लोभी सदा मरता है
एक गांव में देवशंकर नाम का एक पण्डित रहता था| उसके यहां एक बार पुत्र ने जन्म लिया| ठीक उसी औरत के साथ ही नेवले ने भी एक बच्चे को जन्म दिया लेकिन वह नेवली बेचारी बच्चे को जन्म देते ही मर गई|
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इस प्रकार वह नेवले का बच्चा भी उसी घर में रहने लगा, किन्तु ब्राह्मणी सदा उस नेवले के बच्चे से अपने बच्चे को बचाकर रखती थी| उसे डर था कि कहीं वह नेवले का बच्चा मेरे बच्चे को डंस न ले|
एक बार पण्डित जी को यह पता चला कि कोई साधु इस गांव में आया है जो निधनों को धन देता है, जैसे ही जाने के लिए तैयार हुआ तो उसकी पत्नी कुएं पर पानी लेने गई थी| उसने अपने बच्चे की रक्षा के लिए उस नेवले के बच्चे को बैठा दिया और धन लेने चला गया|
इस बीच बिल में से एक काला सांप निकला| नेवले ने जैसे ही अपने शत्रु को देखा तो उसे डर पैदा हो गया कि पापी मेरे भाई को डंस लेगा|
उस सांप को अपनी ओर आता देख नेवले ने उस पर हमला कर दिया|
बस दोनों में खुलकर युद्ध होने लगा| अन्त में नेवले ने सांप को काट काट कर बुरी तरह से घायल करके मार डाला|
जैसे ही ब्राह्मणी पानी का मटका लेकर आई तो उसने सबसे पहले नेवले के मुंह से खून लगा देख उसने समझा कि इसने जरूर मेरे बेटे को मार डाला है|
बस फिर क्या था| उस क्रोध भरी औरत ने पानी का मटका ही उस नेवले पर दे मारा| नेवला बेचारा उसी समय धरती पर तड़पने लगा, और कुछ ही क्षणों में मृत्यु को प्राप्त हो गया|
जैसे ही वह औरत अन्दर पहुंची तो उसने देखा कि उसका बेटा तो आराम की नींद सो रहा है और काला सांप वहां पर मरा पड़ा है| यह देख उसे अपनी भूल का पता चला तो वह जोर-जोर से विलाप करने लगी और छाती पीटने लगी|
इसी बीच पण्डित भी धन लेकर आ गया| उसे देखते ही वह औरत बोली-यह सारा पाप आपके कारण हुआ है| आप धन के लोभ में अंधे होकर न लड़के को छोड़कर जाते और न वह नेवला मरता|