अज्ञानी सूअर
एक बार उद्धव ने भगवान् कृष्ण से कहा कि इन जीवों को आप अपने देश क्यों नहीं ले चलते? आप सर्व-समर्थ हैं और जो चाहो कर सकते हैं| मैं देख रहा हूँ कि संसार के जीव तरह-तरह के दुःखों और क्लेशों में फँसे हुए हैं और निराश हो चुके हैं| आप इन दुःखी जीवों पर कृपा करके इन्हें अपने सुख-धाम में क्यों नहीं ले जाते? भगवान् कृष्ण ने कहा कि मैं तो चाहता हूँ, लेकिन कोई जाने को तैयार भी तो हो| उद्धव ने कहा कि मैं नहीं मानता कि कोई चलने को तैयार न हो| भगवान् कृष्ण ने कहा, “जाओ! जीवों से पूछो कि वे जाने को तैयार हैं?”
यह सोचते हुए कि सच्चाई जानने का यही सही ढंग है, उद्धव चल पड़ा और जो जीव उसके रास्ते में आये उससे यह प्रश्न करने की ठान ली| हुआ ऐसा कि चलते-चलते सबसे पहले उसे एक सूअर मिला|
सबसे निकृष्ट योनि सूअर की है| उद्धव ने सूअर से पूछा कि क्या तुम मृत्युलोक छोड़कर बैकुण्ठ जाना चाहते हो? वहाँ बड़ी शान्ति है, बड़ा आनन्द है, बड़ी रोशनी है| अगर तुम चाहो तो हम दोनों अभी चल पड़ते हैं| सूअर ने उद्धव से पूछा, “क्या तुम्हारे बैकुण्ठ में बच्चे हैं?” उद्धव ने कहा, “नहीं|” सूअर ने फिर पूछा, “क्या मुझे वहाँ खाने-पीने के लिए स्वादिष्ट विष्टा मिलेगी?” उद्धव ने कहा कि नहीं पर वहाँ दूसरी तरह की और बहुत-सी चीज़ें हैं जो तुम्हें बहुत अच्छी लगेंगी| सूअर बोला, “मुझे इसमें शक है, क्योंकि विष्टा से स्वादिष्ट और क्या हो सकता है? इसलिए मैं तुम्हारे बैकुण्ठ में नहीं जाना चाहता|”
मतलब तो यह है कि दुनिया को छोड़कर नाम की ओर लगना बड़ा कठिन है| बिना भाग्य के यह दौलत नही मिलती| लोग विषय-विकारों की ओर से मुँह मोड़ने को तैयार नहीं हैं, इनका भाग्य इनको सच्चा आनन्द नहीं लेने देता|