुमने खरगोश देखा होगा, खरगोश भूरे और सफेद होते हैं| दूसरे भी कई रंगों के खरगोश पाये जाते हैं| कुछ लोग पालते भी हैं| खरगोश को संस्कृत में शशक कहते हैं| खरगोश बहुत छोटा जानवर होने पर भी दौड़ने में बहुत तेज होता है|
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एक बार एक खरगोश बहक रहा था-‘मैं बहुत अच्छी चौकड़ी मरता हूँ| मुझसे तेज संसार में और कोई दौड़ नहीं सकता|’
वही एक कछुआ पड़ा था| कछुए ने कहा-‘भाई! तुम बहुत तेज दौड़ते हो, यह बात तो ठीक है; लेकिन किसी को घमंड नहीं करना चाहिये| घमंड करने से लज्जित होना पड़ता है|’
खरगोश ने कहा-‘मैं अपनी झूठी बड़ाई तो करता नहीं| अपने सच्चे गुण को कहने में क्या दोष है? तू रेंगता हुआ कीड़े की चाल चलता है, इसलिये मेरा गुण सुनकर तुझे डाह होती है|’
जब खरगोश कछुए को बहुत चिढ़ाने लगा तो कछुए ने कहा-‘आपको अपनी चाल का घमंड है तो आइये, हमारी-आपकी दौड़ हो जाय| देखें कौन जीतता है!’
खरगोश ने खूब दूर दिखने वाले एक पेड़ को बताकर कहा-‘अच्छी बात है, चलो, उस पेड़ के पास जो पहले पहुँचेगा, वही जीता माना जायगा|’
खरगोश ने सोचा कि बेचारा कछुआ रेंगता चलेगा| वह पेड़ से चार हाथ दूर रह जाय और उससे आगे पहुँच जाऊँगा| उसने कछुए से कहा-‘तुम तो सुस्त हो, धीरे-धीरे चलोगे, अभी चल पड़ो| मैं थोड़ी देर में आता हूँ|
कछुआ बोला-‘दौड़ तो अभी से आरम्भ मानी जायगी| आपके मन में आवे तब चलें|
खरगोश ने कछुए की बात मान ली| कछुआ धीरे-धीरे रेंगता हुआ चल पड़ा| खरगोश ने सोचा-‘यह तो बहुत देर में पेड़ तक पहुँचेगा| तब तक मैं आराम कर लूँ|’ वह वहीं लेट गया और सो गया| नींद आ जाने पर उसे पता ही नहीं लगा कि कितनी देर पड़ा-पड़ा सोता रहा| जब उसकी नींद टूटी और दौड़ता हुआ पेड़ के पास पहुँचा तो देखाता है कि कछुआ वहाँ पहले से पहुँच गया है| खरगोश लज्जित हो गया| उसने स्वीकार किया कि घमंड करना बुरा होता है|
‘घमंडी का सिर नीचा, घमंड करने वाले और काम को टालने वाले सदा असफल और अपमानित होते हैं| सफलता और सम्मान उनको ही मिलता है, जो धैर्यपूर्वक काम में लगे रहते हैं|