मुर्ख कछुआ
किसी जलाशय में कम्बुग्रीव नाम का एक कछुआ रहता था| उस सरोवर के तट पर निवास करने वाले संकट और विकट नाम के दो हंसों का उसके प्रति बड़ा स्नेह था|
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नित्यप्रेम उस सरोवर के तट पर बैठकर ये तीनों अनेक देवी-देवता तथा ऋषि मुनियों की कथाएं कह-सुनकर अपना समय व्यतीत करते और सांयकाल होने पर अपने-अपने निवास-स्थान पर चल देते| एक वर्ष उस प्रदेश में अनावृष्टि के कारण वह सरोवर धीरे-धीरे सूखने लगा| हंसों को कछुए की चिन्ता होने लगी|
उन्होंने अपनी चिन्ता जब कछुए पर व्यक्त की तो वह बोला, ‘हमें आपत्तिकाल में भी धैर्य नहीं खोना चाहिए| इस समय मित्रों का कर्तव्य है कि मुझे आपत्ति से बचाने का यत्न करें| यत्न करने पर विपत्ति से छुटकारा से छुटकारा मिल सकता है| आप किसी जल से परिपूर्ण सरोवर की खोज कीजिए ओर फिर कहीं से कोई दृढ रस्सी अथ्वा काष्ठ का टुकड़ा ले आइए| मैं उसके मध्य मार्ग को अपने दांतों से पकड़कर उड़कर मुझे उस सरोवर तक ले चलिए|’
हंसों ने कहा, ‘आपकी बात तो ठीक है| किन्तु उस अवधि में आपको बिना बोले रहना होगा अन्यथा मुख खुलने पर आप गिर पड़ेंगे| कछुए ने उनको आश्वस्त किया और इस प्रकार व्यवस्था करके वे तीनों आकाशमार्ग से उड़ चले| उड़कर जाते हुए उन्होंने नीचे बसे नगर में लोगों को अपनी ओर देखकर आश्चर्य करते पाया| कछुआ बड़ा चंचल था| यद्यपि चलने से पूर्व उसको समरू दिया गया था तदापि उससे रहा नहीं गया और यह पूछने के लिए कि यह किस प्रकार का कोलाहल है ज्यों ही उसने मुख खोला कि वह आकाश से गिर पड़ा और नागरिकों ने उसको काटकर उसके खण्ड-खण्ड कर दिए|
इतनी कथा सुनाकर टिटि्टभी कहने लगी ‘जो व्यक्ति अपने भविष्य का उपाय करता रहता है वह सुखी रहता है और जो यह सोचता है कि भाग्य में जो लिखा है जब होना वही है तो फिर समय आने पर देखा जाएगा, वह उसी प्रकार विनष्ट हो जाता है जिस प्रकार यद्भविष्य का परिवार विनष्ट हुआ था|