फौजी अफ़सर के कर्म
जब बड़े महाराज जी रावलपिण्डी में थे तो वहाँ उनके एक दोस्त ने यह वाक़या सुनाया:
एक फ़ौजी अफ़सर रिसाले में नौकर था| काबुल की ओर पठानों ने कुछ फ़साद किया जिसे रोकने के लिए एक दस्ते को हुक्म दिया गया जिसमें वह सिपाही था| जब वह वहाँ गया तो दोनों तरफ़ से गोलियाँ चल रही थीं| उस सिपाही की घोड़ी मुँहज़ोर हो गयी| उसने बहुत रोका, लेकिन घोड़ी ज़बरदस्ती उसको दुश्मन की फ़ौज में ले गयी| पठानों ने पाँच ने पाँच-छः गोलियाँ घोड़ी को मार दीं, पाँच-छः गोलियाँ फ़ौजी अफ़सर को मार दीं| दोनों मर गये|
फ़ौज का यह नियम था कि फ़ौजी दस्ते के राशन का ठेका बनिये के पास होता था| उस अफ़सर के कोई बाल-बच्चा नहीं था, उसके जो नक़द पैसे थे वह बनिये के पास अमानत रखे थे| जब उसकी मौत हुई, सरकार ने उसके वारियों को सूचना दे दी| उन्होंने आकर तनख्वाह और सामान वगैरह ले लिया| उसका सारा हिसाब ख़त्म करके ले गये| लेकिन जो दो हज़ार रुपया बनिये के पास जमा था, वारिसों को उसका पता नहीं था| बनिये ने उसको अपने हिसाब में शामिल कर लिया|
एक निश्चित समय के बाद बनियों के ठेके बदल दिये जाते थे| जब उस बनिये का समय ख़त्म हो गया तो वह घर आ गया और दुकान खोल ली| उसके लगभग बीस साल बाद महाराज जी का वह मित्र हरिद्वार गया| उसके साथ कुछ और दोस्त भी थे| वापस आते समय सहारनपुर में उसकी उस बनिये से मुलाक़ात हुई|
बनिये ने उसे पहचान लिया क्योंकि रावलपिण्डी में उससे माल ख़रीदने के कारण काफ़ी पहचान हो गयी थी| बनिये ने रात ठहरने के लिए मजबूर किया कि एक तो उनकी रात आराम से बीत जायेगी, दूसरे बनिया उनको सहारनपुर की सैर करवा देगा| वे वहाँ ठहर गये|
रात को बनिये ने बहुत शानदार खाना बनवाया और परोसकर उनके आगे रख दिया| जब वे खाने लगे तो नज़दीक ही एक औरत की रोने-चीख़ने की आवाज़ आयी| उन्होंने बनिये से पूछा कि कौन औरत रो रही है? बनिये ने कहा, “आप खाना खाओ| आपको इससे क्या ग़रज़!” उन्होंने कहा, “पहले हमें बात बताओ, खाना फिर खायेंगे|” मजबूरन बनिये को बताना पड़ा| उसने बताया, “यह मेरी विधवा पुत्र-वधू है| कुछ दिन हुए मेरा लड़का मर गया, उसको याद करके रोती है|” उन्होंने कहा, “ओ हो! तेरे लड़के की मौत हुई है और तू इतने तकल्लुफ़ का खाना खिला रहा है!” कुछ बातचीत के बाद बनिये ने कहा कि सुनो, “मैं आपको सारा वाक़या पूरी तरह बताता हूँ| बीस साल हुए जब मैं रावलपिण्डी से ठेका छोड़कर आया तो आकर शादी की, दो साल बाद मेरे घर लड़का पैदा हुआ| उसे पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया| उसकी शादी की| शादी के बाद वह बीमार हो गया| बड़े-बड़े क़ाबिल हकीम और डॉक्टर उसके इलाज के लिए बुलाये लेकिन दिन-प्रतिदिन उसकी हालत बिगड़ती गयी| आख़िरकार डॉक्टरी और वैद्यक दवाइयों से निराश हो गया तो एक मुल्ला को दम* करने के लिए लाया| उसने दम किया| उस वक़्त ढाई रुपये मेरी जेब में थे, वे उसे दे दिये और कहा कि बाक़ी फिर दे दूँगा| इतने में लड़का हँस पड़ा|” मुल्ला ने कहा, “मैं इसको बिल्कुल ठीक कर दूँगा| मेरे एक बार दम करने से ही इसकी
हालत बेहतर हो गयी है|” जब मुल्ला चला गया तो मैंने अपने लड़के से पूछा, “बेटा अब तुझे आराम हो गया है?” लड़के ने जवाब दिया, “हाँ! अब मुझे पक्का आराम हो गया है|” तब मैंने पूछा, “पक्का आराम क्या?” लड़के ने कहा, “बीस साल हुए, मैं सेना की नौकरी के दौरान तुम्हारे पास दो हज़ार रुपये छोड़कर फौज़ी हमले में मारा गया था| अब मैंने तुमसे सब रुपये वसूल कर लिए हैं| केवल ढाई रुपये बाकी थे, जो तुमने अभी दे दिये हैं| यह जो मेरी औरत है, यह वह घोड़ी है जो मुँहज़ोर होकर मुझे दुश्मन की फ़ौज में ले गयी थी| इसने जो मुझे मरवाया था, उसके बदले मैं इसको सारी उम्र के लिए विधवा छोड़कर जा रहा हूँ|”
यह वृत्तान्त सुनाकर बनिये ने कहा, “अब मर गया फौज़ी, रोती है घोड़ी| मैं किसको रोऊँ? रोऊँ घोड़ी को कि फौज़ी को? मैं क्यों रोऊँ आप अपना खाना खाओ|
सो यह कुटुम्ब, परिवार, रिश्तेदार कर्मों के अनुसार इकट्ठे होते हैं| ज्यों-ज्यों कर्मों का हिसाब ख़त्म होता जाता है, त्यों-त्यों सम्बन्ध टूट जाते हैं और हम सब बिछुड़ते जाते हैं|
जब तक तू अपने मुद्दई के साथ रास्ते में ही है, झटपट उससे
समझौता कर ले;… मैं तुझसे सच कहता हूँ कि जब तक तू कौड़ी-
कौड़ी नहीं चुकाता, तब तक वहाँ से छूट नहीं पायेगा|
(सेंट मैथ्यू)