देवदार का पेड़ और कंटीली झाड़ियां – शिक्षाप्रद कथा
एक घने जंगल में देवदार का एक विशाल पेड़ था|
एक किसान था, जो भुलक्कड़ था| उसके पास छ: गधे थे| वह उन गधों पर अपने खेत की फसल लादकर ले जाता और मंडी में बेचा करता|
किसी दम्पति के पास एक अद्भुत मुर्गी थी| ‘अद्भुत’ इसलिए कि वह प्रतिदिन सोने का एक अंडा देती थी| ऐसी जादुई मुर्गी पाकर वे बहुत प्रसन्न थे तथा अपने को भाग्यशाली समझते थे| सोने का अंडा बेच-बेचकर उन्होंने बहुत-सा धन इकट्ठा कर लिया था|
किसी जंगल में एक अत्यधिक चतुर लोमड़ी रहती थी| उसे दूसरों को मुर्ख बनाने में बहुत आनन्द मिलता था|
किसी गधे को सिंह की खाल मिल गई| उसने सोचा – ‘अगर मैं इस खाल को ओढ़ लूं तो मजा आ जाएगा! जंगल के सभी जानवर मुझे सिंह समझकर डर जाएंगे|’
एक समय की बात है, एक लोमड़ी घूमते-घूमते एक कुएं के पास पहुंच गई| कुएं की जगत नहीं थी| उधर, लोमड़ी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया| परिणाम यह हुआ कि बेचारी लोमड़ी कुएं में गिर गई|
दो मित्र थे – खरगोश और कछुआ| खरगोश अपनी तेज तथा कछुआ अपनी धीमी चाल के लिए प्रसिद्ध था| एक बार दोनों आपस में बातें कर रहे थे| खरगोश कछुए की धीमी गति का मजाक उड़ाने लगा| कछुआ खरगोश की बातें सुनकर चिढ़ गया, मगर फिर भी बोला – “मैं धीमी गति से चलता हूं तो क्या हुआ, यदि हमारी आपसी दौड़ हो जाए तो मैं पराजित कर दूंगा|”
यह किसी तालाब के किनारे की घटना है| एक मेंढ़क का बच्चा पहली बार पानी से बाहर आया| तालाब से कुछ दूर एक भीमकाय सांड़ घास चर रहा था| मेंढ़क के बच्चे ने तो कभी भी इतना भयानक एवं भीमकाय जानवर नहीं देखा था| बेचारा समझ नहीं पा रहा था कि वह है क्या?