Homeतिलिस्मी कहानियाँ17 – जादुई राक्षस | Jadui Rakshas | Tilismi Kahaniya

17 – जादुई राक्षस | Jadui Rakshas | Tilismi Kahaniya

रानू- ” जल जगन नाम की एक जगह है,,, जहां पर कला नाम की राक्षसी रहती है,,,, पहले कला एक बहुत सुंदर स्त्री थी लेकिन उसे किसी ने श्राप दे दिया था,,,,जिस के कारण उस का ऐसा हाल हो गया है,, तो अगर तुम उस का श्राप तोड़ दोगे तो वो अप्सरा के पंख वापस दिला देगी।

सुनहरी चिड़िया- ” लेकिन उस का श्राप कैसे टूटेगा? ”

रानू- “ये तो हमें खुद ही वहां जा कर के पता करना होगा!”

करण- “तो ठीक है तो तुम हमें उस का पता बताओ!”

और रानू उन सभी को कला राक्षसी का पता बता देती हैं।

कर्ण- ” ठीक है तो अब हम यहाँ से चलते हैं!”

सुनहरी चिड़िया- “हां, करण अब चलो!”

लव- ” लेकिन हम लोग कैसे जाएंगे?”

कुश- “हाँ वही तो, मैं भी सोच रहा हूं!”

रानू- “आप सब चिंता मत करो,, मैं और वधिराज है ना,,,,हम दोनों आप सभी को अपने उपर बिठा कर ले जाएंगे!”

वधिराज- “हाँ., बिल्कुल,,,!”

इस के बाद रानू और वधिराज अपनी शक्ति का प्रयोग कर के अपना आकार काफी बड़ा कर लेते हैं और उन सभी को अपनी पीठ पर बैठा कर उड़ने लगते हैं।

टॉबी ( अप्सरा सेv)- ” राजकुमारी आप चिंता मत करिए,, आपके पंख आप को वापस मिल जाएंगे,, देखना आप!”

अप्सरा हल्की मुस्कुराहट दे कर टॉबी के गाल छूती है।

अप्सरा- “हाँ टॉबी,,,, तुम सब हो ना मेरे साथ तो मुझे चिंता करनी की क्या जरूरत है!”

कर्मजीत- ” जी बिल्कुल राजकुमारी!”

और थोड़ी देर बाद सभी लोग जल जगन नाम की उस जगह पर पहुंच जाते हैं।

वधिराज और रानू सभी को नीचे उतार देते हैं और सामान्य आकार में आ जाते हैं।
सब लोग पैदल चल कर थोड़ा आगे जाते हैं तो देखते हैं कि बीच में एक नदी आ जाती है

बुलबुल- “अरे नदी!! लगता है इसे पार करना पड़ेगा।”

लव- ” हा हा हा!! यह तो हम सब भी जानते हैं।”

कुश- “अरे यह तो छोटी सी नदी है। इसे तो हम यूं ही पार कर लेंगे।”

बुलबुल- ” कहीं यह भी कोई जादुई नदी ना हो।”

करमजीत- “मुझे तो नहीं लगता कि यह कोई साधारण नदी है। देखना यहां भी हमें कोई मुसीबत मिल जाएगी।”

करण- ” हां करमजीत! सही कहते हो तुम।”

चिड़िया- ” हां दोस्तों मुझे भी यही लगता है। उस कला राक्षसी तक पहुंचने का रास्ता इतना आसान तो नहीं हो सकता।”

करण- “हां राजकुमारी जी।”

बुलबुल- ” तो अब क्या करें!”

करमजीत- ” इस नदी में कुछ पत्थर फेंक कर देखते हैं कि क्या होता है।”

तो करमजीत वहां से कुछ पत्थर उठाता है और नदी में फेंकता है और तभी नदी में से बिजली निकलती है।

लव कुश ( हैरान हो कर)- ” हे भगवान!! अगर हम इस में पैर रखते तो मर ही जाते।”

बुलबुल- “हां लव कुश! इस में तो बिजली है।”

वधीराज- ” लेकिन अब हम इसे पार कैसे करेंगे।”

रानू- “अरे चिंता क्यों करते हो। हम दोनों तो उड़ कर इसे पार कर सकते हैं और इन सब को हमारे ऊपर बैठा लेंगे। आज तुम सब की बुद्धि को क्या हो गया।”

लव- “ओह हो। क्या हो गया हमे।”

और फिर वधिराज और रानू अपना आकार बड़ा कर लेते हैं और सब लोग उन के ऊपर बैठते हैं और नदी पार कर लेते हैं।
दूसरी तरफ पहुंच जाते हैं, जहां जमीन पर रंग-बिरंगे पत्थर थे।

करण- ” सभी लोग सावधान रहिएगा!”

रानू- ” हां,,,कभी भी कुछ भी हो सकता है ध्यान रखिएगा!”

बुलबुल- “ठीक है।”

कि तभी बुलबुल की ज़ोर की चीखने की आवाज आती है।

बुलबुल- “वो सामने, देखो,,, हे भगवान!”

दरअसल सामने हवा मे उस भयानक राक्षसी का बड़ा सा चेहरा दिख रहा था जिस के लंबे लंबे दांत और खून से भरी आंखें थी। तेज हवा चलती है और राक्षसी के हंसने की भयानक आवाज आती है।

करण- ” सभी लोग तैयार रहो!”

अचानक से राक्षसी गायब हो जाती है और वहाँ शांति छा जाती है।

वधिराज- ” लगता है कोई बड़ी मुसीबत आने वाली है। सभी लोग सावधान रहना!”

बुलबुल- “हाँ,, हम तैयार हैं!!”

कुश और लव- “हाँ हम सब!”

और तभी अचानक से राक्षसी का बड़ा सा सिर फिर से दिखता है और उस की बड़ी-बड़ी आंखों से बड़े बड़े बाज निकलते हैं। और वे सारे बाज उन सभी पर हमला करने लगते हैं। रानू और वधिराज फिर से अपना आकार बड़ा कर लेते हैं।

वधिराज अपने हाथ से उन बाज का सिर को मरोड़ देता है।

वधिराज- “करन ध्यान से!”

करण- “हाँ वधिराज, पर ये बहुत सारे हैं।!”

कि तभी एक बाज लव को उठा कर आसमान में ले जाने लगता है।

लव- “आ आ!! बचाओ बचाओ!”

तभी रानू उड़ते हुए लव के पास जा कर उसे पकड़ लेती है और दूसरे हाथ से उस बाज को पकड़ कर जोर से जमीन पर फेंक कर मार देती है।

रानू- “डरो मत,, तुम ठीक तो हो ना?”

लव (लंबी सांस लेकर)- “हाँ,,,,रानू,,मैं ठीक हूं!”

उसी बीच और बाज वहां पर आ जाते हैं और उन दोनों पर हमला करने लगते हैं।

रानू- ” लव डरो मत,,,, हिम्मत से इन का सामना करो,,,,

वहीं दूसरी तरफ लव के सभी मित्र भी उन बाज से लड़ रहे थे।
हर तरफ बाज ही बाज थे।

वधिराज- “करन पीछे देखो!”

कर्मजीत- “ये बाज तो खत्म होने का नाम ही नही ले रहे। अब क्या करें।”

वधिराज- “कुछ नही, बस लड़ते जाओ इन से।”

तभी एक बाज सुनहरी चिड़िया के पीछे लग जाता है, चिड़िया उड़ कर भागती जाती है।
तभी करन भाग कर उस के पास जाता है और अपनी तलवार से बाज को मारता है।

करण (सुनहरी चिड़िया से)- ” राजकुमारी चंदा,,, आप ठीक तो है ना?”

सुनहरी चिड़िया- ” हां करन मैं ठीक हूं,,,, लेकिन करन मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि इस राक्षसी कला का श्राप कैसे टूटेगा??? ”

करन- ” हमें कुछ सोचना होगा,, क्योंकि राक्षसी कला काफी ताकतवर है,,, हम लोग लड़ते-लड़ते थक जाएंगे,, हम सभी को कुछ सोचना होगा!”

वधिराज- ” सही कहते हो करन !”

सभी लोग बाज से निपट ही रहे थे कि अचानक से वहाँ पर बहुत सारे जादुई सैनिक भागते हुए उन की तरफ आ रहे होते हैं।

वधिराज- ” यह सब इस राक्षसी की माया है,,!”

करमजीत- “बुलबुल!! टॉबी को तुम संभालो!”

बुलबुल- “हाँ,,,करमजीत!”

करण (उन सैनिकों को देखते हुए)- ” तुम सब डरना मत,, जीत हमारी ही होगी!”

राक्षसी कला- ” हमलाआआआआआ!!”

और सभी सैनिक उन सभी पर हमला करने लगते हैं,, वहीं सभी लोग जैसे-तैसे उन का सामना करते हैं।

तभी थोड़ी देर बाद राक्षसी को देख कर करन को किसी चीज का आभास होता है।

करण- ” ये राक्षसी कला,, बार-बार पीछे क्यों देख रही है?,, लगता है पीछे कुछ तो है!”

तभी सैनिक से लड़ते लड़ते करन वधिराज के पास जाता है।

करण- “वधिराज,,, सुनो,, मै,, राक्षसी कला के पीछे की तरफ जा रहा हूं ,,,, मुझे शक है कि पीछे कुछ है,, लेकिन तुम उस का ध्यान यहां पर बनाए रखना!”

वधिराज- “ठीक है, करण,!”

और करन सैनिकों से लड़ते-लड़ते और बचते बचाते राक्षसी के पीछे वाले क्षेत्र में चला जाता है।

करन को वहाँ एक तालाब दिखाई देता है।

करन (खुद से)- “आखिर राक्षसी बार-बार इस तालाब को क्यों देख रही थी,,,, कुछ तो गड़बड़ है!”

और तभी उसे तालाब के अंदर पानी मे एक स्त्री की परछाई दिखाई देती है।

करण- “लगता है ये कला राक्षसी का असली रूप है। मुझे तालाब के अंदर जा कर देखना होगा! शायद यहां से कुछ मदद मिल जाये”

और जब करन उस तालाब के अंदर जाता है तो वहां पर उसे वो स्त्री की परछाई दिखाई नहीं देती,,,,और आगे बढ़ने पर उसे फव्वारे के पास एक खँजर दिखाई देता है,,जिस पर आंख बनी थी।

करन- ” लगता है इस खंजर से मुझे राक्षसी की आंख पर हमला करना होगा!”

करन खंजर उठाता है और पीछे मुड़ता ही है कि उसे वहां पानी मे राक्षसी की एक बड़ी सी आंख दिखती है। करन डर जाता है।

राक्षसी ( गुस्से में)- “तुझे तो मैं कच्चा चबा कर खा जाऊंगी!”

करन- ” हिम्मत है तो कर के दिखाओ!”

और करण वहां से तेजी से तैरता हुआ जाने लगता है,, वहीं राक्षसी उस का पीछा करने लगती है।

करन तालाब के बाहर आ जाता है और राक्षसी का सामना करने लगता है। लेकिन राक्षसी उसे हराने लगती है और उसे पटक देती है। जिस से खंजर कहीं गिर जाता है।

करण कमजोर पड़ जाता है

करण- “हे ईश्वर!! मेरी मदद कीजिये।!”

राक्षसी- ” तुझे तो मै अपने पैरों से मसल दूंगी!”

वह राक्षसी अपना पैर करन के चेहरे पर रखने ही वाली होती है कि करन अपनी जेब में से एक छोटा चाकू निकाल कर उस राक्षसी के पैर में घुसा देता है।

राक्षसी- “आआआ,,,, बचेगा नहीं तू मेरे हाथ से!”

तभी वहां वधिराज आ जाता है और राक्षसी से लड़ने लगता है।

करण- ” मुझे वह खंजर ढूंढना होगा! उसी से इस राक्षसी का वध होगा।”

करण यहां वहां खंजर ढूंढता है और उसे एक जगह खंजर गिरा हुआ मिल जाता है।

करण- “ये रहा खंजर !! वधिराज,,,,मुझे अपने कंधे पर ले लो!”

इस के बाद करण वधिराज के कंधे पर बैठता है और वधिराज के कंधे से लंबी छलांग मार कर राक्षसी के कंधे पर बैठ जाता है और बड़ी मुश्किल से उस की आंखों पर उस खंजर से वार कर देता है।

अब राक्षसी एक सुंदर स्त्री में बदल जाती है।

स्त्री- “आप का बहुत-बहुत शुक्रिया,, आप सभी ने मेरा श्राप तोड़ दिया!”

तभी करण के सभी मित्र भी वहां आ जाते हैं।

करण- “तो कला,,,आप हमारी मदद करिए और राजकुमारी अप्सरा को उन के पंख वापस दिला दीजिए!”

कला- “जी,,, अवश्य!”

और इतना कह कर कला अपनी आंखें बंद करती है,,,जिस के बाद उस के माथे से एक चमकदार रोशनी निकलती है और उस रोशनी से राजकुमारी अप्सरा के पंख वापस आ जाते हैं।

अप्सरा ( खुश हो कर)- “अरे वाह!!!”

सुनहरी चिड़िया- ” आप बहुत अच्छी लग रही है अप्सरा जी!”

अप्सरा- ” धन्यवाद राजकुमारी चंदा!”

वधिराज (कला से)- “तो देवी जी,,,,,,,अब हमें यहां से जाने की इजाजत दें!”

करण- “हाँ!”

कला- “जी अवश्य,,,, और हम कामना करेंगे कि आप का आगे का पड़ाव सफल हो!”

 

तो अगले एपिसोड में हम देखेंगे करण और उसके दोस्तों का आगे का सफर।तब तक के लिए बने रहिये हमारे साथ।

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