दीदी माता रितम्हारा जी
उनका मानना है कि श्रीकृष्ण और यशोदा माता के बीच मातृभाव के प्यार के व्यक्तित्व में, जो जन्म से उनकी मां नहीं थी, लेकिन उन्हें किसी भी जैविक मां की तुलना में अधिक प्यार करता था।
उनका मानना है कि श्रीकृष्ण और यशोदा माता के बीच मातृभाव के प्यार के व्यक्तित्व में, जो जन्म से उनकी मां नहीं थी, लेकिन उन्हें किसी भी जैविक मां की तुलना में अधिक प्यार करता था।
(1) प्रभु कार्य करने का ‘सुअवसर’ आया है:
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार परमात्मा ने दो प्रकार की योनियाँ बनाई हैं। पहली ‘मनुष्य योनि’ एवं दूसरी ‘पशु योनि’। चैरासी लाख ‘‘विचार रहित पशु योनियों’ में जन्म लेेने के पश्चात् ही परमात्मा कृपा करके मनुष्य को ‘‘विचारवान मानव की योनि’’ देता है। इस मानव जीवन की योनि में मनुष्य या तो अपनी विचारवान बुद्धि का उपयोग करके व नौकरी या व्यवसाय के द्वारा या तो अपनी आत्मा को पवित्र बनाकर परमात्मा की निकटता प्राप्त कर ले अन्यथा उसे पुनः 84 लाख पशु योनियों में जन्म लेना पड़ता हैं। इसी क्रम में बार-बार मानव जन्म मिलने पर भी मनुष्य जब तक अपनी ‘विचारवान बुद्धि’ के द्वारा अपनी आत्मा को स्वयं पवित्र नहीं बनाता तब तक उसे बार-बार 84 लाख पशु योनियों में ही जन्म लेना पड़ता हैं और यह क्रम अनन्त काल तक निरन्तर चलता रहता हैं। केवल मनुष्य ही अपनी आत्मा का विकास कर सकता है पशु नहीं। जो व्यक्ति प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान जाता है फिर उसे धरती, आकाश तथा पाताल की कोई शक्ति प्रभु कार्य करने से नहीं रोक सकती। सुनो अरे! युग का आवाहन, करलो प्रभु का काज। अपना देश बनेगा सारी, दुनिया का संकटहार।
सामान्य लोगों के लिए आध्यात्मिक नेता और पथ मार्गदर्शक होने के लिए श्रीनिरकर ने बाबा अवतार सिंह की तीसरी पीढ़ी की आशीष दी।
हमारे पास इतनी कीमती चीजें हैं जिसके बारे में हमको ज्ञान नहीं है। हमारे पास क्या चीजें हैं – हमारे पास हमारा शरीर, हमारा चिन्तन, हमारा वक्त, हमारा श्रम, हमारा पसीना, हमारा आत्मविश्वास, हमारा स्वास्थ्य, हमारा साहस, हमारा ज्ञान-विज्ञान, हमारा हृदय, हमारा मस्तिष्क, हमारा अनुभव, हमारी भावनाएं-संवेदनाएं। हमारे पास ये इतनी बड़ी चीजें हैं कि उसका रूपये से कोई संबंध नहीं है। रूपया तो इसके सामने धूल के बराबर है, मिट्टी के बराबर है। रूपया किसी काम का नहीं है इसके आगे। हमारे पास ये अनमोल चीजें हैं इसे किसी महान उद्देश्य के लिए झोक दें। इस सृष्टि के पीछे छिपी भावना प्रत्येक जीव के कल्याण की है। इस ब्रह्माण्ड में पृथ्वी सहित सभी ग्रह-तारें, सूर्य-चन्द्रमा का आपस में आदान-प्रदान के सहारे ही अस्तित्व बना हुआ है। ब्रह्माण्ड की अब तक की खोज में मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणी है। मनुष्य के पास इन अनमोल चीजें के बलबुते अर्जित की गयी विभिन्न क्षेत्रों की कुछ ऐतहासिक उपलब्धियों के बारे में आइये जाने।
आठवे शताब्दी के जगविख्यात तत्त्वज्ञानी तथा वेदान्ती आदि श्री शंकराचार्यजी ने अव्दैत सिद्धांत का एकीकरण करके उसे स्थापित किया। इस सिद्धांत के अनुसार आत्मा तथा निर्गुण ब्रह्म इन दोनों में एकरूपता होती है। आगे चलकर इस भारतवर्ष के अनेक ख्यात संतो तथा ऋषिमुनियों ने अव्दैत तत्त्व का प्रचार तथा प्रसार भी किया। उन्नीस तथा बीसवी शताब्दी में कर्नाटक के हुबली शहर में कार्यरत संत श्री सिद्धारूढ स्वामीजी (१८३६ – १९२९) ने इस तत्त्वप्रणाली को बड़ी सरलतासे समझाकर इसका प्रचार किया।
मानव जाति के अन्नदाता किसान को जमीन को कागजी दांव-पेच से आगे एक महान उद्देश्य से भरे जीवन की तरह देखना चाहिए। कागजी दांव-पेच को हम एक किसान की सांसारिक माया कह सकते हैं, लेकिन अब जमीन पर पौधे लगाने की योजना है, ताकि हमारा सांसारिक मोह केवल जमीनी कागज का न रहे, बल्कि जीवन का एक मकसद बनकर अन्नदाता तथा प्रकृति-पर्यावरण से भी जुड़ा रहे। किसान को अपने उत्तम खेती के पेशे का उसे पूरा आनंद उठाना है। सब्सिडी का लोभ और कर्ज की लालसा किसान को कमजोर करती है। जमीन बेचने की लत से छुटकारा तभी मिलेगा, जब हम धरती की गोद में खेलेंगे, पौधे लगाएंगे। जमीन-धरती हमारी माता है। परमात्मा हमारी आत्मा का पिता है। केवल धरती मां के एक टूकड़े से नहीं वरन् पूरी धरती मां से प्रेम करना है। धरती मां की गोद में खेलकूद कर हम बड़े होते हैं। धरती मां को हमने बमों से घायल कर दिया है। शक्तिशाली देशों की परमाणु बमों के होड़ तथा प्रदुषण धरती की हवा, पानी तथा फसल जहरीली होती जा रही है।
उनका जन्म 5 मार्च 1970 में हुआ था। आठ वर्ष की उम्र में वह जीवन की सच्चाइयों को जानना बेहद निराश थे। वह जानना चाहते थे कि लोगों को अज्ञानता, भ्रम, अभाव और पीड़ा से कष्ट क्यों किया जाता है इसलिए, वह समझ गए कि यह दुख कर्म के कारण है और इस अहसास ने उसे एक अच्छे समाज के बारे में सपना देखा जो कल एक बेहतर दुनिया में विकसित हो सके।
भाद्रपद कृष्णपक्ष-अष्टमीकी अर्धरात्रिमें परम भागवत वसुदेव और माता देवकीके माध्यमसे कंसके कारागारमें चन्द्रोदयके साथ ही भगवान् श्रीकृष्णका प्राकट्य हुआ था|
नाम परस जैन (दीक्षा से पहले) जन्म तिथि 11 मई, 1970 जन्मस्थान धम्मरी, छत्तीसगढ़ का स्थान पिता का नाम स्वर्गीय भिकमचंद जैन माता का नाम श्रीमती गोपी बाई जैन शिक्षा बैचलर ऑफ आर्ट्स (जबलपुर) ब्रह्माचार्य व्रत 27 जनवरी, 1 99 3 (ग्रह टायग) ब्रह्मचर आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज अलक दीक्षा 27 जनवरी, 1994 दिक्षे ग्वालियर मध्य प्रदेश का स्थान मुनी दीक्षे 11 दिसंबर, 1995 दीक्षे