दो ख़ुदा
जब बड़े महाराज जी फ़ौज में इंजीनियर थे तो एक बार उनका तबादला रावलपिण्डी हो गया| वहाँ का इंचार्ज एक एस. डी. ओ. था|
जब बड़े महाराज जी फ़ौज में इंजीनियर थे तो एक बार उनका तबादला रावलपिण्डी हो गया| वहाँ का इंचार्ज एक एस. डी. ओ. था|
एक पादरी हमेशा बड़े महाराज जी के साथ बहस करता रहता था| एक बार जब आप व्यास स्टेशन पर उतरे, तो वह बोला कि एक सवाल का जवाब दो|
डेरे में ठाकुर सिंह नाम का एक सत्संगी रहता था| उसको लोगों के घर में खाने की आदत थी| जीवन के आख़िरी दिनों में उसे प्लेग की बीमारी हो गयी|
बडे महाराज जी ने एक बार बताया कि लड़ाई के समय उनके साथ एक सेना-अधिकारी था जिसने जानवरों के राशन में से क़रीब एक लाख रुपया चुरा लिया था|
जब बड़े महाराज जी एस. डी. ओ. थे, तो एक बार आप पहाड़ी इलाके में जा रहे थे कि एकाएक आपके दिल में ख़ुशी छा गयी| आप समझ न सके कि वह ख़ुशी किस बात की थी|
हजर स्वामी जी महाराज के वक़्त दो-चार प्रेमी बीबियाँ थीं: उनमें एक बीबी शिब्बो थी| एक बार वह स्नान करने लगी तो एक योगी उसके घर के पास से गुज़रा|
स्वामी जी महाराज को तुलसी साहिब से परमार्थ की रोशनी मिली थी| तुलसी साहिब स्वामी जी महाराज के घर आया करते थे|
एक अभ्यासी सत्संगी ने एक पेड़ की ओर इशारा करते हुए बड़े महाराज जी से पूछा, “अच्छे कर्म करने से क्या यह पेड़ भी मनुष्य-देह प्राप्त कर सकता है?”
लक्खा सिंह अमृतसर में एक प्रेमी सत्संगी था| एक बार वह दक्षिण में नांदेड़ शहर गया| वहाँ उसको एक बूढ़ा व्यक्ति मिला|
बाबा जी महाराज के वक़्त का ज़िक्र है कि डेरे में हुकम सिंह नाम का एक सत्संगी रहता था| वह एक मिनट भी बेकार नहीं बैठता था| रात को भजन करता और दिन में सेवा करता|