उन्नति का रहस्य
एक युवक बनारस की सड़कों पर घूम रहा था| वहाँ बहुत बंदर थे, जो अक्सर अनायास ही लोगों पर झपट पड़ते थे| उस युवक के साथ भी उन्होंने वही किया|
एक युवक बनारस की सड़कों पर घूम रहा था| वहाँ बहुत बंदर थे, जो अक्सर अनायास ही लोगों पर झपट पड़ते थे| उस युवक के साथ भी उन्होंने वही किया|
एक साधु था| चलते-चलते वह एक शहर के पास पहुँचा तो शहर का दरवाजा बन्द हो गया| रात हो गयी थी| वह साधु दरवाजे के बाहर ही सो गया| दैवयोग से उस दिन उस शहर के राजा का शरीर शान्त हो गया था|
यह शीतल प्रकृति की पत्तेदार होती है| पाचन-क्रिया को मजबूत करने व रुचि बढ़ाने में यह सहायता प्रदान करती है| यह शरीर के रोगात्मक विषों को नष्ट करने में समक्ष है| मुख्यत: इसको शाक के रूप में प्रयोग किया जाता है| पेट के रोग तथा गंजेपन की शिकायत भी इससे दूर हो जाती है| यह गठिया, ब्लडप्रेशर और हृदय रोगियों को भी लाभ पहुंचती है|
“Sanjaya said, ‘Beholding Vrishasena slain, Karna, filled with grief andrage, shed tears from his eyes for the death of his son. Endued withgreat energy, with eyes red as copper from rage, Karna proceeded in theface of his foe, having summoned Dhananjaya to battle.
1 बृहदश्व उवाच
ततस तु याते वार्ष्णेये पुण्यश्लॊकस्य दीव्यतः
पुष्करेण हृतं राज्यं यच चान्यद वसु किं चन
किसी वन में मदोत्कट नाम का सिंह निवास करता था| व्याघ्र, कौआ और सियार ये तीन उसके नौकर थे| एक दिन उन्होंने एक ऐसे ऊंट को देखा जो अपने निरोह से भटककर उनकी ओर आ गया था| उसको देखकर सिंह कहने लगा, ‘अरे वाह, वह तो विचित्र जीव है| जाकर पता तो लगाओ कि वह वन्य प्राणी है अथवा की ग्राम्य प्राणी|’
“Bhishma said, ‘King Nahusha hearing the pass to which Chyavana wasreduced, quickly proceeded to that spot accompanied by his ministers andpriest.
1 [षुक्र]
वर्तमानस तथैवात्र वानप्रस्थाश्रमे यथा
यॊक्तव्यॊ ऽऽतमा यथाशक्त्या परं वै काङ्क्षता पदम