मुफ्तखोर मेहमान – शिक्षाप्रद कथा
एक राजा के शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था| वह राजा के भव्य पलंग पर बिछने वाली चादर के एक कोने में छिपी रहती थी|
एक राजा के शयनकक्ष में मंदरीसर्पिणी नाम की जूं ने डेरा डाल रखा था| वह राजा के भव्य पलंग पर बिछने वाली चादर के एक कोने में छिपी रहती थी|
बात काफी पुरानी है, एक राजा को बंदरों से बहुत लगाव था| एक बड़ा बंदर तो उसके निजी सेवक के रूप में काम किया करता था|
एक घने जंगल में एक बड़ा-सा नाग रहता था| चिड़ियों के अंडे, मेंढक तथा छिपकलियों जैसे छोटे जीव-जंतुओं को खाकर वह अपना पेट भरता था|
एक बूढ़ा शेर जंगल में मारा-मारा फिर रहा था| कई दिनों से उसे खाना नसीब नहीं हुआ था| दरअसल बुढ़ापे के कारण अब वह शिकार नहीं कर पाता था|
एक गांव में एक धोबी के पास एक गधा और एक कुत्ता था| कुत्ता घर की रखवाली करता और गधे का काम धोबी के कपड़ों का गट्ठर अपनी पीठ पर लादकर लाना ले जाना था|
बहुत पुरानी बात है, वर्धमानक नामक एक ग्रामीण व्यापारी अपनी बैलगाड़ी में बैठकर मथुरा की ओर जा रहा था|
गोलू और मोलू पक्के दोस्त थे| गोलू जहां दुबला पतला था, वहीं मोलू मोटा और गोल मटोल| दोनों एक-दूसरे पर जान देने का दम भरते थे|
एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था| पहाड़ की तराई में बदगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घौंसला बनाकर रहता था|
एक बार राजा कृष्णदेव राय अपने दरबारियों के साथ अपने दरबार में किसी विषय पर विचार-विमर्श कर रहे थे कि सहसा उनके पास एक व्यक्ति आया और कहने लगा कि मैं घोड़ों का व्यापारी हूं|
राजा कृष्णदेव राय का दरबार हमेशा की तरह दरबारियों से सजा हुआ था|