Homeतिलिस्मी कहानियाँ15 – मायावी राक्षस | Mayavi Rakshas | Tilismi Kahaniya

15 – मायावी राक्षस | Mayavi Rakshas | Tilismi Kahaniya

वह क्रूद्ध आदमी सोचता है कि करण और उसके दोस्त कोई आक्रमणकारी है और वह तुरंत अपने सैनिकों को बुला लेते हैं।

क्रोधित आदमी: “सैनिकों!”

अप्सरा: “पिताजी, आपको इन लोगों से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। ये सब मेरे मित्र हैं!”

सुनहरी चिड़िया: “ये आप के पिता जी हैं?”

अप्सरा: “हाँ।”

अप्सरा के पिता: “मित्र???? तुम इनसे कौन से स्थान पर मिली थी पुत्री?”

अप्सरा (मुस्कुराते हुए करण की ओर इशारा करते हुए): “ये करण है पिता जी ! आपको नहीं पता, इसी युवक की वजह से मुझे उस श्राप से मुक्ति मिली है।,, और ये सब इन के मित्र हैं।”

अप्सरा के पिता (खुश होते हुए): “अच्छा!!, बहुत-बहुत धन्यवाद पुत्र,, मैं अपनी पुत्री को यहां पर देखकर अत्यंत प्रसन्न हूं। मैं आपका आभारी रहूँगा।”

करण (मुस्कुराते हुए): “कोई बात नहीं महाराज! यह तो मेरा फर्ज था, वैसे आपकी पुत्री ने भी हमारी अत्यधिक सहायता की हैउ स दानव से बचने में,, अगर ये ना होती तो शायद आज हम सब भी जिनदा ना होते!”

विदुषी: “हां करण बिल्कुल सही कह रहा है।”

टॉबी (अप्सरा के पिता से): “हां, करण बिल्कुल सही कह रहा है! वैसे आपकी अब हम सभी से मित्रता हो गई है तो क्या आप हमें यह अप्सरा नगर दिखा सकते हैं?”

जयदेव: “अरे टॉबी, ये कैसी बात कर रहे हो। वो यहां के राजा है, वह भला अप्सरा नगर क्यों दिखाएंगे?”

अप्सरा के पिता: “अरे अरे,,, हम यहां के राजा है तो क्या हुआ? आप हमारे मेहमान है और आप को प्रसन्न रखना हमारा कर्तव्य है और हम अपने कर्तव्य से पीछे नही हटते!”

कुश: “वाह!! इसका मतलब आप हमें घुमाएंगे यहां”

अप्सरा ( मुस्कुराते हुए): “हां पिता जी! आप सही कहते हैं,,, आप सभी लोग आइए अब आगे चलते हैं!”

तभी अप्सरा उन्हें एक ऐसी जगह पर ले जाती है , जहां पर एक बेहद सुंदर झरना था। जिससे एक विशेष प्रकार की सुगंध आ रही थी और उस झरने के आसपास का दृश्य अत्यंत आकर्षक था।

विदुषी: “लव और कुश देखो ना,,,, यह जगह कितनी खूबसूरत है,,,,“

कुश: “कितनी मनमोहक सुंगध है यहां।”

जयदेव: “सच मे! मन करता है कि यहीं ठहर जाऊँ हा हा हा हा!”

तितलियां: “आप सब का अप्सरा नगर में स्वागत हैं।”

कुश: “अरे यहां की तो तितलियां बोल भी सकती हैं?”

अप्सरा: “हां मेरे मित्र!”

लव: “अप्सरा राजकुमारी, आप की जगह तो अत्यंत मनमोहक है !”

अप्सरा: “आप सभी लोगों को भूख लगी होगी, महल के अंदर चलिए और सभी लोग खाना खा लीजिए!”

तो जैसे ही सभी लोग महल के अंदर जाते हैं वहां पर बहुत सारी सुंदर परियां होती है जो उनके स्वागत के लिए खड़ी होती हैं, सभी परियां एक दूसरे का हाथ पकड़ती हैं और आसमान में उड़ कर उनके चारों और चमकीला घेरा बनाकर गाती है।

करण: “वाह्ह्ह्ह…..!”

*****तभी भोजन करने के थोड़ी देर बाद****

सुनहरी चिड़िया (करण से): “अब हमें यहां से चलना चाहिए,,, हमें जल्दी वधिराज को ढूंढना होगा! वक्त निकलता जा रहा है”

करण: “राजकुमारी जी, मै भी आपसे यही कहने वाला था चलिए। अब चलते हैं!”

तो करण राजकुमारी अप्सरा से वहां से जाने के लिए कहता है,, तो अप्सरा फिर से जादुई घेरा बनाती है और करण और उसके मित्र पुन: उसी जगह पर पहुंच जाते हैं।

जयदेव: “राजकुमारी अप्सरा, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!”

कुश: “अरे,,,,, हमारा तांगा तो यहां पर है ही नहीं?,,,,, अब हम आगे का सफर कैसे तय करेंगे?”

अप्सरा: “आप चिंता ना करें! मैं आप सभी को वहां ले कर चलती हूँ।,,,!”

सुनहरी चिड़िया: “हाँ! ये उचित रहेगा, राजकुमारी!”

अप्सरा (उस कालीन की ओर इशारा करते हुए): “चलिए सभी उसके ऊपर खड़े हो जाइए!”

टॉबी: “हाँ,,, जरूर!”

और वो जादुई कालीन उन सभी को लेकर आसमान में उड़ने लगता है।,,,,

सुनहरी चिड़िया: “कितना मनमोहक दृश्य है।”

कुश: “हाँ! अब ऐसा लग रहा है कि सफर काफी अच्छा है!”

लव: “हां भाई तुम बिल्कुल सही कहते हो,,,,,, यह चमकीले चांद तारे वातावरण को कितना सुंदर बना रहे है ना!”

विदुषी: “हाँ! सच मे!!”

*****तभी थोड़ी दूर चलने के बाद****

सुनहरी चिड़िया: “अप्सरा यहां से बांयी दिशा में मुड़ जाइये!”

अप्सरा: “यह रास्ता तो हिमनगर की ओर जाता है,,!”

सुनहरी चिड़िया: “हाँ,,,, राजकुमारी,,, हमें वहां पर अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है !”

अप्सरा: “हम ईश्वर से आपके कार्य की सफलता की कामना करेंगे,,,!”

सुनहरी चिड़िया: “बहुत-बहुत धन्यवाद!”

जैसे ही वो लोग हिमनगर पहुंचते हैं वैसे ही वहां पर हिम और ओलो की बरसात होने लगती है।

विदुषी: “अरे यह क्या हो रहा है?,,, हे भगवान!”

अप्सरा: “मित्रों! अब सुरक्षित है हम सब। ये कवच हमारी रक्षा करेगा।”

करण: “आखिर कौन कर रहा है यह? कोई ना कोई तो अवश्य हमारे आस पास है!”

सुनहरी चिड़िया: “यह अवश्य वधिराज होगा,,,,, उसे लग रहा होगा कि हम शायद उसके दुश्मन है!”

तभी टॉबी की नजर वधिराज के ऊपर जाती है।

टॉबी (पीछे की ओर इशारा करता है): “अरे,,, वह देखो,,, एक बड़ा सा प्राणी उस हिम के बने हुए पहाड़ के पीछे है,,,, उसकी आंखों से ये सारे हिम के गोले निकल रहे हैं !”

करण: “राजकुमारी अप्सरा,,, आप तत्पर ही वधिराज के आँखों को जादू के सहारे ढक दीजिए!”

तभी अप्सरा अपनी छड़ी घूमाती है और वधिराज के आँखों मे एक सफेद रंग की एक जादुई पट्टी अपने आप बंध जाती है।

वधिराज (जोर से चिल्लाते हुए): “तुम सभी को छोडूंगा नहीं मैं,,,, यह सब उचित नहीं हो रहा है! खोलो इसे”

इसी बीच करण और जयदेव उसको काबू मे करने के लिए उसके पास पहुंच जाते हैं और तभी दुर्भाग्यवश वह अपनी आंखों की पट्टी खोल लेता है,,,, तत्पश्चात वह करण के सीने के ऊपर पैर रखने के लिए आगे बढ़ता है।

विदुषी (चिल्लाते हुए): “करनननननननननननन!!”

तो अगले एपिसोड में हम यह जानेंगे कि क्या करण की जान बच पाएगी।

जानने के लिए बने रहिये हमारे साथ, अगले एपिसोड में—–

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14 - जादुई