Homeपरमार्थी साखियाँमहात्मा ने फ़क़ीर से क्या सीखा?

महात्मा ने फ़क़ीर से क्या सीखा?

एक महात्मा था जिसको अहंकार हो गया कि दुनिया में उसके मुक़ाबले कोई दूसरा महात्मा नहीं| उसने ख़ुदा से कहा कि अगर कोई मुझसे बड़ा है तो मुझे बताओ| हुक्म हुआ कि मेरे बन्दे बड़े-बड़े हैं, तू उनके बराबर नहीं| महात्मा ने कहा कि फिर भी बताओ तो सही| ख़ुदा ने कहा कि तेरे घर के पास जो दरिया बहता है उसके पार जा| वहाँ तुझे एक फ़क़ीर मिलेगा, वह जो कहेगा वैसा ही करना| जब महात्मा उसके पास गया, जिसका नाम हज़रत ख़िज्र था, तो उसने कहा, “तू मेरी तालीम के क़ाबिल नहीं|” महात्मा ने इसमें अपनी बेईज्ज़ती समझी पर अपने क्रोध को रोकते हुए कहा, “हज़रत! जो आप कहेंगे, मैं इनकार नहीं करूँगा|” हज़रत ख़िज्र ने कहा, “बहुत अच्छा! जो मैं करूँ उस पर एतराज़ न करना|” यह कहकर वे दरिया के किनारे-किनारे चल पड़े, आगे-आगे ख़िज्र पीछे-पीछे महात्मा|

एक जगह घाट पर कुछ किश्तियाँ थीं| ख़िज्र ने पूछा कि यह किसकी किश्ती है? लोगों ने कहा कि यह अमुक अमीर की है| फिर पूछा कि यह किसकी किश्ती है? लोगों ने जवाब दिया कि जी, अमुक रईस की है| हज़रत ख़िज्र ने एक और किश्ती के बारे में पूछा कि यह किसकी है? जवाब मिला कि यह अमुक और अनाथ बच्चों की है, आप इसे बेशक इस्तेमाल कर लें| हज़रत ख़िज्र ने लात मारकर उस किश्ती के कुछ तख़्ते तोड़ दिये| महात्मा को ख़िज्र के इस व्यवहार पर बहुत गुस्सा आया| आपे से बाहर होते हुए महात्मा बोला, “आप बेरहम और पागल हैं| आप अमीर आदमी की किश्ती तोड़ देते तो वह इस की मुरम्मत करवा सकता था पर ग़रीब और अनाथ बच्चों की किश्ती तोड़ना तो बेहरमी का काम है| आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था|” ख़िज्र ने कहा, “तुझे कहा था कि बोलना मत|” महात्मा ने कहा, “अच्छा! भूल हुई| माफ़ करो दो|”

दोनों दरिया के किनारे-किनारे चलते गये| क़रीब एक मील चलने के बाद एक गाँव आया जिस में एक वीरान और आधा गिरा हुआ था| उसकी एक दीवार गिरी हुई थी| ख़िज्र ने कहा, “इस दीवार को बनाना है| मैं पानी ले जाता हूँ और गारा बनाकर हम इस दीवार की मरम्मत कर देंगे|” ख़ैर गारा तैयार हो गया| सारा दिन वे दीवार बनाते रहे| इधर शाम तक दीवार तैयार हो गयी| अब उस सूने घर में किसी ने पानी के लिए भी न पूछा| भूखे-प्यासे थककर सो गये| महात्मा से न रहा गया| कहने लगा, “आपका यह काम भी उलटा है| अगर किसी गृहस्थ का घर बनाते तो वह हमसे पानी के लिए पूछता, रोटी के लिए पूछता…| पर सूने घर में किसी ने न रोटी को पूछा, न पानी को| भूखे-प्यासे सो रहे हैं|” कुछ देर तक वह ख़िज्र को बुरा-भला कहता रहा| जब उसने बोलना बन्द किया तो ख़िज्र ने कहा, “मैंने कहा था न कि सवाल मत पूछना, तुम यहाँ से चले जाओ और मुझे अकेला छोड़ दो| तुम मेरे साथ जाने और शिक्षा लेने के योग्य नहीं हो|”

महात्मा जाने के लिए राज़ी हो गया क्योंकि ख़िज्र जो कुछ भी कर रहा था, उसे उसके प्रयोजन का कोई वास्तविक अर्थ नहीं दिखता था और न ही उससे कुछ शिक्षा मिलती थी| उसने ख़िज्र से कहा, हज़रत मैं आपको छोड़कर जाने के लिए तैयार हूँ पर इससे पहले कि मैं चला जाऊँ, कृपया मुझे यह बतायें कि आप ने ऐसे उलटे कार्य क्यों किये?

ख़िज्र ने कहा, “सुन ले! किश्ती इसलिए तोड़ी कि एक बादशाह आ रहा है, उसके साथ उसके फौज़ है, वह सब किश्तियाँ उस पार ले जायेगा| सिर्फ़ वह टूटी हुई किश्ती छोड़ देगा| उस किश्ती का मालिक किश्ती की मरम्मत करके उसे फिर बना लेगा और उसे पहले से ज़्यादा लाभ हो जायेगा| अगर एक ही किश्ती हो तो कितना फ़ायदा हो सकता है|

जो दीवार बनायी है, उसके बीच में ख़ज़ाना है जिसके मालिक अनाथ बच्चे हैं| जब वे जवान होंगे, यह ख़ज़ाना उन्हें मिलेगा| मुझे ख़ुदा ने हुक्म दिया था कि इस दीवार को बना दो, कहीं ऐसा न हो कि उनके जवान होने तक यह बिल्कुल गिर जाये और ख़ज़ाना ज़ाहिर हो जाये और लोग निकालकर ले जायें| सो यह मैंने उसके हुक्म से बनायी है| जब ख़िज्र ने सब बात समझायी तो महात्मा ने नम्रता से झुकते हुए कहा, “हज़रत ख़िज्र, मैं एक बार फिर आपसे माफ़ी माँगता हूँ,” यह कहकर उसने शर्म से अपना सिर झुका लिया|

फ़क़ीरों की हर बात में रम्ज़ होती है|

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