बादशाह के कुबड़े सेवक की कहानी
पुराने जमाने में तातार देश के समीपवर्ती नगर काशनगर में एक दर्जी रहता था जो अपनी दुकान में बैठकर कपड़े सीता था| एक दिन वह अपनी दुकान पर काम कर रहा था कि एक कुबड़ा एक दफ्म (बड़ी खंजरी जैसा बाजा) लेकर आया और उसकी दुकान के नीचे बैठकर गाने लगा| दर्जी उसका गाना सुनकर बहुत खुश हुआ|
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उसने कुबड़े से कहा, अगर तुम्हें आपत्ति न हो तो यहाँ से कुछ ही दूर मेरा घर है, वहाँ चलो और आराम से गाओ-बजाओ|”
कुबड़ा राजी हो गया और दर्जी के साथ उसके घर आ गया| घर पहुँचकर दर्जी ने हाथ-मुहँ धोया और अपनी पत्नी से, जिसे वह बहुत प्यार करता था, बोला, “मैं इस आदमी को लाया हूँ, ताकि तुम्हें इसका सुंदर गायन सुना पाऊँ, लेकिन पहले इसे स्वादिष्ट भोजन करा दो|”
दर्जी की पत्नी ने थोड़ी ही देर में स्वादिष्ट भोजन बनाकर परोस दिया| फिर वे दोनों भोजन करने लगे और कुबड़े को भी अपने साथ बिठा लिया| दर्जी की पत्नी ने बड़ी स्वादिष्ट मछली बनाई थी| कुबड़ा लालच के मारे काँटा निकाले बगैर ही मछली का एक बड़ा टुकड़ा खा गया| कुछ ही देर में उसकी साँसे रुकने लगी| दर्जी बहुत घबराया कि कोतवाल को पता चलेगा तो हत्या के अभियोग में मुझे पकड़ लिया जाएगा|
अतः वह कुबड़े को अचेतावस्था में उठाकर एक यहूदी हकीम के दरवाजे पर ले गया| उसे नीचे लिटाकर दर्जी ने दरवाजे पर ताली बजाई तो हकीम की नौकरानी ने दरवाजा खोला| दर्जी ने उसे पाँच मुद्राएँ देकर कहा, “अपने स्वामी से कहो कि शीघ्र ही आकर मेरे मित्र का उपचार करे|”
नौकरानी अपने मालिक को खबर करने ऊपरी मंजिल में गई| दर्जी ने फिर कुबड़े को देखा तो समझा कि वह मर गया है| उसने उसे उठाया और हकीम के दरवाजे के सहारे खड़ा कर दिया| उसके वह चुपके से खिसक गया|
हकीम नौकरानी से सारा हाल सुनकर जल्दी से नीचे आया| वह समझे हुए था कि पहली ही बार पाँच मुद्राएँ देने वाला आदमी ज़रूर अमीर होगा और इलाज पर काफ़ी रुपया खर्च करेगा| उसने ज्यों ही दरवाजा खोला कि कुबड़ा गिरकर सीढ़ियों से लुढ़कता हुआ गली में आ गिरा| हकीम को बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह क्या गिरा है| दीये की रोशनी में तो कुबड़े को मृत समझकर वह बहुत घबराया और सोचने लगा, ‘यह आदमी मेरे दरवाजे पर मरा पड़ा है| अगर बादशाह को मालूम हुआ तो मैं मुसीबत में पड़ जाऊँगा|’
अतः हकीम ने कुबड़े को उठाकर घर में लाने के बाद एक रस्सी से बाँधा और पिछवाड़े रहने वाले एक मुसलमान के घर के अंदर चुपके से डाल दिया| वह मुसलमान शाही पाकशाला में सामान बेचने वाला व्यवसायी था| उसके घर में बहुत-सा अनाज, घी आदि रहता था| उस व्यापारी का बहुत-सा सामान चूहे खा जाते थे और उसे नुकसान होता| आधी रात को वह व्यापारी आया तो कुबड़े को देखकर समझा कि यह कोई चोर है| यही मेरी चीजें चुरा ले जाता है और मैं समझता हूँ कि चूहों ने नुकसान किया है|
वह एक लाठी ले आया और कुबड़े के सिर पर मारी| एक लाठी पड़ते ही कुबड़ा ज़मीन पर लुढ़क गया| व्यापारी ने पास जाकर गौर से देखा तो मालूम हुआ कि वह मर चुका है| अब वह व्यापारी बड़ा परेशान हुआ| वह अपने मन में कहने लगा, ‘व्यर्थ ही नर हत्या का पाप मुझे लगा! अब चोर को जान से मारने के अपराध में मुझे मृत्युदंड दिया जाएगा|’ यह सोचकर वह मूर्छित हो गया| थोड़ी देर में होश आने पर वह अपने बचाव का उपाय सोचने लगा| फिर उसने कुबड़े को उठाया और अँधेरे में बाज़ार में ले जाकर एक दुकान के दरवाजे के सहारे खड़ा कर दिया और घर में जाकर सो गया|
कुछ ही देर में एक ईसाई उधर से निकला| वह ईसाई एक वैश्या के घर से निकला था और नशे में झूमता चला आ रहा था| ऐसी ही दशा में उसका शरीर कुबड़े के शरीर से टकराया और कुबड़ा गिर गया| ईसाई ने समझा कि यह चोर है, जो मुझे लूटने के इरादे से खड़ा था| उसने उसे घूसों से मारना शुरू कर दिया और साथ ही उच्च स्वर में चिल्लाने लगा, “चोर-चोर-चोर!”
पास ही सिपाही गश्त लगा रहे थे| वे ‘चोर-चोर’ की पुकार सुनकर दौड़े आए तो देखा कि एक कुबड़ा नीचे पड़ा हुआ है और एक ईसाई उसे मार रहा है|
सिपाहियो ने ईसाई से पूछा, “तुम इसे क्यों पीट रहे हो?”
उसने कहा, “यह चोर है| यहाँ चुपचाप खड़ा था ताकि अँधेरे में मेरी गर्दन दबाकर मुझे लूट ले|”
सिपाहियों ने ईसाई को पकड़कर कुबड़े के शरीर समेत कोतवाल के सामने पेश किया| उसने सुबह ईसाई और कुबड़े के साथ गश्त के सिपाहियों को भी काज़ी के सामने पेश किया और रात का हाल बताया|
काज़ी ने स्वयं फैसला करने के बजाय ईसाई को बादशाह के दरबार में पेश कर दिया और कहा कि ईसाई ने इस मुसलमान कुबड़े को चोर समझकर इतना मारा कि यह मर गया| बादशाह ने पूछा इस्लामी न्याय व्यवस्था के अनुसार इस अपराध का दंड क्या होता है?
काज़ी ने कहा, “शरीयत के अनुसार ईसाई को प्राणदंड मिलना चाहिए|”
बादशाह ने कहा, “फिर शरीयत के अनुसार ही इसे दंड दिया जाए|”
चुनाँचे एक बड़े चौराहे पर फाँसी देने की टिकटी खड़ी की गई सारे शहर में मुनादी करवा दी गई कि एक कुबड़े मुसलमान की जान लेने के अपराध में ईसाई को फाँसी दी जाएगी, जिसे देखना हो वह आकर देख ले| थोड़ी देर में चौराहे पर भीड़ इकट्ठी हो गई| ईसाई को बाँधकर लाया गया और कुबड़े का शरीर भी वहाँ रख दिया गया, ताकि लोग देख ले कि किसकी हत्या हुई थी|
जल्लाद ईसाई के गले में फाँसी का फंदा डालने ही वाला था कि भीड़ से निकलकर शाही रसद पहुँचाने वाला व्यापारी सामने आया और ऊँचे स्वर में बोला, “हत्यारा यह ईसाई नही, मैं हूँ| मैं एक हत्या तो कर ही चुका हूँ, अब एक और निरपराध को फाँसी चढ़वाकर अपना पाप क्यों बढ़ाऊँ?” यह कहकर उसने काज़ी के सामने सारी बात बयान कर दी|
काज़ी ने आदेश दिया कि ईसाई को टिकटी से उतार लिया जाए और व्यापारी को फाँसी दी जाए|
व्यापारी की गर्दन में फंदा डालकर जल्लाद उसे खींचने ही वाला था की यहूदी हकीम चीख-पुकार करता हुआ भीड़ से निकला और बोला, “फाँसी इस व्यापारी को नही लगनी चाहिए| मैंने ही झटके से दरवाजा खोला, जिससे यह गिरकर मर गया|”
अब काज़ी ने कहा, “व्यापारी को भी छोड़ दो ओर उसकी जगह यहूदी को फाँसी चढ़ाओ|”
यहूदी की गर्दन पर फंदा डालकर जल्लाद उसे खींचने ही वाला था कि दर्जी चिल्लाता हुआ आया और बोला, “हकीम का कसूर नही है| कुबड़े की लाश मैंने ही हकीम के दरवाजे पर रखी थी|”
काज़ी के पूछने पर उसने बताया, “यह आदमी कल रात को मेरे घर मेरे साथ खाना खा रहा था| मछली खाते समय काँटा इसके गले में अटक गया और इसकी दशा खराब हुई तो मैं इसे लेकर हकीम के पास गया| हकीम के आने में देर हुई| इतनी देर में मैंने उसे देखा तो मेरा पाया| मैं डर के मारे इसकी लाश हकीम के दरवाजे के सहारे खड़ी करके भाग गया|”
काज़ी ने कहा, “जब हत्या हुई तो किसी-न-किसी को फाँसी देनी होगी| इसी दर्जी को फाँसी पर चढ़ा दो|”
लेकिन फाँसी न दी जा सकी, क्योंकि बादशाह के खास सिपाहियों ने आकर फाँसी रुकवा दी और सभी को बादशाह के सामने चलने को कहा| हुआ यह था कि कुबड़ा बादशाह का विदूषक था और उसका मनोरंजन किया करता था| उस दिन वह दरबार में न पहुँचा तो बादशाह ने पूछा कि कुबड़ा क्यों नही आया?
उसके नौकरों ने बताया, “कल शाम को वह शराब पीकर निकल गया था| आज हमने चौराहे पर उसकी लाश देखी और काज़ी उसकी हत्या के अपराध में एक ईसाई को फाँसी पर चढ़ाने जा रहा था| एक अन्य व्यक्ति ने यह अपराध अपने सिर पर लिया| उसकी जगह भी फाँसी के लिए एक और व्यक्ति आ गया| अंत में एक दर्जी ने यह जुर्म अपने ऊपर लिया और अब दर्जी को फाँसी दी जाने वाली है|”
बादशाह ने चारों अभियुक्तों को अपने सामने बुलाया| उसकी समझ में किसी को फाँसी नही मिलनी चाहिए थी, किंतु उसने उन सबका बयान लिया और यह बयान इतिहास की पुस्तक में लिखने की आज्ञा देकर इन लोगों से बोला, “तुम लोग अगर इस कहानी से अधिक रुचिकर कहानी सुना दोगे तो तुम्हें प्राणदान दे दिया जाएगा, वरना प्राणदंड दिया जाएगा|”
“बादशाह! मेरी कहानी बड़ी विचित्र है| अनुमति हो तो उसे सुनाऊँ|” सबसे पहले ईसाई ने कहा|
बादशाह ने उसे अनुमति दे दी तब उसने सुनाना शुरु किया|