अध्याय 65
1 [य]
राजन किं करवामस ते परशाध्य अस्मांस तवम ईश्वरः
नित्यं हि सथातुम इच्छामस तव भारत शासने
1 [य]
राजन किं करवामस ते परशाध्य अस्मांस तवम ईश्वरः
नित्यं हि सथातुम इच्छामस तव भारत शासने
शीतपित्त को साधारण भाषा में पित्ती उछलना कहते हैं| इसमें रोगी के शरीर में खुजली मचती रहती है, दर्द होता है तथा व्याकुलता बढ़ जाती है| कभी-कभी ठंडी हवा लगने या दूषित वातावरण में जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है|
“Dhritarashtra said, ‘What, indeed, O Sanjaya, did Duryodhana say when hesaw that Karna turning away from the field upon whom my sons had reposedall their hopes of victory?
देवी अन्नपूर्णा हिन्दू धर्म की अन्न की देवी हैं, जो धन, वैभव और सुख शांति को प्रदान करती हैं| इन्हे अन्न की पूर्ति करने वाली देवी माना जाता है | मान्यता है की देवी अन्पुर्न्ना भक्तों की भूख शांत करती है| इनकी आराधना करने वाले भक्तों के घर मे कभी अनाज की कमी नहीं होती है|
“Sanjaya said ‘Beholding Somadatta shaking his large bow, Satyaki,addressing his driver, said, ‘Bear me towards Somadatta.
OM! Having bowed down to Narayana, and Nara, the most exalted of malebeings, and also to the goddess Saraswati, must the word Jaya be uttered.
“Vaisampayana said,–“Then Maya Danava addressed Arjuna, that foremost of successful warriors, saying,–‘I now go with thy leave, but shall comeback soon.
एक गरीब आदमी बेवजह घूमता हुआ एक कस्बे में पहुँचा| वह बहुत मरियल सा हो गया था क्योंकि कई दिनों से उसे खाने के लिये कुछ नहीं मिला था| उसे आशा थी कि कस्बे में उसे खाने के लिए कुछ-न-कुछ मिल ही जायेगा वरना भूख से उसकी मौत निश्चित थी|
जब पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण हो गई तो उन्होंने द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा देना चाहा। द्रोणाचार्य को द्रुपद के द्वारा किये गये अपने अपमान का स्मरण हो आया और उन्होंने राजकुमारों से कहा, “राजकुमारों! यदि तुम गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो तो पाञ्चाल नरेश द्रुपद को बन्दी बना कर मेरे समक्ष प्रस्तुत करो। यही तुम लोगों की गुरुदक्षिणा होगी।” गुरुदेव के इस प्रकार कहने पर समस्त राजकुमार अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र ले कर पाञ्चाल देश की ओर चले।