युवक की कहानी (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा
युवक बोला, “मेरे पिता इस नगर के बादशाह थे| उनका राज्य बड़ा विस्तृत था| किंतु बादशाह और उसके सभी अधीनस्थ लोग अग्निपूजक थे| यही नहीं, वे नारदीन की उपासना भी किया करते थे जो प्राचीन काल में जिनों का सरदार था|
यद्यपि मेरे पिता और उसके साथी अग्निपूजक थे, किंतु मैं बचपन से ही मुसलमान था| कारण यह था कि मेरे लालन-पालन के लिए जो दाई रखी गई थी, वह मुसलमान थी|
उसने मुझे सारा कुरान कंठस्थ करा दिया था| उसने मुझे शिक्षा दी कि केवल एक ईश्वर ही पूज्य है| तुम उसे छोड़कर किसी अन्य को न पूजना| उसने मुझे अरबी भी पढ़ाई और तफसीर (कुरान की व्याख्या) की भी शिक्षा दी|
यह सारा काम उसने दूसरों से छुपाकर किया| कुछ दिन बाद दाई तो मर गई किंतु मैं उसके बताए हुए धर्म पर दृढ़ रहा| मुझे इस बात का बड़ा दुख होता है कि मेरे सारे देशवासी अग्निपूजक और जिन के उपासक थे|
दाई की मृत्यु के कई मास बीत जाने पर आकाशवाणी हुई कि हे नगर वासियो! तुम लोग नारदीन और आग की पूजा छोड़ दो और एकमात्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की पूजा करो|
यह आकाशवाणी तीन वर्षों तक निरन्तर होती रही, किंतु न तो बादशाह ने और न नगर के किसी वाशिन्दे ने उस पर ध्यान दिया| वे अपने झूठे धर्म पर दृढ़ रहे|
तीन वर्ष बाद इस नगर पर ईश्वरीय प्रकोप हुआ और जो व्यक्ति जिस स्थान और जिस दशा में था, वैसे ही पत्थर का बन गया| मेरा पिता भी काले संगमरमर का बन गया और मेरी मां सिंहासन पर बैठी-बैठी ही पत्थर की हो गई| जैसा कि तुमने देखा ही है| एक मैं ही मुसलमान होने के कारण इस दंड से बचा रहा| उस समय से मैं और भी निष्ठापूर्वक इस्लाम का मानने लगा|
उसने कहा, “हे सुंदरी! मैं जानता हूं कि भगवान ने तुम्हें मुझ पर कृपा करके यहां भेजा है क्योंकि मैं यहां अकेलेपन से बहुत ऊबा करता था|”
उसकी बातें सुनकर उसके प्रति मेरे मन में और अधिक प्रेम बढ़ गया|
मैंने कहा, “मैं बगदाद की निवासिनी हूं| यहां किनारे पर बहुत से माल-असबाब से लदा मेरा जहाज खड़ा है| जितना माल उसमें है, उतना ही बगदाद में मैं अपने घर छोड़ आई हूं| मैं आपको यहां से ले चलूंगी और अपने घर में आराम से रखूंगी| बगदाद के खलीफा बड़े न्यायप्रिय हैं| वे आपके सम्मान योग्य कोई पदवी आपको जरूर देंगे| मेरा जहाज आपकी सेवा में है| आप इस स्थान को छोड़िए और मेरे साथ चलिए|”
उस नौजवान ने मेरा प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया| मैं सारी रात उस युवक से बातें करती रही|
दूसरे दिन सुबह उसे लेकर अपने जहाज पर पहुंची| मेरी बहनें मेरी चिंता में दुखी थीं| मैंने उन्हें अपने पिछले दिन के अनुभव सुनाए और उस नौजवान की कहानी भी बताई| फिर मेरी आज्ञा से जहाज के मांझियों ने जहाज से व्यापार की वस्तुएं उतार लीं और जहाज में अमूल्य रत्न आदि भर लिए जो मुझे महल में मिले थे|
महल का सारा सामान तो एक जहाज में आ नहीं सकता था, इसलिए मैंने चुनी-चुनी बहुमूल्य वस्तुएं ही भरीं और खाने-पीने का सामान भी महल से लेकर जहाज पर लाद दिया, साथ ही शहजादे को भी जहाज पर चढ़ा लिया|
इसके बाद असंख्य धन की स्वामिनी होने के साथ अपने प्रिय शहजादे के साथ होने का सुख पाते हुए मैंने स्वदेश की ओर यात्रा आरंभ कर दी| मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था| किंतु मेरी बहनों को इससे प्रसन्नता न हुई| वे मुझसे ईर्ष्या करने लगीं|
एक दिन उन्होंने मुझसे पूछा, “तुम इस शहजादे को कहां रखोगी और इसके साथ क्या करोगी|”
उस समय उनकी दशा देखकर मुझे हंसी आई और मैंने उन्हें चिढ़ाने के लिए कहा, “मैं बगदाद पहुंचकर इसके साथ विवाह करूंगी|”
शहजादा अत्यन्त रूपवान और मधुरभाषी था| मैंने शहजादे से कहा, “मैं चाहती हूं कि आपकी दासी बन जाऊं और जी जान से आपकी सेवा करूं|”
शहजादा भी मेरे परिहास को समझ गया और हंसकर बोला, “तुम्हारी जो इच्छा हो वह करो, मैं तुम्हारी बहनों की मानसिकता समझकर प्रतिज्ञा करता हूं कि तुम्हारी प्रसन्नता के लिए तुम्हें अपनी पत्नी बनाऊंगा| दासी होने की बात न करो, मैं तो स्वयं तुम्हारा दास बन जाऊंगा|”
यह सुनकर मेरी बहनों के चेहरे का रंग उड़ गया और उनके हृदय में मेरे लिए घोर शत्रुता पैदा हो गई| सारी यात्रा उनकी यह दशा रही बल्कि उनका वैर-भाव बढ़ता ही गया|
अब तक हमारा जहाज बुशहर के इतने समीप आ पहुंचा था कि अनुकूल वायु होने पर मैं वहां एक दिन में पहुंच जाती|
उसी रात को जब मैं गहरी नींद सो रही थी तब मेरी बहनों ने मुझे और शहजादे को उठाकर समुद्र में फेंक दिया| शहजादा बेचारा तो उसी समय डूब गया क्योंकि उसे तैरना नहीं आता था, लेकिन मैंने पानी में गिरते ही उछाल मारी और तैरने लगी|
अभी शायद मेरी मौत नहीं आई थी, इसलिए मैं अंधेरे में भी संयोग से ठीक दिशा में बढ़ने लगी और कुछ घंटों में ही एक उजाड़ द्वीप के तट पर जा लगी| बुशहर का बंदरगाह उस स्थान से दो कोस दूर था|
मैंने अपने कपड़े उतारकर सुखाए और फिर से उन्हें ही पहन लिया| इसके बाद मैंने इधर-उधर घूमकर देखा तो कुछ फलों के वृक्ष दिखाई दिए| मैंने पेट भर फल खाए फिर एक मीठे पानी के सोते से पानी लेकर अपनी थकान दूर की| फिर एक पेड़ के साए में जाकर मैं लेट गई| कुछ देर बाद मुझे एक लंबा सांप दिखाई दिया जिसके शरीर पर दोनों ओर पंख भी लगे हुए थे|
वह सांप पहले मेरी दाईं ओर आया और फिर बाईं ओर, इस सारे समय वह अपनी जीभ लपलपाता रहा| उसकी इस हरकत से मैंने जाना कि उसे कुछ कष्ट है और वह मेरी सहायता चाहता है|
मैंने उठकर चारों ओर देखा| तब मुझे दिखाई दिया कि एक दूसरा सांप पहले से भी लम्बा उसके पीछे पड़ा है और उसे खाना चाहता है| मैंने पहले सांप को बचाने के लिए एक बड़ा पत्थर उठाकर बड़े सांप के सिर पर मारा जिससे उसका सिर कुचला गया और वह वहीं मर गया|
पहला सांप अब पंख खोलकर आसमान में उड़ गया| मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ किंतु मैं बहुत थकी हुई थी इसलिए वहां से कुछ दूर एक सुरक्षित स्थान पर जाकर सो गई|
जागने पर मैंने देखा कि हरे वस्त्र धारण किए एक सुंदरी मेरे सिरहाने दो काली कुतियां लिए बैठी है| मैं उसे देखकर खड़ी हो गई और उससे पूछा, “तुम कौन हो?”
उसने कहा, मैं वही सांप हूं जिसकी जान तुमने उसके दुश्मन से बचाई थी| अब मैं चाहती हूं कि जो उपकार तुमने मेरे साथ किया है, उसका बदला तुम्हें दूं| मैं वास्तव में एक परी हूं| यहां से जाने के बाद मैं अपनी सखियों को साथ लेकर तुम्हारे जहाज पर गई, जहां हम लोगों ने तुम्हारी बहनों को, जिन्होंने तुम्हारे उपकार का बदला तुम्हारी जान लेने का प्रयत्न करके दिया था, कुतिया बना डाला और तुम्हारे जहाज का सारा माल उठाकर बगदाद में तुम्हारे घर पहुंचा दिया और जहाज को वहीं डुबो दिया|”
यह कहने के बाद उस परी ने एक हाथ में मुझे उठाया और दूसरे से दोनों कुतियों को और आसमान में उड़ चली| उसने हम सबको बगदाद में मेरे मकान के अंदर पहुंचा दिया|
वहां पहुंचकर परी ने मुझसे कहा, “तुम्हारी बहनों की सजा अभी पूरी नहीं हुई है, मेरी आज्ञा है कि तुम हर रात उन्हें सौ कोड़े लगाना और अगर तुमने यह बात न मानी तो तुम्हारा सब कुछ बरबाद हो जाएगा| वैसे हम परियां तुम्हारी मित्र हैं और तुम जब भी हमें बुलाओगी हम आ जाएंगी|”
जुबैदा ने आगे कहा, “मैं उस परी की आज्ञानुसार हर रात को अपनी बहनों को, जो कुतियां बनी हुई हैं, सौ-सौ कोड़े मारती हूं| लेकिन खून का जोश भी काम करता है, इसलिए रोती हूं और उनके आंसू पोंछती हूं| अब अमीना की कहानी उसके मुंह से सुनिए|”
खलीफा को यह वृत्तांत सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ| उसने जब अमीना से पूछा कि तुम्हारे कंधों और सीने पर काले निशान क्यों हैं? तो उसने अपनी आपबीती उन्हें सुनाई –
Spiritual & Religious Store – Buy Online
Click the button below to view and buy over 700,000 exciting ‘Spiritual & Religious’ products
700,000+ Products