Homeतिलिस्मी कहानियाँ11 – राक्षस का खज़ाना | Rakshas ka Khazana | Tilismi Kahaniya

11 – राक्षस का खज़ाना | Rakshas ka Khazana | Tilismi Kahaniya

डाकू 1 ( गुस्सा मे करण को आंख दिखाकर): “भाई जान! कहीं ऐसा तो नहीं कि इन सब मे इन्हीं सब का हाथ हो? इसने हमे फसाने के लिए चाल चली हो”

डाकू का सरदार: “नहीं नहीं! ऐसा नहीं हो सकता ! तुमने देखा नहीं उसकी भी जान खतरे में थी!”

डाकू का सरदार अत्यंत प्रसन्न होता है क्योंकि करण की वजह से सब की जान बच गई थी

विदुषी: “हम लोग आपको जाल में क्यों फंसायेंगे। आपको हम पर यकीन करना होगा।”

डाकू का सरदार: “तुम्हें इनसे माफी मांगनी चाहिए।”

डाकू 1: “ठीक है सरदार!”

जयदेव: “अरे यह कैसे हो सकता है! इसका तो अभी अंत हो चुका था!!”

सुनहरी चिड़िया: “यह राक्षस काफी ताकतवर जान पड़ता है जयदेव, हमें इसकी कमजोरी का पता लगाकर इसका वध करना होगा!”

सभी लोग डर के मारे यहां वहां भागने लगते है। सब कुछ इतनी जल्दी हो रहा था कि करण को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था।

लेकिन इसी अफरा-तफरी में डाकु के सरदार का एक आदमी वहीं पत्थर से दबकर मर जाता है।

डाकू 1: “भाई जान यह क्या हो रहा है हम लोग जिंदा बचेंगे भी कि नहीं?”

जब सभी लोग अपनी नजर घुमाते हैं तो देखते हैं कि डाकू का सरदार उस राक्षस के बायीं और खड़ा है।

…उस समय उस राक्षस का ध्यान करण और उसके मित्रों की ओर था इसीलिए डाकू के सरदार को उस राक्षस पर आक्रमण करने का मौका मिल जाता है ।

वह शीघ्र ही अपने हाथ में पकड़े हुए तलवार को उस राक्षस की ओर फ़ेकता है।

डाकू का सरदार ( तलवार को राक्षस की तरफ करते हुए ): “बेरहम प्राणी, तुझे जीने का कोई अधिकार नहीं है!”

तो उस डाकू की सरदार का निशाना काफी पक्का था, उसकी तलवार सीधे जाकर उस राक्षस के ग्रीवा (neck) में लग जाता है और वह दर्द से छटपटाने और चिल्लाने लगता है।

इसके बाद तूफान भी बंद हो जाता है और वह राक्षस एक मिट्टी की मूर्ति के समान गलकर वहीं पर खत्म हो जाता है।

लव: “करण! ये फिर से तो उत्पन्न नहीं हो जाएगा ना?”

करण: “हा हा हा! लगता तो नही लव।!”

कुश: “बहुत भयानक था यह राक्षस, मुझे तो बहुत डर लग रहा है!”

जयदेव: “तुम सब डरो मत! हम हैं ना साथ, हिम्मत रखो। वैसे भी अभी हमें बहुत लंबा सफर तय करना है कुश।”

सुनहरी चिड़िया: “मुझे माफ करना दोस्तों! मेरी वजह से आप सभी को इतना कष्ट झेलना पड़ रहा है!”

विदुषी: “अरे ऐसा मत कहिए राजकुमारी जी, हम तो बडे धन्य है कि हमें आपकी मदद करने का मौका मिल रहा है।”

डाकू का सरदार: “करण, अब हम यहां से चलते हैं, लेकिन मित्र! जब भी तुम्हें मेरी जरूरत हो तो मुझे याद कर लेना। मै पश्चिम में बसे अमरपुर गांव से बाहर एक पुराने घर मे रहता हूं।”

करण: “अवश्य मित्र, तुमने इतनी बड़ी बात कही, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!”

डाकू 1: “मुझे माफ करना, मैंने आपको गलत समझा!”

करण: “माफी मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है मेरे मित्र ! क्योंकि परिस्थितियां ही ऐसी थी कि आपने ऐसा सोच लिया। इसमें आपकी कोई गलती नहीं है, अब आप यहां से आराम से जाइये!!”

टॉबी: “मेरे मालिक बहुत अच्छे हैं। सब की सहायता करते हैं।”

डाकू का सरदार यह देख कर चौक जाता है !

सरदार: “अरे! आपका पशु बोल भी सकता है? यह कैसा कुदरत का करिश्मा है वाह!!,,,,, अति उत्तम”

करण: “हाँ, यह एक लंबी कहानी है। कभी फुर्सत होगी तो हम आपको अवश्य सुनायगे। परंतु अभी हमें यहां से प्रस्थान करना होगा क्योंकि हमारे पास समय बहुत कम है!”

डाकू का सरदार: “अवश्य मित्र! अब आप लोग भी जल्दी यहां से प्रस्थान कीजिए,,, हम भी चलते है अब!.. मैं दुआ करता हूं कि आप सभी मित्र जिस कार्य के लिए आगे बढ़ रहे हैं वह कार्य अवश्य सफल हो!”

और इसके बाद डाकू का सरदार उन्हें अलविदा कहकर अपने साथियों के साथ वहां से चला जाता है। इसके बाद करण और उसके मित्र भी अपने तांगे की तरफ बढ़ते हैं।

जयदेव: “चलो मित्रों अब हम अपनी यात्रा फिर से शुरू करते हैं!”

सुनहरी चिड़िया: “हम्म्म्म….चलो”

और इसके बाद करण अपना तांगा चलाना शुरु कर देता है और सभी लोग अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ते हैं।

जयदेव (सुनहरी चिड़िया से): “आपको पक्का मालूम है ना है राजकुमारी कि वधिराज हमें उस जगह पर मिलेगा!”

*** और थोड़ी देर बाद ***

सुनहरी चिड़िया: “हाँ मैंने उसके बारे में बहुत सुना है और बाबा ने भी मुझे यही कहा था कि मुझे इसी रास्ते पर आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा था कि वधिराज किसी ऐसे स्थान पर रहता है जहां पर अत्यधिक हिम ( बर्फ) है और मेरे विचार से हम जिस रास्ते पर बढ़ रहे हैं उसी रास्ते पर एक ऐसा स्थान है जहां पर बहुत ठंड होती है।”

करण: “ठीक है! जैसा आप कहें, राजकुमारी चंदा!”

सभी लोग बातें कर ही रहे थे कि अचानक से टॉबी की नजर करण के म्यान में रखे हुए उसके तलवार के ऊपर जाती है।

टॉबी (चिल्लाते हुए): “करन,,,,, ककककक…करण… तुम्हारी तलवार,,,,, अभी मैंने देखा, वह चमक रही थी!”

विदुषी: “ क्या? “

टॉबी: “ हाँ!! ”

कुश: “अरे यह कोई भूतिया तलवार तो नहीं है? और करण ये वही तलवार है ना जो तुमने उस शिकारी आदमी से ली थी जिसने राजकुमारी चंदा को पहले पकड़ने की कोशिश की थी?”

सुनहरी चिड़िया: “ऐसा कुछ भी नहीं है यह तलवार उसी जादूगर की है। यह तलवार काफी काम की है। हो सकता है कि इसी तलवार के सहारे हम उस जादूगर का वध कर सकें!”

सुनहरी चिड़िया अपनी बात खत्म ही करती है कि अचानक से करण तांगे को रोक देता है।

करण (चौकते हुए): “अरे आगे का रास्ता तो बंद है!”

तो अगले एपिसोड में हम यह जानेंगे कि करण और उसके मित्र कैसे इस भयानक रास्ते को पार करेंगे?

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