हमारी मृत्यु प्रतिक्षण हो रही है – भक्त तुलसीदास जी दोहावली
तुलसी देखत अनुभवत सुनत न समुझत नीच|
चपरि चपेटे देत नित केस गहें कर मीच||
प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि रे नीच! हाथों से तेरी चोटी पकड़कर मृत्यु नित्य ही झपटकर तेरे चपत जमा रही है| यह स्थिति देखकर, सुनकर और अनुभव करके भी तू नहीं समझता| (प्रतिक्षण शरीर का क्षय हो रहा है, यह देखते-सुनते हुए भी जीव अपनी मौत को भुलाकर विषय-सेवन में ही लगा रहता है| उसी को चेतावनी देते हैं )|