Home2019March (Page 26)

इस साल होलाष्टक की शुरुआत 14 मार्च से हो रही है। पौराणिक शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा गया है।

होली की पूर्व संध्या में होलिका दहन किया जाता है। इसके पीछे प्राचीन कथा है कि असुर हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था। स्वयं को उसने ईश्वर कहना शुरू कर दिया था।

हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऐसी कई सारी बाते लिखी गई है जो हमे बताती है कि, मनुष्य को अपने पूरे जीवन में ऐसा क्या नहीं करना चाहिए जिससे वो अपने कमाए हुए पुण्य को अनजाने में परंतु समाप्त ना कर लें।

अकसर मंदिर में या घर पर आपने पंडितों से या अपने बड़ों से ये मंत्र सुना होगा। आरती के बाद अकसर इस मंत्र को बोला जाता है। वास्तव में इस मंत्र का क्या अर्थ है और इस मंत्र को क्यों बोला जाता है और इसके पीछे क्या राज छिपा है यह जानते है:

सिद्धवरकूट जो तपस्वियों की सिद्ध भूमि मानी जाती है, वहां जल्द ही वार्षिक त्रिदिवसीय धार्मिक समारोह आयोजित किया जयेगा जिसमें, भक्तजन होली के त्योहार का आनंद लेंगे।

प्रत्येक वर्ष हमें कई सूर्य अथवा चंद्र ग्रहण दिखाई देते हैं जो पूर्ण (खग्रास) अथवा आंशिक (खंडग्रास) होते हैं । प्रत्येक ग्रहण पृथ्वी पर किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में ही दिखाई देता है।

प्रत्येक वर्ष हमें कई सूर्य अथवा चंद्र ग्रहण दिखाई देते हैं जो पूर्ण (खग्रास) अथवा आंशिक (खंडग्रास) होते हैं । प्रत्येक ग्रहण पृथ्वी पर किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में ही दिखाई देता है।