अध्याय 266
1 [य]
मॊक्षः पितामहेनॊक्त उपायान नानुपायतः
तम उपायं यथान्यायं शरॊतुम इच्छामि भारत
“Bhishma said, ‘Then, O great king, during the night, having bowed untothe Brahmanas, the Rishis, the gods, and all those creatures that wanderduring the dark, and also all the kings of the earth,
“Dhritarashtra said, When such was the condition of battle, between thoseheroes of their side and mine, what did Bhima then do? Tell me all, OSanjaya!’
“Yudhishthira said, ‘O Krishna, why wert thou absent (from the Anarttacountry)? And, O descendant of the Vrishni race, while thou wert away,where didst thou dwell? And what didst thou do while out of thy kingdom?’
एक वृक्ष पर बहुत से कबूतर रहते थे| एक दिन प्रातःकाल कबूतर भोजन की तलाश में उड़े| उड़ते-उड़ते उनकी दृष्टि एक जगह बिखरे हुए दानों पर पड़ी|
एक बार हस्तिनापुर के महाराज प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित हो कर देवी गंगा उनकी दाहिनी जाँघ पर आकर बैठ गईं। महाराज यह देख कर आश्चर्य में पड़ गये तब गंगा ने कहा, “हे राजन्! मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूँ* और आपसे विवाह करने की अभिलाषा ले कर आपके पास आई हूँ।” इस पर महाराज प्रतीप बोले, “गंगे! तुम मेरी दहिनी जाँघ पर बैठी हो। पत्नी को तो वामांगी होना चाहिये, दाहिनी जाँघ तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करता हूँ।” यह सुन कर गंगा वहाँ से चली गईं।
“Sanjaya said, ‘After the heroic Salwa, that ornament of assemblies, hadbeen slain, thy army speedily broke like a mighty tree broken by theforce of the tempest.