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तो सभी मित्र वहां से उस पुरुष को छोड़ कर जाने लगते हैं। वधिराज- " करण अब हमें और भी संभल कर चलना होगा नहीं तो इस से भी बुरा हो सकता है हमारे साथ!" कर्मजीत- " हां करण,,वधिराज बिल्कुल सही कह रहे हैं,,तुम्हें किसी भी अजनबी

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तो सभी लोग दरी पर बैठ कर वहां से निकल पड़ते हैं. करण– "ये तो बस शुरुआत है। यही कहा था ना उस ने।" कर्मजीत- "हाँ करण। ये किसी बड़ी मुसीबत का संकेत है।" करण- "हमें जल्द से जल्द यह स्थान छोड़ना होगा।" वधिराज- " मुझे पता है कि जरूर

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कला- " ठीक है तो अब आप लोग प्रस्थान कीजिए!" करण- "जी देवी!" और सभी लोग वहां से राजकुमारी अप्सरा की दरी पर बैठ कर उड़ कर चले जाते हैं। टॉबी- " मुझे तो उड़ने में बहुत मजा आ रहा है,,, देखिए ना राजकुमारी चंदा,,, ऊपर से नीचे का

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रानू- " जल जगन नाम की एक जगह है,,, जहां पर कला नाम की राक्षसी रहती है,,,, पहले कला एक बहुत सुंदर स्त्री थी लेकिन उसे किसी ने श्राप दे दिया था,,,,जिस के कारण उस का ऐसा हाल हो गया है,, तो अगर तुम उस

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सुनहरी नीली चिड़िया- "ठहरो वधीराज,,,,,उसे जाने दो,,,, मैं राजकुमारी चंदा हूं।" वधिराज- "क्या!!" नीली चिड़िया- " हां वधिराज!! तुम तो मुझे जानते ही होगे?" वधिराज (सहम कर)- " राजकुमारी जी आप?,,,, आप अभी तक भी इसी रूप में है? " सुनहरी चिड़िया- "हां वधिराज,, अब समय आ चुका है मुझे

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वह क्रूद्ध आदमी सोचता है कि करण और उसके दोस्त कोई आक्रमणकारी है और वह तुरंत अपने सैनिकों को बुला लेते हैं। क्रोधित आदमी: “सैनिकों!” अप्सरा: “पिताजी, आपको इन लोगों से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। ये सब मेरे मित्र हैं!” सुनहरी चिड़िया: “ये आप के पिता

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दानव: “सुनाओ आगे! चुप क्यों हो गए। मुझे आगे बताओ कि हरिया का क्या हुआ?” जयदेव: “फिर क्या! बेचारा हरिया तो फूट-फूट कर रोता है और उसकी याद में खुद को कोसने लगता है!” राक्षस: “पर वो हरिया क्यों रोया?” करण: “क्योंकि हरिया तो उस बकरी को खाना

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करण: “अरे नहीं ये तो एक दानव है!” टॉबी (चिलाते हुए): “करण! देखो इतने सारे चमगादड,,, ना जाने कहां से आ रहे हैं!!” जयदेव (चिल्लाकर): “उस दानव के हाथ को देखो, देखो यह उसी के हाथों से निकल रहे हैं!” करण: “जो भी वस्तु हाथ मे आये, उठा

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करण: “अरे आगे का रास्ता तो बंद है! अब हम आगे कैसे बढ़ेंगे?” विदुषी: “हाँ करण! अब क्या होगा?” सुनहरी चिड़िया: “ये रास्ता तो पूरा पत्थरों से बंद है और देखो बीच में इतना विशाल गड्ढा भी है!” टॉबी: “अब हम उस पार कैसे जाएंगे।” तभी अचानक से उन

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डाकू 1 ( गुस्सा मे करण को आंख दिखाकर): “भाई जान! कहीं ऐसा तो नहीं कि इन सब मे इन्हीं सब का हाथ हो? इसने हमे फसाने के लिए चाल चली हो” डाकू का सरदार: “नहीं नहीं! ऐसा नहीं हो सकता ! तुमने देखा नहीं उसकी

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